भाई मनोज द्विवेदी जी के जन्म दिन पर शुभकामना सहित उन्हें एक चुराई हुई कविता भेंट कर रहा हूँ
गुरुवार, 25 मार्च 2010
भाई ने सूचना दी कि गधे की तरह काम है पेलम पाल मची हुई है लेकिन जन्मदिन भी हर साल है कि आ ही जाता है अगर २९ फ़रवरी को न हो तो। भाई तस्वीर देखा तो बड़े गदराए हुए दिख रहे हो क्या दवाएं ले रहे हो भाई? खैर ये तो हम बाद में जान ही लेंगे फ़िलहाल आपको एक मारी हुई कविता भेंट कर रहा हूँ........
सुनो काली चरन
पत्रकारिता तो अब
जूते की नोक पर होगी कालीचरन!
क्योंकि मिशन गया तेल लेने
और कलम गयी गदहिया की गां.... में।
आगया तो आ ही गया
कंप्यूटर,
उसी पर रात-दिन छींको-पादो,
आंख फोड़ो
हाथ जोड़ो
चार पैसा कमाओ,
घर जाओ,
बाल-बच्चों का पेट पालो।
वरना ....की....चू.....
पत्रकारिता का भूत
कहीं का नहीं रहने देगा तुम्हें,
रोओगे-रिरिआओगे,
एक अदद अंडरवियर के लिए
रिक्शे के पायदान पर
हांफते नजर आओगे,
कहां धरी है नौकरी
नहीं करना तो क्यों करी?
करना है तो कर,
जूते की नोक पर,
संभाल अपना पेट, अपना घर।
कुंए में भांग पड़ी है
विदेशी पूंजी सामने खड़ी है।
वो देख,
उधर ब...न के लं... टीवी-सेट
आ गया इंटरनेट
गेटअप, मेकअप अप-टू-डेट,
चकाचक्क, भकाभक्क,
विश्वसुंदरी पत्रकारिता के उन्नत ...तड़ों से
झड़तीं एक से एक गोबड़उला खबरें धक्कामार
सात समुंदर आरपार,
सर्रसर्र, फर्रफर्र शेयर बाजार,
कहीं चढ़ाव, कहीं उतार,
और पूंजी की रेलमपेल
देख-देख ....दरचो....
अखबारी खेल,
मिशन गया लेने तेल
खबर गयी कलम के भो...ड़े में
स्साला भाड़
फट गयी गां....
छींक-पाद,
हरामी की औलाद
पराड़कर का च.......ओ...द्दा।
पत्रकारिता होगी अब कलम की नोक पर.............
जहाँ तक मुझे याद है ये जेपी भाई की लिखी हुई कविता है जो कि उन्होंने खुद को गधा घोषित करे बिना लिखी थी। जिन स्थानों पर ........ लगा है उन स्थानों की पूर्ति प्रचलित शब्दों से कर लीजिये खुद ब खुद सब सार्थक लगने लगेगा।(ये नहीं पूछेंगे कि अभी उम्र क्या हो गयी है वरना बछड़ों से निकाल कर सांडों में खड़े कर दिये जाओगे)
जय जय भड़ास
जूते की नोक पर होगी कालीचरन!
क्योंकि मिशन गया तेल लेने
और कलम गयी गदहिया की गां.... में।
आगया तो आ ही गया
कंप्यूटर,
उसी पर रात-दिन छींको-पादो,
आंख फोड़ो
हाथ जोड़ो
चार पैसा कमाओ,
घर जाओ,
बाल-बच्चों का पेट पालो।
वरना ....की....चू.....
पत्रकारिता का भूत
कहीं का नहीं रहने देगा तुम्हें,
रोओगे-रिरिआओगे,
एक अदद अंडरवियर के लिए
रिक्शे के पायदान पर
हांफते नजर आओगे,
कहां धरी है नौकरी
नहीं करना तो क्यों करी?
करना है तो कर,
जूते की नोक पर,
संभाल अपना पेट, अपना घर।
कुंए में भांग पड़ी है
विदेशी पूंजी सामने खड़ी है।
वो देख,
उधर ब...न के लं... टीवी-सेट
आ गया इंटरनेट
गेटअप, मेकअप अप-टू-डेट,
चकाचक्क, भकाभक्क,
विश्वसुंदरी पत्रकारिता के उन्नत ...तड़ों से
झड़तीं एक से एक गोबड़उला खबरें धक्कामार
सात समुंदर आरपार,
सर्रसर्र, फर्रफर्र शेयर बाजार,
कहीं चढ़ाव, कहीं उतार,
और पूंजी की रेलमपेल
देख-देख ....दरचो....
अखबारी खेल,
मिशन गया लेने तेल
खबर गयी कलम के भो...ड़े में
स्साला भाड़
फट गयी गां....
छींक-पाद,
हरामी की औलाद
पराड़कर का च.......ओ...द्दा।
पत्रकारिता होगी अब कलम की नोक पर.............
जहाँ तक मुझे याद है ये जेपी भाई की लिखी हुई कविता है जो कि उन्होंने खुद को गधा घोषित करे बिना लिखी थी। जिन स्थानों पर ........ लगा है उन स्थानों की पूर्ति प्रचलित शब्दों से कर लीजिये खुद ब खुद सब सार्थक लगने लगेगा।(ये नहीं पूछेंगे कि अभी उम्र क्या हो गयी है वरना बछड़ों से निकाल कर सांडों में खड़े कर दिये जाओगे)
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
nice
मुनेन्द्र भाई अच्छा उपहार दिया है आपने भाई के जन्म दिन पर लेकिन कई लोगों के मुंह में केक की मिठास भी कड़वा गई होगी
जय जय भड़ास
एक टिप्पणी भेजें