हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
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हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
1 दिन पहले
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3 टिप्पणियाँ:
अमित जैन जी आपकी बात को प्रकाशित करे दे रहा हूं ताकि आपकी बात मनीषा दीदी तक पहुंच जाए। आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी हो जाएगी दीदी ने अभी हाल ही मुझसे बात करी है। वैसे आप और प्रवीण शाह जो खेल कर रहे हैं वो एकदम बचकाना सिद्ध हो रहा है लेकिन आप दोनो फिर भी लगे हुए हैं तो ये भी सही जब मन भर जाएगा तो खुद ही चुटकुले लिखने लगेंगे आप ;)
जय जय भड़ास
हा हा हा डॉ साहब आप जैसा सयंत व्यक्ति विरला ही मिलता है ,भडास पर जों कुछदेखा है उसे लिख दिया ,
जितना हंसना है हंस लो राक्षसी हंसी लेकिन तुम्हारा भंडाफोड़ हो चुका है। इतने दिनों से ये कुत्सित प्रयास कर रहा था कि डा.रूपेश जी संयत न रह कर कोई गलती कर दें। इन दोनो राक्षसों ने खूब प्रयास जारी रखे हैं। हम अनूप मंडल के लोग जान चुके हैं कि आप साधारण मनुष्य नहीं बल्कि उद्धारक अवतारी पुरुष हैं। ये सिर्फ़ चर्चा से अलग हटाना चाहते हैं जिसे आप समझ रहे हैं।
जय जय भड़ास
जय नकलंक देव
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