आविष्कारों की लिस्ट में भारत के नाम इतने कम आविष्कार- क्यूँ

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010


शताब्दियों से सम्पूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाला भारत आधुनिक आविष्कारों की लिस्ट में कदाचित अपना अस्तित्व भर बनाए हुए है
प्राचीन काल में जहाँ हमने इतने सारे संसाधनों का विकास किया वहीँ आधुनिक काल में हमारे आविष्कारों की संख्या मंद पड़ गयी
ऐसा क्यूँ?
क्या हमारी बुद्धि में वो पैनापन नहीं रहा
या हमारे विद्वानों ने मष्तिस्क का प्रयोग बंद कर दिया
या फिर हममे अब वो छमता नहीं रही
आइये कुछ तथ्यों पर गौर करें
ज़रा इतिहास की ऊँगली पकड़ कर अतीत की सैर करते हैं
विश्व का आदि ग्रन्थ वेद जिनमे देवताओं से लेकर पेड़- पौधों, आदि तक की वंदना की गई है
क्यूँ? क्या आवश्यकता थी इसकी?
क्यूंकि हमारे मनीषियों को यह पता था की वृक्ष भी जीवन धारण करते हैं
उनमे भी अनुभव करने की छमता होती है
एक उदाहरण देता हूँ- संस्कृत कोष में वृक्ष के लिए पादप शब्द का प्रयोग हुआ है
पादप की व्युत्पत्ति पादेन पिबति इति पादपः अर्थात जो पैरों से पीता है वो पादप
पीने का काम तो वाही कर सकता है जिसमे जीवन हो

आगे बढ़ते हैं
रामायण विश्व का आदि काव्य है
रामायण में सरयू को पार करने के लिए नौका का प्रयोग किया गया है जो आज की नौकाओ व समुद्री जहाज़ों का पूर्वज है
राम रावण युद्ध में विभिन्न अस्त्रों का प्रयोग है
मुख्यतः आग्नेयास्त्र, वरुनास्त्र, पाशुपतास्त्र, सर्पास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि हैं
ये अस्त्र आजके बंदूकों, मशीनगनों, तोपों, विषैली गैसों तथा परमाणु अस्त्रों के पूर्वज हैं
आयुर्वेद का प्रयोग भारत की देन है ये तो जग जाहिर है
अब बात आती है वायुयान की तो पुष्पक विमान को वायुयानों का पूर्वज कहना चाहिए
इन सब बातों से मै सिर्फ ये कहना चाहता हूँ की जो आविष्कार आधुनिक काल में हुए हैं उनकी नीव हमारे देश में ही पड़ी

अब सवाल ये रहा की इतनी आधुनिक एवं वैज्ञानिक सोच के बाद भी आधुनिक आविष्कारों में हमारा योगदान कम क्यूँ है?
जरा गौर फरमाइए
१६०० ईसवी के पहले गोरों के हाथ कितने आविष्कारों की उपलब्धियां हैं
शायद एक-दो या फिर वो भी नहीं
अमेरिका की तो बात ही छोड़ दीजिये, उसका तो इतिहास ही हद हद ढाई तीन सौ वर्षों पुराना है
मतलब ये हुआ की जब गोरे भारत आये अधिकतर आविष्कार उसके बाद ही हुए
दूसरी बात
गणित का बहु प्रसिद्द सूत्र जिसे हम आज भी पैथागोरस प्रमेय के नाम से जानते हैं, हमारे ही महर्षि बौधायन द्वारा ६ठीं शताब्दी के पहले ही प्रतिपादित किया गया था जिसे पैथागोरस ने चुरा कर बाद में अपने नाम से कर लिया
तीसरा तथ्य
न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत हमारे महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपने आर्यभटीयम नामक ग्रन्थ में पहले ही प्रतिपादित किया था जो न्यूटन ने बाद में चुरा कर अपने नाम से प्रकाशित किया
बीज गणित में पाई का मान सबसे पहले आर्यभट ने प्रतिपादित किया
शून्य ओर दशमलव की खोज भी आर्यभट ने ही की
सूर्य से पृथ्वी की दूरी ओर सूर्य का अपने स्थान पर लगातार परिक्रमण भी सबसे पहले आर्यभट ने बताया
ऐसी ही ओर बहुत सी बातें हैं जिन्हें हम आज भी विदेशियों द्वारा प्रतिपादित मानते हैं पर वस्तुतः वो हमारे भारत ने दिया है

अब ये सोचते हैं की इतनी उदात्त सोच ओर इतना ज्ञान रखने पर भी हमारे नाम इतने कम आविष्कार क्यूँ
ध्यान दीजियेगा
१६ वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत आये ओर अपनी कुनीतियों से १७०० शताब्दी के उत्तरार्ध तक भारत पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया
ओर फिर शुरू हुआ वहशियत का नंगा नाच
अंग्रेज भारतीयों को देखना भी पसंद नहीं करते थे
साड़ी बड़ी पोस्ट्स पर अंग्रेज होते थे ओर घटिया जगह पर भारतीय
भारतीयों को ठीक से साँस लेने तक की आजादी नहीं थी ओर उनके हर कार्य पर अंग्रेजों की नजर रहती थी
अब अगर उस समय भारतीयों ने कोई आविष्कार किये भी हों तो उनपर उनका अधिकार होने ही नहीं पता रहा होगा ये तो स्वयं सिद्ध है
ओर उस आविष्कार के साक्षी भारतीय अगले ५० वर्षों में ख़तम हो गए होंगे
उन्होंने जो ऐतिहासिक किताबें लिखी होंगी , अन्य किताबों की भांति उन्हें भी जला या फाड़ दिया गया होगा
तो हमने आविष्कार किये थे या नहीं इसका प्रमाण तो रहा नहीं फिर हम कैसे मान लें की हमने आविष्कार नहीं किये
मै तो कहता हूँ जिस तरह हमारे इतिहास को तोडा मरोड़ा गया उसी तरह हमारे किये हुए आविष्कारों पर दूसरों की मुहर भी लगाईं गयी वरना इतिहास गवाह है, भारतीयों से तीव्र मेधा न कहीं थी न हो सकेगी
ओर वर्तमान इस बात का प्रमाण है
आज भी हमारे कितने ही भारतीय वैज्ञानिक अमेरिका, इंग्लॅण्ड आदि देशों में वहां के लोगों के अंडर में काम करते हैं
ओर उसका लाभ उन विदेशियों को मिल जाता है

इस तरह हमारे इसतिहास के साथ हमेशा से ही खिलवाड़ होता रहा और हर बार या तो डर वश या फिर अज्ञान वश हम अपने ही अधिकारों से वंचित हो रहे हैं
इन समस्याओं का निदान तभी हो सकता है जब हम अपने घर के विद्वानों का आदर करें और उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराएं
भारतीयों की उन्नति में ही भारत की उन्नति है

इस लेख में दिए गए वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में और विस्तार से जानने के लिए .. आर्यभटीयम, और संस्कृत भारती द्वारा प्रकाशित - संस्कृत में विज्ञानं (डॉक्टर विद्याधर शर्मा गुलेरी) ग्रन्थ देखें
तथा किसी भी अन्य जिज्ञासा के लिए संस्कृत भारती की वेब साईट http://www.samskritabharati.org/ पर संपर्क करें



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ANAND

4 टिप्पणियाँ:

Himwant ने कहा…

आजादी बडी चीज है भैया....
पहले अपने भारतवर्ष को
अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त तो करा लो भैया...
हमारे यहां ज्ञान-विज्ञान की भाषा अंग्रेजी बनी हुई है
सिर्फ 5 प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते है
सभी को सिखायी भी नही जा सकती
जब तक स्वदेशी भाषाओं मे उच्चतम शिक्षा देने का प्रबंध नही होगा । तब तक भारतीय मष्तिस्क की अविष्कार करने की क्षमता कारागार मे बंद रहेगी।

SANSKRITJAGAT ने कहा…

इसी बात का अ‍हसास कराने के लिये ही तो हमने से सारे तथ्‍य खोजे कि लोग अपनी भारतीय संस्‍कृति के बारे मे जानें और विदेशियों की काली करतूतों के बारे में भी जाने जिससे उनमें अपने देश के प्रति स्‍वाभिमान पैदा हो और विदेशियों की चुपडी के चक्‍कर में अपना स्‍वत्‍व नष्‍ट न कर लें

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

आपके प्रश्न का उत्तर...
शायद आपके लेख की इसी मानसिकता के पीछे छुपा है...

हम यही करते रहे...बस...

बेनामी ने कहा…

आपने बिल्कुल सही बात कही है। वैसे एक बात बोलूं आज भी भारतीय आधुनिक आविष्कार कर रहे हैं। लेकिन अमेरिका के लिए भारत के लिए नही।
और हां! ये काम भी वो भारतीय नागरिक के तौर पर शायद ही करते हों। क्योंकि अमेरिका जाने के बाद तो वो अमेरीकी नागरिक कहलाते हैं। एक तरह से उनके आविष्कार अमरीकी नागरिक के द्वारा किए गए आविष्कार कहलाते हैं।

विस्फ़ोट.काम में पढ़ा था कि एक चेन्नई के लड़के ने ३० टेराबाईट की हार्ड डिस्क बनाई। लेकिन वो हार्ड डिस्क अब हमें अमेरिका की कंपनी सीगेट से खरीदनी होगी क्योंकि वो बंदा अब सीगेट में मोटे वेतन की वजह से चला गया।
टीवी पर अक्सर इंटेल का विज्ञापन आता है कि यूएसबी के सहनिर्माता एक भारतीय हैं। लेकिन ये यूएसबी भी अमरीकियों के हाथ में चली गई क्योंकि वो भारतीय भी अमेरिका कीकंपनी इंटेल के लिए काम करते थे।

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