एक डीएम चाहिए तो सात सौ नक्सलियों को रिहा करो! क्यों करे ?
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
अगर एक डीएम चाहिए तो सात सौ नक्सलियों को वापस करो। अगर एक डीएम चाहिए तो नक्सलियों के खिलाफ अभियान बंद करो। अगर एक डीएम चाहिए तो बीएसएफ का वापस बु्लाओ। जी हां, डीएम आर वी कृष्णा और एक जूनियर इंजीनियर पबित्रा माझी को अगवा करने के बाद नक्सलियों की मांगें बढ़ती ही जा रही हैं। वो डीएम की रिहाई से पहले अपनी हर मनमानी मांग पूरी करवा लेना चाहते हैं।
जो शर्तें बढ़ाई गईं उनमें कई ऐसी शर्तें हैं जिसे मानना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। मसलन नक्सलियों की मांग है कि जेलों में बंद सभी 700 नक्सलियों को रिहा किया जाए। नक्सल प्रभावित इलाकों से बीएसएफ को वापस बुलाया जाए और आंध्रप्रदेश में बनने वाले पोलावरम बहुउद्देशीय डैम प्रोजेक्ट को रद्द किया जाए
क्या हमारी सरकार इतनी बेचारी है ?
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डीएम को अगवा करने की घटना के बाद से ही उड़ीसा में भूचाल मचा है आखिर कैसे हो डीएम और जूनियर इंजीनियर की रिहाई, इसे लेकर जहां सियासी हलकों में माथापच्ची हो रही है वहीं सड़कों पर लोगों के विरोध प्रदर्शन जारी हैं। माओवादियों ने जहां सरकार से बातचीत के लिए हैदराबाद के दो माओवादी चिंतकों प्रोफेसर सोमेश्वर राव और प्रोफेसर हरगोपाल को आगे किया है वहीं सरकार को भी उनके भुवनेश्वर पहुंचने का बेसब्री से इंतजार है।
दरअसल डीएम की रिहाई के लिए पहले नक्सलियों ने अपनी दो शर्तें रखी थीं। पहली शर्त थी कि माओवादियों के खिलाफ अभियान बंद किया जाए और दूसरी शर्त कि जेलों में बंद नक्सलियों को रिहा किया जाए। उड़ीसा सरकार ने पहली शर्त तो मान ली लेकिन दूसरी शर्त पर चुप्पी साध ली। नक्सलियों ने इसके लिए उड़ीसा सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया और बाद में सरकार की अपील पर इसे बढ़ाते हुए और 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया लेकिन साथ में अपनी मांगें भी बढ़ाकर सात कर दीं।जो शर्तें बढ़ाई गईं उनमें कई ऐसी शर्तें हैं जिसे मानना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। मसलन नक्सलियों की मांग है कि जेलों में बंद सभी 700 नक्सलियों को रिहा किया जाए। नक्सल प्रभावित इलाकों से बीएसएफ को वापस बुलाया जाए और आंध्रप्रदेश में बनने वाले पोलावरम बहुउद्देशीय डैम प्रोजेक्ट को रद्द किया जाए
क्या हमारी सरकार इतनी बेचारी है ?
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1 टिप्पणियाँ:
भाई सरकार बेचारी नहीं हरामखोर और नीच है काश हम सब ये समझ पाते कि किसी भी वाद को आतंकवाद तक पहुंचने में सरकार की क्या भूमिका रहती है क्यों साम्यवाद समाज में मार्क्सवाद से होते हुए माओवाद तक आकर सशस्त्र और रक्तरंजित हो जाता है? क्यों सरकार कसाब जैसे नरपिशाचों को दामाद बना कर बैठाए है जनता इस सवाल के लिये कभी पत्थर हाथ में लेकर सड़कों पर क्यो नहीं आती? जनता आएगी बाबरी मस्जिद तोड़ने या गूजरों को पिछड़ी जाति में लाकर आरक्षण दिलाने के लिये..... नीच हैं सब जितनी गालियां हो सकती हैं सब इन कमीनों को सादर समर्पित....
जय जय भड़ास
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