परम फ़ादरणीय गौरव महाजन जी - ५

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

पूज्य पिता जी हिंदी के साथ सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन लिखते सिर्फ़ अंग्रेजी में हैं, बताते हैं कि अंग्रेजी उनकी व्यवसायिक भाषा है जिस पर उन्हें गर्व है तो बज़ पर वे कौन सा व्यवसाय कर रहे हैं अब तक स्पष्ट नहीं करा। ऐसा भी हो सकता है कि अपनी मातृभाषा में लिखने में शर्म महसूस होती हो या फिर लिख ही न पाते हों क्योंकि अब तक जितना बजबजाए हैं बज़ पर अंग्रेजी में ही कुलबुलाए हैं। पूज्य पिता श्री ने पहले पहल तो सहर्ष हमारा पिता बनना स्वीकार लिया लेकिन अब लिखते हैं कि मैं डॉ.रूपेश श्रीवास्तव सिर्फ़ एड्स की दवा बेंचू(शायद पिताजी ने हमारा एड्स पर लिखा शोधपत्र पढ़ लिया है) या तो कविता लिखूं या फिर बकवास समाचार लिखूं लेकिन अपनी औकात न दिखाऊं। हमें अक्ल का अंधा बताने में कोई विलंब न करा और ये भी बताया कि भगवान भी हमे नहीं सुधार सकता लेकिन स्वयं को भगवान से भी आगे मानते हुए तत्काल हमारे बाप होना स्वीकार कर सुधारने आगे आ गये। हो सकता है कि ये हमारा महासौभाग्य हो कि ऐसे "महा"जन को हमारा धर्मपिता होना लिखा हो लेकिन समाज की गहरी समझ रख्नने वाले पिता श्री इतने सौम्य स्वभाव के हैं कि स्वयं लिखते हैं कि आपसे अलग सोच रखने वाला आपका दुश्मन नहीं होता लेकिन हमारे मामले में तत्काल तू-तड़ाक की भाषा पर उतर आते हैं शायद यही इनकी मातृभाषा है।
जय जय पूज्य पिता जी हिंदी के साथ सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन लिखते सिर्फ़ अंग्रेजी में हैं, बताते हैं कि अंग्रेजी उनकी व्यवसायिक भाषा है जिस पर उन्हें गर्व है तो बज़ पर वे कौन सा व्यवसाय कर रहे हैं अब तक स्पष्ट नहीं करा। ऐसा भी हो सकता है कि अपनी मातृभाषा में लिखने में शर्म महसूस होती हो या फिर लिख ही न पाते हों क्योंकि अब तक जितना बजबजाए हैं बज़ पर अंग्रेजी में ही कुलबुलाए हैं। पूज्य पिता श्री ने पहले पहल तो सहर्ष हमारा पिता बनना स्वीकार लिया लेकिन अब लिखते हैं कि मैं डॉ.रूपेश श्रीवास्तव सिर्फ़ एड्स की दवा बेंचू(शायद पिताजी ने हमारा एड्स पर लिखा शोधपत्र पढ़ लिया है) या तो कविता लिखूं या फिर बकवास समाचार लिखूं लेकिन अपनी औकात न दिखाऊं। हमें अक्ल का अंधा बताने में कोई विलंब न करा और ये भी बताया कि भगवान भी हमे नहीं सुधार सकता लेकिन स्वयं को भगवान से भी आगे मानते हुए तत्काल हमारे बाप होना स्वीकार कर सुधारने आगे आ गये। हो सकता है कि ये हमारा महासौभाग्य हो कि ऐसे "महा"जन को हमारा धर्मपिता होना लिखा हो लेकिन समाज की गहरी समझ रख्नने वाले पिता श्री इतने सौम्य स्वभाव के हैं कि स्वयं लिखते हैं कि आपसे अलग सोच रखने वाला आपका दुश्मन नहीं होता लेकिन हमारे मामले में तत्काल तू-तड़ाक की भाषा पर उतर आते हैं शायद यही इनकी मातृभाषा है।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

निरा मुरख है ये,
और बनिया तो है ही सो दलाल भी होगे,
महिला के पास मडराना अर्थात कुचरित्र का भी,
गुरुवार ऐसे असामाजिक प्राणी को या तो जुतिया दो या छोर दो,
जय जय भड़ास

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP