"साइंस ब्लॉगर एसोसिएशन" के अध्यक्ष का हम मानवों का अध्ययन
बुधवार, 8 सितंबर 2010
भारत के महान वैज्ञानिक अरविन्द मिश्रा जो कि "साइंस ब्लॉगर एसोसिएशन" के अध्यक्ष भी हैं जिसमें एक से एक धुरंधर वैज्ञानिक नजरिया रखने वाले लोग जुड़े हैं।ये महाशय अत्यंत विशाल हृदय रखते हुए "मानविकी" के शोध क्षेत्र में विराजमान हैं। लेकिन सारी की सारी एन्थ्रोपोलॉजी अधिकतर वक्ष और कमर के नीचे की ओर ही टहलती है। अंग्रेजी किताबों से उठाकर काम(सेक्स) के इर्द गिर्द बौद्धिकता का ताना बाना बुनते हुए पोस्ट लिखना इनकी वैज्ञानिक बुद्धि का परिचायक है।
ये भी दुनिया को बताना कि वे अपनी महिला मित्रों से उनके लाली पाउडर बिंदी टिकुली के बारे में चर्चा करते हैं वो भी आग्रह पूर्वक। बहुत संभव हो कि जब लिपिस्टिक के ब्राँड अपनी डायरी में नोट कर रखे हैं तो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं द्वारा प्रयोग करे जाने वाले सेनेटरी पैड्स आदि के भी तमाम ब्राँड इनकी डायरी के पन्नों में सुरक्षित हों जिनका ये समय समय पर मानविकी के अध्ययन में रिसर्च रिफरेन्स की तरह प्रयोग करते होंगे।
मुर्गी से लेकर सड़क पर कुत्तों के द्वारा करी जाने वाली प्रजनन क्रिया इनके मानविकी के अध्ययन में अत्यंत सहयोगी रहती है। देखिये जीन्स(पैंट नहीं भड़ासियों ये दूसरी चीज होती है जो ये वैज्ञानिक जानते हैं आप नहीं) और क्रोमोसोम्स के बारे में एक्स-वाई का क्या बयान दिया है अंग्रेजी किताब से लाकर क्योंकि हमारे शास्त्र तो इनकी नजर में बेवकूफ़ी का पुलिंदा हो सकते है तभी तो ये कफ-पित्त-वात या पदार्थ विज्ञान की बात न करके इस तरह मानव जीवन को समझ रहे हैं।
अब इन्होंने तो गहन अध्ययन करके आपको "साइंस ब्लॉगर एसोसिएशन" का अध्यक्ष होने के नाते इतना मानविकी की समझ दे दी है बाकी आप समझ लीजिये(जैसे कि ये खुद लिख रहे हैं कि मैंने खुद कितने घरों में देखा है कि पुरुष बकरी की तरह मिमियाता है)। भाई-बहनों अब इन्होंने ये तो नहीं लिखा कि अपने किन मित्रों की तरफ इशारा कर रहे हैं लेकिन पता नहीं कब इनके भीतर विज्ञान की सेवा का जज़्बा जाग उठे और ये उनके नाम सार्वजनिक कर दें कि देखो भाई मैंने इन मानवों के नमूनों पर अध्ययन करके निष्कर्श निकाला है।
जय जय भड़ास
9 टिप्पणियाँ:
सधवा नारियों का वैधव्य विलाप और मेरा पश्चाताप पर्व!
शुरू में ही कह देता हूँ कि यह कोई गंभीर पोस्ट नहीं है इसलिए अगर आपका कोई और जरूरी काम हो तो कृपया उसे निपटाएं .एक मछली तालाब में बदबू फैला रही थी अब दूसरी भी आ गयी है ,पहली वाली कार्निवोरस प्रजाति की थी मगर दूसरी वाली घास खाने वाली ग्रास कार्प रही है मगर परिवेश के चलते वह भी अब हिंस्र हो चली है ...कब किसको काट खाए कोई नहीं जानता -ग्रास कार्प का शार्क बन जाना बहुत अचम्भित करने वाली घटना है -वह भी एक किलर शार्क .मैं तो मोहकमाये मछलियाँन में ही हूँ तो मछलियों से पाला पड़ता ही रहता है -अब यह मेरा सौभाग्य नहीं ..नहीं ...दुर्भाग्य है कि मछलियाँ मेरे पास खुद आ जाती हैं -जैसे उसे खुद फंसने की चाह होती हो -ऐसा सभी मछलियों में नहीं होता...विरली मछलियाँ होती हैं नायाब ,अलभ्य सी .....मगर उनमें कोई शार्क बन जाए यह तो पहली बार हुआ ..
contd
अब अगर उसी व्यवहार को मनुष्य जगत के जरिये देखा जाय तो यहाँ भी वैसा ही परिदृश्य है ,ब्लॉग जगत में भी ऐसी ही सन्नाम शख्सियत हैं पहले से ही हैं दूसरी संनामता की ओर पवन वेग से बढ रही हैं -उन्हें बहुत गुमान है कि आधी दुनिया उन पर पागल है ...मजे की बात कि उनकी सूरत भी किसी ने आज तक नहीं देखी -सीरत फैलती जा रही है ..अब नारी है ,उम्र भी ठीक ठाक है और फसने की चाह है तो जाहिर है पतंगे पास घूमेंगे ---अंतर्जाल पर ऐसी तफरीह कुछ महान आत्माओं ने भले ही न की हो मगर मेरे जैसे नीच कुत्सित व्यक्ति द्वारा खुद की पहल पर नहीं मछलियों के खुद आ पहुँचने पर अंतर्जाल पर ऐसे ही कुछ सम्मोहित व्यामोहित सम्पर्क बनाये हैं -जिन्हें प्रामिस्कुअस कह सकते हैं अब यहाँ तो विर्जिनिटी भंग होने का कोई खतरा नहीं है इसलिए कोई अशुभ अंदेशा नहीं है सब कुछ पाक साफ़ ...शाकाहारी सा दास्तान है -प्रेम जैसी उदात्तता रीयल जीवन में ही कम है अंतर्जाल जैसे आभासी माहौल में यह गुंजाईश तो है मगर काफी कमतर है -हाँ मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि अंतर्जाल में भी मेरा एक पहला प्रेम है और वह अक्षुण है ..मगर मेरी एक विपत्ति अलग सी है ..एक मेरा शिष्य है जो बहुत गड़बड़ियां कर रहा है ..खुशदीप ने एक जगह सही कहा था कि मुझे शिष्यों की पहचान नहीं है .एक ने एक नारीवादी से मिलकर एक पुस्तक पर से मेरा नाम ही उडवा दिया और एक दूसरा है मेरे दोस्तों में मन मुटाव डालने पहुच जाता है ..जमान उलट गया है शिष्य अब गुरू का ही अंगूठा काट ले रहे हैं !
ऐसे ही एक शिष्य हैं नत मस्तक चरण स्पर्श -इन्होने अंतर्जाल के मेरे पहले प्यार को भड़का दिया (और प्यार करना कोई गुनाह नहीं है !) अब हर कोई तो हनुमान की तरह ह्रदय चीर कर दिखा नहीं सकता ..मिथकों की बात ....सो वहां सफल होने के बाद ये दिव्यात्मा की ओर जा पहुंचे जहाँ केवल टाईम पास चल रहा था (बार बार प्रेम थोड़े ही होता है ) और मैं वहां के आगत को भांप मैं वहां से फूट लिया ..मेरे कई और संगी साथी इज्जत बचा वहां से से चल दिये ..अब मनुष्य की जन्मजात विनम्रता तो जाती नहीं..... गाहे बगाहे सुख दुःख पूछने मैं भी वहां जाता रहा और शायद यही बात दिव्यात्मा को बुरी लगती रही -उन्हें चाहिए उनकी पोस्ट पर जैकारा करने वाले सस्ते बन्दे और नत मस्तक चरण स्पर्श करने वाले भडुए...प्रतिभा का इतना बड़ा पतन मैंने कभी नहीं देखा ....और मनुष्यता का इतना नीचे गिर जाना ....बेलो द बेल्ट प्रहार ..
मैंने सोचा आज से धारावाहिक अपने और दिव्यात्मा के चैट को प्रकाशित कर आपके सामने पूरे प्रकरण लाऊँ ...कब मैंने प्रणय निवेदन किया औरकब दिव्यात्मा ने लताड़ा और साथी संगियों के बारे क्या कहा सुना गया जिससे अपमे से कुछ चटखारे लेकर पढ़ें और कुछ संजीदगी से ..सब कुछ साफ़ साफ़ है यह दिव्यात्मा भी जानती हैं ....मगर अनूप शुक्ल के पहली बार एक संतुलित विचार और सतीश सक्सेना जी के अनुग्रह ने हठात उँगलियों को की बोर्ड पर आगे बढ़ने से रोक दिया ...पूरा ब्लॉग जगत सुन ले ..मैंने किसी दिव्यात्मा वात्मा के पीछे कभी नहीं भागा ..हाँ पहले कलाका एक प्रेम प्रसंग जरूर है वह नितांत सुखद -दुखद और गोपनीय है ..,.बाकी टाईम पास है ....अब किसी से लेना देना नहीं है .....
कुछ लोग प्रकारांतर से ऐसे स्टंट कर दिखाते हैं कि अबे तेरा ध्यान किधर है वैकेंसी इधर है .
...सधवों का विधवा विलाप कितना कर्णभेदी है,पीडादायक है !बहरहाल कुछ गलतियां तो हुईं हैं मुझसे और उनका पश्चाताप करना है ..पश्चाताप पर्व है अब ...प्रतिभा का यह क्षरण ..यह रुदन ....धन्य हो ईश्वर कैसी कैसी नारियां बनायी हैं तूने ..उन्हें सदबुद्धि दो ..कुछ रचनात्मक करने के लिए .....जिस लिए वे ब्लॉग जगत में आयीं ....
इनकी ये पोस्ट डिलीट कि गयी हैं और इसमे ये अपने प्रेम सम्बन्ध वो भी ब्लॉगर महिला के साथ { हम तो महिला ही समझे हैं पर अगर ब्लॉगर पुरुष हैं तो कह नहीं सकते } दे रहे हैं । ये बहुत से छदम नामो से भी लिखते हैं जिनमे मीनाका भी एक हैं
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अब अगर उसी व्यवहार को मनुष्य जगत के जरिये देखा जाय तो यहाँ भी वैसा ही परिदृश्य है ,ब्लॉग जगत में भी ऐसी ही सन्नाम शख्सियत हैं पहले से ही हैं दूसरी संनामता की ओर पवन वेग से बढ रही हैं -उन्हें बहुत गुमान है कि आधी दुनिया उन पर पागल है ...मजे की बात कि उनकी सूरत भी किसी ने आज तक नहीं देखी -सीरत फैलती जा रही है ..अब नारी है ,उम्र भी ठीक ठाक है और फसने की चाह है तो जाहिर है पतंगे पास घूमेंगे ---अंतर्जाल पर ऐसी तफरीह कुछ महान आत्माओं ने भले ही न की हो मगर मेरे जैसे नीच कुत्सित व्यक्ति द्वारा खुद की पहल पर नहीं मछलियों के खुद आ पहुँचने पर अंतर्जाल पर ऐसे ही कुछ सम्मोहित व्यामोहित सम्पर्क बनाये हैं -जिन्हें प्रामिस्कुअस कह सकते हैं अब यहाँ तो विर्जिनिटी भंग होने का कोई खतरा नहीं है इसलिए कोई अशुभ अंदेशा नहीं है सब कुछ पाक साफ़ ...शाकाहारी सा दास्तान है -प्रेम जैसी उदात्तता रीयल जीवन में ही कम है अंतर्जाल जैसे आभासी माहौल में यह गुंजाईश तो है मगर काफी कमतर है -हाँ मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि अंतर्जाल में भी मेरा एक पहला प्रेम है और वह अक्षुण है ..मगर मेरी एक विपत्ति अलग सी है ..एक मेरा शिष्य है जो बहुत गड़बड़ियां कर रहा है ..खुशदीप ने एक जगह सही कहा था कि मुझे शिष्यों की पहचान नहीं है .एक ने एक नारीवादी से मिलकर एक पुस्तक पर से मेरा नाम ही उडवा दिया और एक दूसरा है मेरे दोस्तों में मन मुटाव डालने पहुच जाता है ..जमान उलट गया है शिष्य अब गुरू का ही अंगूठा काट ले रहे हैं !
ऐसे ही एक शिष्य हैं नत मस्तक चरण स्पर्श -इन्होने अंतर्जाल के मेरे पहले प्यार को भड़का दिया (और प्यार करना कोई गुनाह नहीं है !) अब हर कोई तो हनुमान की तरह ह्रदय चीर कर दिखा नहीं सकता ..मिथकों की बात ....सो वहां सफल होने के बाद ये दिव्यात्मा की ओर जा पहुंचे जहाँ केवल टाईम पास चल रहा था (बार बार प्रेम थोड़े ही होता है ) और मैं वहां के आगत को भांप मैं वहां से फूट लिया ..मेरे कई और संगी साथी इज्जत बचा वहां से से चल दिये ..अब मनुष्य की जन्मजात विनम्रता तो जाती नहीं..... गाहे बगाहे सुख दुःख पूछने मैं भी वहां जाता रहा और शायद यही बात दिव्यात्मा को बुरी लगती रही -उन्हें चाहिए उनकी पोस्ट पर जैकारा करने वाले सस्ते बन्दे और नत मस्तक चरण स्पर्श करने वाले भडुए...प्रतिभा का इतना बड़ा पतन मैंने कभी नहीं देखा ....और मनुष्यता का इतना नीचे गिर जाना ....बेलो द बेल्ट प्रहार ..
cont
इनकी ये पोस्ट डिलीट कि गयी हैं और इसमे ये अपने प्रेम सम्बन्ध वो भी ब्लॉगर महिला के साथ { हम तो महिला ही समझे हैं पर अगर ब्लॉगर पुरुष हैं तो कह नहीं सकते } दे रहे हैं । ये बहुत से छदम नामो से भी लिखते हैं जिनमे मीनाका भी एक हैं
इनकी भाषा और विषय वस्तु के केन्द्रीय बिन्दु से पता चल रहा है कि ये कितने महान वैज्ञानिक हैं। इनके लिए भड़ास पर एक स्पष्ट शब्द है "महाठरकी" जो कि अपनी बौद्धिकता के दाँत दिखाकर पता नहीं क्या सिद्ध करना चाहता है
जय जय भड़ास
अजय भाई मानवों के अध्ययन में आपका योगदान भी सराहनीय है। इस किस्म के मानव जिनका मन मशीन और खाल गैंडे की होती है... ये नये किस्म के लोग होते हैं ये यकीनन "होमो सैपियन्स" के आगे के विकसित जीव हैं
जय जय भड़ास
डॉ.रूपेश साहब ने सही लिखा कि ये नए और विकसित जीव हैं जो हम तुच्छ मनुष्यों से आगे हैं
जय जय भड़ास
बहुत खूब गुरुदेव क्या सटीक नाम दिया है "होमो सैपियन्स"
जय जय भड़ास
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