अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना। - प्रदीप सिंह
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अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना।
13 घंटे पहले

2 टिप्पणियाँ:
अमित जी,
इस भूत को देख कर तो लगने लगा है की कहीं हमारे कम्पूटर से भी ये निकल के बाहर ना आ जाये.
शानदार है.
मजा आ गया.
जय जय भड़ास
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