लो क सं घ र्ष !: केक को खा के सिवइयों का मजा भूल गये

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

हम ने सुना है कि यात्रियों केा गिरहकट एक दूसरे के हाथ बेच लिया करते थे, बोलियाँ लगवाकर नीलाम करते थे, बेचारे मुसाफिर को खबर तक न होती थी। अब क्रिकेट प्रेमियों की भी जेब किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कटती है। आप कहेंगे कि हम यह नहीं मानते, न मानिये, यह तो मानेंगे कि आई0पी0एल0 (इण्डियन प्रीमियर लीग) जो बी0सी0सी0आई0 की एक उप समिति है, ने बड़ी बड़ी बोलियों पर मैचों की नीलामी की है। अब आप खुद सोचिये कि नीलामी छुड़ाने वाले घाटे का सौदा तो करेंगे नहीं, जितना खर्च करेंगे, उससे ज्यादा कहीं न कहीं से प्राप्त करेंगे।
इतनी सी बात से आप यह सूत्र पा गये होंगे कि आई0पी0एल0 के कमिश्नर ललित मोदी और विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर के बीच झगड़ा किस बात का था और सुनंदा पुष्कर का क्या किस्सा है। सभी अपनी अपनी बचत में एक दूसरे की पोल खोल रहे थे और यह जनता है कि सब जानती है।
इस संक्षेप को अगर विस्तार दिया जाय तो कहानी लम्बी हो जायेगी काफी खुलासा हो चुका है।
बात पूछोगे तो बढ़ जायगी फिर बात बहुत।
बस थोड़ा और स्पष्ट कर दूं।
टवेंटी-20 मैंचेों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आई0पी0एल0 को मिला। तीन वर्ष पहले जब आई0पी0एल0 की आठ टीमों की नीलामी हुई, क्रिकेट जगत के साथ साथ कार्पोरेट जगत में भी हलचल मची। नई दो टीमों पुणे और कोच्चि की नीलामी पिछली आठ से भी अधिक थी।
अब थुरूर के विदेश राज्यमंत्री पद से जब इस्तीफा ले लिया गया तो मोदी के आरोपों का और भी खुलासा हो गया। सुनन्दा ने भी रेंदेयु से इस्तीफा दिया तथा यह भी सच्चाई सामने आ गई कि थुरूर ही के कारण उन्हें 19 प्रतिशत भागीदारी तथा 70 करोड़ की धनराशि मिली थी। जब आई0पी0एल0 की ब्राण्ड वैल्यू 4 अरब डालर से अधिक बढ़ी तो इससे ऐसे ऐसे राजनेताओं ने दिलचस्पी ली, जिनको क्रिकेट का ककहरा तक ज्ञात नहीं है। आई0पी0एल0 की फ्रेंचाइजी टीमों ने पूँजी बाजार का रूख किया और सट्टेबाजी भी खूब की, क्रिकेट व्यापार बन गया और क्रिकेट प्रेमियों के क्रेज़ को भुनाया गया।
सरकार ने इस्तीफ़ा लेने से पूर्व अपनी एजेन्सियों द्वारा सरकारी पता करा लिया, बी0 सी0 आई0 पर भी दाग़ देखे गये, अब वह भी जाँच के घेरे में है।
अब इसका दूसरा पहलू भी देखियों, क्रिकेट प्रेमी होना भी ‘स्टेट्स सिम्बल’ बन चुका है, इनके कई वर्ग हैं, एक वर्ग उन बडे़ आदमियों या अभिजात्य वर्ग के युवाओं का है जो विलासिताओं के लिये अपने बड़ों द्वारा अर्जित धन को लुटाने के बहाने ढूढ़ते रहते हैं, दूसरा वर्ग उन छुटभैय्ये युवाओं का है जो धनी युवाओं की चाटुकारिता हेतु अपनी छोटी सम्पत्तियों का वारा न्यारा करके अपने को धनियों जैसा दिखाना चाहते हैं और उन्हीं की बगल में बैठना चाहते हैं। तीसरा वर्ग उन बेरोजागार ग्रामीण तथा शहरी युवाओं का है जो अपनी देशी बातों पर गर्व के बजाय हीनता का भाव रखता है। तथा विदेशी चीजों का दीवाना है। वह कबड्डी के बजाय अपने का क्रिकेट प्रेमी दिखाना पसन्द करता है। अकबर इलाहाबादी के सुपुत्र जब इंगलैण्ड पढ़ने गये तो उनमें यही भावना आ गई थी, अतः अकबर ने कविता रूप में एक पत्र भेज, जिसकी एक पंक्ति इस समय मुझे याद आ गई-

केक को खा के सिवइयों का मजा भूल गये

यदि मुझे दकियानूसी न समझे तो क्या मैं यह कहने की हिम्मत करूं कि भारतीय गरीब बच्चों के लिये तो इस झूठे क्रेज से बेहतर तो मुंशी प्रेम चन्द का गुल्ली डण्डा था, जिसमें खर्च भी नहीं था और खुली हवा भी मिलती, अब तो बच्चे बंद कमरों में टी0वी0 से चिपके रहते हैं, स्वास्थ्य बनने के बजाय बिगड़ता है, तथा पढ़ाई लिखाई एवं घर के कामकाज भी कई कई दिन तक प्रभावित होते हैं सरकार खिलौना पकड़ा देती है या यूं कहिये कि नशे की गोली दे देती है जिससे वह मस्त होकर अपनी समस्याये भूल जाते हैं वे ऐसे आलसी बनते हैं कि न तो काम करते हैं, न ही सड़क पर निकल कर सरकार से काम मांगते हैं उल्टे सरकार की जय जय कार करते हैं क्रिकेट प्रेमी कृपाया मुझे क्षमा करें।

डॉक्टर एस.एम हैदर

2 टिप्पणियाँ:

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

भाईसाहब आप माफ़ी किनसे माँग रहे हैं उन नशेड़ियों से जो कि देश के सारे हालातों के प्रति बेखबर रहते हैं और क्रिकेट मैच देख रहे हैं या उन अरबपतियों से जो कि मुनाफ़ाखोरी के लिये देश को भी बेच दें?मूर्ख जनता अपने ही कर्मों का फल भुगत रही है कुशासन के रूप में...
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

आपा ने एकदम सही कहा.
जय जय भड़ास

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