विदेशी खेल देशी तमाशा
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
गांव की पगडंडियों से गुजरता मदारी वाला आजकल बहुत परेशान है। हालांकि सदियों से यह कुनबा परेशानियां झेल रहा है, लेकिन इन दिनों मदारी और गांव-गांव घूमकर सर्कस, तमाशा व मजमा दिखाने वाले ज्यादा परेशान हैं। शहरों की 'स्ट्रीट्' पर अचानक रुककर करतब दिखाने वाला तबका तो बेहद गुस्से में है। हमने जब कारण जानने की कोशिश की तो, बेचारों का सीधा सा जवाब सुनकर हमें भी बगलें झांकना पड़ गया। इनका कहना है कि दिल्ली में विदेशी खेलों के लिए इतना बड़ा आयोजन होने जा रहा है, लेकिन हमारे तमाशे को देखकर जवान हुए इन सरकार बहादुरों को हमारा ही खेल नागवार गुजरता है। अरे, आखिर हम भी तो पब्लिक बटोरते हैं, यही नहीं, हम तो बिना स्टेडियम, बिना खेल गांव और बिना विज्ञापन के, जहां चाहें, पब्लिक इकट्ठा कर सकते हैं। फिर हमें मौका देने की बजाय, विदेशियों को बुलाया जा रहा है। यह हमारे साथ बड़ी नाइंसाफी है। हम सोच में पड़ गये कि इनका कहना भी सोलह आने सच है। सालों से ये करतबी लोग चवन्नी, अठन्नी और सिक्के की खनक पर हैरतअंगेज कारनाम दिखा रहे हैं, लेकिन इनकी कोई पूछ नहीं? लेकिन एक बात मन को तसल्ली दे गयी कि इन्हें कॉमनवेल्थ में हो रहे, घपले, घोटाले और करोड़ों के भ्रष्टाचार की जानकारी नहीं थी। मासूम अनपढ़ जो ठहरे, इनके पास रहने के लिए स्थायी ठिकाना ही नहीं है तो ब्रेकिंग न्यूज क्या खाक देखेंगे। खैर, अपनी बात तो इन्होंने कह दी, लेकिन हमारी बात सुने बगैर मदारी वाला आगे को बढ़ गया। जाते-जाते बोला-बाबू हम हराम की कमाई बिल्कुल नहीं खाते, करतब दिखाते हैं और जो भी भलेमानुष हमारी झोली में फेंक देते हैं, उसी से गुजारा करते हैं। कितना सहज सच बोल गया। हम तो आश्चर्य में पड़ गये कि क्या सचमुच ईमान-धरम की बातें बस गरीबों की झोपडिय़ों में पायी जाने वाली वस्तु बन गयी हैं? तथाकथित रईस, नवधनाड्य और पॉश इलाकों में रहने वाले इन सब चीजों से उपर उठ गये हैं। जो भी हो लेकिन तमाशबीन तो आखिरकार हमारी जनता ही है, तमाशा चाहे अंग्रेजी बूकने वाले सर्कसबाज करें या गंवई शब्दों का सहारा लेने वाले यह स्ट्रीट प्लेयर, देखने वालों की भीड़ में हम आम लोग ही होते हैं। पर यह क्या सुना है कॉमनवेल्थ गेम्स का प्रसारण दूरदर्शन कर रहा है, वह भी लेटेस्ट टेक्नालॉजी के साथ। खबर है कि आम टीवी रखने वाले दर्शक कॉमनवेल्थ का प्रसारण नहीं देख पाएंगे, उसके लिए हाई डेफिनेशन टीवी सेट का होना जरुरी है। मतलब इसमें भी झोल! कॉमन मैन को कॉमनवेल्थ गेम्स से दूर रखा जाएगा ताकि देशी तमाशबीनों का जायका कहीं खराब न हो जाय। इस मामले में सरकार की तारीफ करनी पड़ेगी, क्योंकि इससे मदारी वालों, तमाशे वालों और सड़कों पर करतब, कलाबाजी दिखाने वालों का भला होगा। पूछिए कैसे? वह ऐसे कि जब कॉमनवेल्थ गेम्स के जलवे ये लोग टीवी पर नहीं देख पाएंगे, तो मजबूरीवश इन्हें अपने पुराने खेलों और उसे दिखाने वालों की तरफ देखना होगा। इससे इन बेचारों का बहुत फायदा होगा। इंडोर स्टेडियम में भलेमानुष वातानुकूलित वातावरण में कम कपड़ों में विदेशी खिलाडिय़ों का करतब देखेंगे। तो आम आदमी, जो पहले से ही महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त है। वह सड़क का रुख करेगा और थोड़ी ही दूर पैदल चलने पर उसे कोई न कोई मदारीवाला, तमाशेवाला या सड़क पर सर्कस दिखाने वाला मिल जाएगा। जेब में भले ही एक पैसा न हो, लेकिन वह थोड़ी धक्का-मुक्की सहकर उसका आनंद ले सकता है। जो भी भाईसाहब तमाशा तो हो ही रहा है, कोई सूट-बूट, टाई पहनकर सर्कस दिखा रहा है तो कोई फटेहाल, लेकिन मजा तो आखिरकार जनता ही ले रही है। वह भी फ्री में घर पर बैठे बिठाये। चलने दीजिए तमाशा, कोई बात नहीं, क्योंकि कोई कह रहा है। देश मेरा रंगरेज रे बाबू, देश मेरा रंगरेज...
जय भड़ास जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
मनोज साहब आपकी बात से पूरी सहमति है ये हमारे देश का दुर्भाग्य है जो कि आम आदमी से ही जुड़ा है।
जय जय भड़ास
सही कहा .
जय जय भड़ास
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