लो क सं घ र्ष !: हिंदी ब्लॉगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-2009- अंतिम भाग

बुधवार, 16 जून 2010


इसी प्रकार वर्ष-2009 में मेरी दृष्टि कई अजीबो-गरीब पोस्ट पर गई मसलन -एक हिंदुस्तानी की डायरी में 10 फरवरी को प्रकाशित पोस्ट -हिंदी में साहित्यकार बनते नहीं, बनाए जाते हैं। प्रत्यक्षा पर 26 मार्च को प्रकाशित पोस्ट -तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है? विनय पत्रिका में 27 मार्च को प्रकाशित बहुत कठिन है अकेले रहना। निर्मल आनंद पर 05 फरवरी को प्रकाशित आदमी के पास आँत नहीं है क्या? छुट-पुट पर 02 जुलाई को प्रकाशित पोस्ट -इंटरनेट (अन्तरजाल) का प्रयोग मौलिक अधिकार है। सामयिकी पर 09 जनवरी को प्रकाशित आलेख, जमाना स्ट्राइसैंड प्रभाव का आदि।
ये सभी पोस्ट शीर्षक की दृष्टि से ही केवल अचंभित नहीं करते बल्कि विचारों की गहराई में डूबने को विवश भी करते हैं। कई आलेख तो ऐसे हैं जो गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजाइश रखते हैं।
इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि वर्ष -2007 में हिन्दी ब्लॉग की संख्या लगभग पौने चार हजार के आस-पास थी जबकि महज दो वर्षों के भीतर चिट्ठाजगत के आँकड़ों के अनुसार सक्रिय हिन्दी चिट्ठों की संख्या ग्यारह हजार के पार हो चुकी है। वर्ष- 2009 में कानपुर से टोरंटो तक इलाहाबाद से न्यू जर्सी तक मुम्बई से लन्दन तक और भोपाल से दुबई तक हिन्दी चिट्ठाकारी का धमाल छाया रहा। कहीं हिन्दी की अस्मिता का सवाल तो कहीं आता रहा हिन्दी के नाम पर भूचाल, इसमें शामिल रहे कहीं कवि, कहीं कवयित्री, कहीं गीतकार, कहीं कथाकार, कहीं पत्रकार तो कहीं शायर और शायरा और उनके माध्यम से होता रहा हिन्दी का व्यापक और विस्तृत दायरा।
कहीं चिटठा चर्चा करते दिखे अनूप शुक्ल तो कहीं उड़न तश्तरी पर सवार होकर ब्लॉग भ्रमण करते दिखे समीर लाल जैसे पुराने और चर्चित ब्लाॅगर। कहीं सादगी के साथ अलख जगाते दिखे ज्ञान दत्त पांडे तो कहीं शब्दों के माया जाल में उलझाते रहे अजित वाडनेकर तो कहीं हिन्दी के उत्थान के लिए सारथी का शंखनाद तो कहीं और मुहल्ला भड़ास का जिंदाबाद कारवाँ चलता रहा, लोग शामिल होते रहे और बढ़ता रहा दायरा हिन्दी का कदम-दर कदम।
इस कारवाँ में शामिल रहे उदय प्रकाश, विष्णु नागर, विरेन डंगवाल, लाल्टू, बोधिसत्व और सूरज प्रकाश जैसे वरिष्ठ साहित्यकार तो दूसरी तरफ पुण्य प्रसून बाजपेयी और रबिश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार। कहीं मजबूत स्तंभ की मानिंद खड़े दिखे मनोज बाजपेयी जैसे फिल्मकार तो कहीं आलोक पुराणिक जैसे अगड़म-बगड़म शैली के रचनाकार कहीं दीपक भारतदीप का प्रखर चिंतन दिखा तो कहीं सुरेश चिपलूनकर का महाजाल, कहीं रेडियो वाणी का गाना तो कहीं कबाड़खाना
तमाम समानताओं के बावजूद उड़न तश्तरी का पलड़ा भारी दिखा वह था मानसिक हलचल के मुकाबले उड़न तश्तरी पर ज्यादा टिप्पणी आना और मानसिक हलचल के मुकाबले उड़न तश्तरी के द्वारा सर्वाधिक चिट्ठों पर टिप्पणी देना । इस प्रकार सक्रियता में अग्रणी रहे श्री समीर लाल जी और सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी चिट्ठाकारी में अपनी उद्देश्यपूर्ण भागीदारी में अग्रणी दिखे श्री ज्ञान दत्त पांडे जी। रचनात्मक आन्दोलन के पुरोधा रहे श्री रवि रतलामी जी, जबकि सकारात्मक लेखन के साथ-साथ हिन्दी के प्रसार-प्रचार में अग्रणी दिखे श्री शास्त्री जे0सी0 फिलिप जी। विधि सलाह में अग्रणी रहे श्री दिनेश राय द्विवेदी जी और तकनीकी सलाह में अग्रणी रहे श्री उन्मुक्त जी। वहीं श्रद्धेय अनूप शुक्ल समकालीन चर्चा में अग्रणी दिखे और श्री दीपक भारतदीप गंभीर चिंतन में। इसीप्रकार श्री राकेश खंडेलवाल जी कविता-गीत-गज़ल में अग्रणी दिखे।
महिला चिट्ठाकारों के विश्लेषण के आधार पर हम जिन नतीजों पर पहुँचे हैं उसके अनुसार कविता में अग्रणी रहीं रंजना उर्फ रंजू भाटिया, वहीं कथा-कहानी में अग्रणी रहीं निर्मला कपिला, ज्योतिषीय परामर्श में अग्रणी रहीं संगीता पुरी, वहीं व्यावहारिक वार्तालाप में अग्रणी रहीं ममता। समकालीन सोच में घुघूती बासूती और गंभीर काव्य चिंतन में अग्रणी दिखी आशा जोगलेकर। सांस्कृतिक जागरूकता में अग्रणी दिखी अल्पना वर्मा, वहीं समकालीन सृजन में अग्रणी रहीं प्रत्यक्षा। इसी प्रकार कविता वाचकनवी, सांस्कृतिक दर्शन में अग्रणी रहीं।
हिन्दी ब्लाॅगिंग के सात आश्चर्य यानी वर्ष के सात अद्भुत चिट्ठे । इसमें कोई संदेह नहीं कि संगणित भूमंडल की अद्भुत सृष्टि हैं चिट्ठे। यदि हिन्दी चिट्ठों की बात की जाय तो आज का हिन्दी चिटठा अति संवेदनात्मक दौर में है, जहाँ नित नए प्रयोग भी जारी हैं। मसलन समूह ब्लाग का चलन ज्यादा हो गया है। ब्लाॅगिंग कमाई का जरिया भी बन गया है। लिखने की मर्यादा पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। ब्लाॅग लेखन को एक समानान्तर मीडिया का दर्जा भी हासिल हो गया है। हिंदी साहित्य के अलावा विविध विषयों पर विशेषज्ञ की हैसियत से भी ब्लाॅग रचे जा रहे हैं। विज्ञान, सूचना तकनीक, स्वास्थ्य और राजनीति वगैरह कुछ भी अछूता नहीं है। समस्त प्रकार के विश्लेषणों के उपरांत वर्ष के सात अद्भुत चिट्ठों के चयन में केवल दो व्यक्तिगत चिट्ठे ही शामिल हो पा रहे थे जबकि पाँच कम्युनिटी ब्लॉग थे, ऐसे में उन पाँच कम्युनिटी ब्लॉग को अलग रखने के बाद वर्ष-2009 के सात अद्भुत हिन्दी चिट्ठों की स्थिति बनी हंै वे इस प्रकार हैं-ताऊ-डौंट-इन (रामपुरिया का हरयाणवी ताऊनामा), हिन्दी ब्लॉग टिप्स, रेडियो वाणी, शब्दों का सफर, सच्चा शरणम्, महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर और कल्पतरु
अब आइए उन चिट्ठाकारों की बात करते हैं, जिनका अवदान हिन्दी चिट्ठाकारी में अहम् है और वर्ष -2009 में अपनी खास विशेषताओं के कारण लगातार चर्चा में रहे हैं। साहित्यिक-सांस्कृतिक -सामाजिक-विज्ञान-कला-अध्यात्म और सद्भावनात्मक लेखन में अपनी खास शैली के लिए प्रसिद्ध चिट्ठाकारों में लोकप्रिय एक-एक चिट्ठाकार का चयन किया गया है । इस विश्लेषण के अंतर्गत जिन सात चिट्ठाकारों का चयन किया गया है ,उसमें भाषा-कथ्य और शिल्प की दृष्टि से उत्कृष्ट लेखन के लिए श्री प्रमोद सिंह (चिट्ठा-अजदक), व्यंग्य लेखन के लिए श्री अविनाश वाचस्पति (चिट्ठा-की बोर्ड का खटरागी), लोक-कला संस्कृति के लिए श्री विमल वर्मा ( चिटठा- ठुमरी), सामाजिक जागरूकता से संबंधित लेखन के लिए श्री प्रवीण त्रिवेदी (चिटठा- प्राइमरी का मास्टर), विज्ञान के लिए श्री अरविन्द मिश्र (चिटठा-साईं ब्लॉग), अभिकल्पना और वेब-अनुप्रयोगों के हिन्दीकरण के लिए श्री संजय बेगाणी (चिटठा-जोग लिखी) और सदभावनात्मक लेखन के लिए श्री महेंद्र मिश्रा ( चिट्ठा - समयचक्र) का उल्लेख किया जाना प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है। उल्लेखनीय है कि ये सातों चिट्ठाकार केवल चिट्ठा से ही नहीं अपने-अपने क्षेत्र में सार्थक गतिविधियों के लिए भी जाने जाते हैं और कई मायनों में अनेक चिट्ठाकारों के लिए प्रेरक की भूमिका निभाते हैं । विदेशों में रहने वाले हिंदी चिट्ठाकार इस दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि हिन्दी ब्लागिंग के उन्नयन की दिशा में सार्थक रहा वर्ष 2009.

-रवीन्द्र प्रभात
(समाप्त)

लोकसंघर्ष पत्रिका के जून-2010 अंक में प्रकाशित

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