भगदड़ मचाओ,मरो; लेकिन निरीह बेचारे मंत्रियों को मत सताओ
शुक्रवार, 21 मई 2010
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक जरा सी घटना(इस जरा सी बात को दुर्घटना तक कहना उचित नहीं होगा) में मात्र पंद्रह बीस लोग घायल हो गये और बस दो लोग मर गये(ध्यान रहे कि मरने वाले लोग बड़े ही गुमनाम और गरीब किस्म के लोग हुआ करते थे)। ये गरीब लोग भी बड़े विचित्र किस्म के हुआ करते हैं सर्दी हो गर्मी हो बरसात हो या रेलवे स्टेशन पर प्लेटफ़ार्म का अचानक बदल जाने की घोषणा ये कमबख्त कभी भी मर जाते हैं और इस पर हमारे बेचारे मासूम नेताओं को परेशानी उठानी पड़ती है आखिर हम ही तो अपने इन नेताओं को चुन कर मंत्री के पद तक पहुँचाते हैं अब लोग दुर्भाग्यवश मर जाते हैं तो इसमें बेचारी ममता बाई बनर्जी क्या करेंगी। भारतीय भाई बहनों से अपील है कि वे इस मामले में ममता बाई को जिम्मेदार न मानें जिम्मेदार हैं गरीब जो कि कभी भी कहीं भी मर जाते हैं पट्ट से...
जय जय भड़ास
6 टिप्पणियाँ:
sach kaha
सही बात है ये गरीब लोग जिन्दा ही क्यों रहते हैं आखिरकार इन्हें बुरी मौत तो मरना ही पड़ता है? मुझे तो ईश्वर से शिकायत है न जाने क्यों वह गरीबो को पैदा करता है? बेचारे मंत्री आदि जैसे अमीर लोग इन गरीबों के कारण फ़ालतू में ही परेशान हो जाते होंगे.....
आपकी जूती का साइज भी लगता है बीस नंबर स्टैन्डर्ड है कस कर जुतिया दिया है लेकिन गैंडों को किधर असर होगा ये तो बम या गोली से भी बमुश्किल मरते हैं
जय जय भड़ास
आपने जो व्यंग लिखा है वह कुछ भले से बौद्धिक जुगालीबाजों की समझ में ही न आएगा या फिर हो सकता है कि जो शीर्षक पढ़ कर टिप्पणी करने दौड़ आते हैं वे कहें कि भड़ासी कितने बुरे है(ये बात दीगर है कि हमें इस बात पर जरा भी अजीब नहीं लगता)
जय जय भड़ास
वाह मुनव्वर आपा ये भी कोई बात होती है भला, गरीबों के मरने के लिए जब फुटपाथ हैं तो वो रेलवे स्टेशन जा कर क्यों मरते हैं और वो भी टिकट खरीद कर अरे भाई बिना पैसे खर्च किये भी तो मर सकते थे शायद यही बात ममता दीदी को पसंद न आई हो ...... की देश की जनता अब मरने के लिए पैसे खर्च कर रही है लेकिन अब उनको ये कौन बताये की वो बेचारे तो मरने से पहले देश का कर्ज चूका रहे थे...
nice
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