एक कहानी जो आज ही पढ़ी और बड़ी सार्थक लगी

शनिवार, 3 सितंबर 2011

जंगल से गुजरते कुत्ते का सामना लोमड़ी से हुआ तो वह चकरा गया. कारण था, लोमड़ी का बदला हुआ रूप. माथे पर तिलक, गले में रुद्राक्ष माला, कंधों पर रामनामी दुपट्टा. वह लोमड़ी के स्वभाव को जानता था. बात-बात में झूठ बोलना, कदम-कदम पर धोखा देना उसकी आदत थी. यह काम वह बिना किसी झिझक, बिना लोक-लिहाज के करती. इसी में अपना बड़प्पन समझती थी. कुत्ते का हैरान होना स्वाभाविक था—
‘राधे-गोविंदम्, राधे-गोविंदम्…इस नाम में बड़ा सुख है, अनुपम आनंद…मेरे साथ-साथ तुम भी भजो, राधे-गोविंदम्…राधे-गोविंदम्…!’ लोमड़ी नाचने लगी.
‘अचानक यह परिवर्तन कैसे हुआ दीदी? क्या जंगल में घूमते-घामते कृष्ण-मुरारी के दर्शन हुए थे?’ कुत्ते ने पूछा.
‘राधे-गोविंदम्, राधे-गोविंदम्…कृष्ण-मुरारी तो मेरे हृदय में बसे हैं.’ लोमड़ी ने अपने दिल की ओर इशारा किया और आगे बढ़ गई. कुत्ता पीछे-पीछे चलने लगा. थोड़ी दूर जाने पर एक सियार दिखाई पड़ा. उसके मुंह में मांस का टुकड़ा था. लोमड़ी की लार टपकने लगी. कुत्ता पेड़ की ओट में छिप गया.
‘राधे-गोविंदम्, राधे-गोविंदम्…सियार भाई क्या आपको अपने प्राणों की जरा-भी चिंता नहीं है?’
‘क्या हुआ, बहन?’
‘दस दिन का भूखा शेर सर्कस से छूटकर जंगल में घूम रहा है. मुझपर तो मेरे गोविंदजी का आशीर्वाद है, इसीलिए कुछ बिगाड़ नहीं सकता. मगर आप सोच लीजिए, जिस प्राणी ने दस दिन से कुछ खाया-पिया न हो, उसकी क्या हालत होगी…’ सियार के पैर उखड़ गए. उसके जाते ही लोमड़ी ने मांस का टुकड़ा उठा लिया, जो सियार के मुंह खोलते ही जमीन पर जा गिरा था.
मांस खाने के बाद लोमड़ी ने डकार ली और आराम के लिए पेड़ के नीचे लेट गई. तभी भालू वहां से गुजरा. लोमड़ी को आराम फरमाते देख वह बराबर में बैठ गया—
‘मैं तो तुमसे परमात्मा के बारे में दो अच्छे बोल सुनने आया था. पर लग रहा कि बहुत थकी हुई हो?’
‘जंगल पर कोई कष्ट न आए, इसलिए तीर्थयात्रा पर गई थी. तीन दिन, तीन रात तक लगातार चलती रही…’
‘अरे, पहले क्यों नहीं बताया…मैं अभी तुम्हारे पैर दबाए देता हूं.’ भालू खुशी-खुशी बोला.
‘तुम्हें यह सब करने की क्या जरूरत है?’
‘मौंसी तुम पूरे जंगल की फिक्र करती हो, क्या मैं तुम्हारी जरा-सी सेवा भी नहीं कर सकता.’ कहकर भालू लोमड़ी के पैर दबाने लगा. थोड़ी देर बाद उसे नींद ने आ घेरा तो भालू वहां से उठकर चल दिया. उसके जाते ही कुत्ता वहां पहुंचा. कुत्ते को देखकर लोमड़ी ने आंखें खोल दीं, बोली—
‘तुमने पूछा था, यह परिवर्तन कैसे हुआ. तो सुनो. पहले पेट भरने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती थी. फिर भी पेट कभी भरता था, कभी नहीं. किसी के मुंह का निवाला छीनो तो वह पूरे जंगल में बदनाम कर देता था. अब वह बात नहीं है. जंगल के जानवर देखते ही अभिवादन करते हैं. शेर यह कहकर शिकार छोड़ देता है कि पहले मैं खा लूं….धोखा देने, झूठ बोलने पर अब पहले जैसी बदनामी नहीं होती. जानते हो, यह सब किसकी बदौलत संभव हुआ है, इनकी…’ लोमड़ी ने अपने दुपट्टे और कंठमाल की ओर इशारा किया—
‘मेरे लिए तो यही मेरे कृष्ण-मुरारी हैं. मेरी मानो तुम भी ऐसा ही कुछ कर लो…बाकी जिंदगी मजे लूटोगे.’
कुत्ता चुपचाप वापस बस्ती की ओर लौट पड़ा.

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