नवभारत टाइम्स(मुंबई) के संपादक ने हिंदी की माँ (*)दने की कसम खा रखी है

गुरुवार, 18 मार्च 2010

नाम है शचीन्द्र त्रिपाठी जिससे लगता है कि हिंदी भाषी होगा ये बंदा और ब्राह्मण भी लगता है उपजाति से लेकिन पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ कि इस बन्दे के सम्पादकत्व में निकलने वाले अखबार नवभारत टाइम्स(मुंबई) ने तो हिंदी भाषा की इतनी बुरी तरह से ऐसीतैसी करी है कि लगता है कि ये लोग पूरी तरह से मात्र देवनागरी लिपि के कंधों पर बैठ कर हिंदी का शिकार कर रहे हैं। इस संपादक को लगता है कि ये नई पीढ़ी को यदि हिंदी के शब्द भुला देगा तब ही नए जमाने का बन सकेगा। इसके लिये रेप, कल्चर, प्रमोशन, रिटायरमेन्ट और न जाने कितने ऐसे शब्द हैं जो कि रोज ही प्रकाशित करे जाते हैं ताकि इन्हें बोलचाल की भाषा में घोल दिया जाए। इस बात पर मेरे एक मित्र ने कहा कि भाई ये समाचार पत्र हिंदी का है ही नहीं ये तो वर्णसंकर भाषा और सोच का प्रतीक है यानि कि घोड़े और गदहे के मेल से बना खच्चरी समाचारों की रद्दी। कदाचित भाई ने सही कहा है क्योंकि ये संपादक कम से कम हिंदी के बारे में तो शायद खच्चरी विचार ही रखता है। असल में ये वो लोग हैं जो हमारे बीच रह कर संस्कृति की संवाहक भाषा को दूषित करने का कार्य पैसे के लोभ में करते हैं इनकी सोच बस पैसा..पैसा...पैसा.....
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