नवरात्र का का स्वास्थ्य पर प्रभाव
शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011
हिंदुओं के जितने भी पर्व त्योहार हैं,विज्ञान-सम्मत हैं :उनका आधार केवल धार्मिकता ही नहीं है अपितु देश, काल और समाज-सभी को लक्ष्य में रखते हुए उनके मनाये जाने का निर्देश हुआ है :शारदीय एवं वासन्तिक नवरात्रों के सम्बन्ध में भी यह बात लागू होती है : सारांश यह कि शरत् और वसंत -ये दोनों ऋतुएँ स्वास्थ्य की द्रष्टि से बहुत खराब हैं :इनमें तरह-तरह के रोग लोगो को होते हैं.अतएव चैत्र और आश्विन मास में विशेष रूप से पूजा-पाठ करना चाहिए,जिससे कल्याण हो : शरद और वसन्त काल में विविध प्रकार ज्वर, उदर-रोगादि से जन-समाज पीड़ित होता है; केवल वही लोग स्वस्थ रह जाते हैं,जो खान-पान के सम्बन्ध में सजग रहते है : `नवरात्र` की अवधि में व्रत अर्थात उपवास करने का नियम है :इससे `नवरात्र` के मानाने वाले सामयिक शारीरिक क्लेश से सहज ही बच जाते है : स्वास्थ-सम्बन्धी उक्त दृष्टीकोण के अतिरिक्त `नवरात्र`के नौ दिनों तक देवी-मंदिरों,पीठ-स्थानों आदि पवित्र स्थलों पर जन-समुदाय एकत्र होकर विविध प्रकार के उत्सवों का आयोजन करता है :सभी लोग एक-मति भक्ति-पूर्वक श्रीजगदम्बा की पूजा-अर्चा करतें है :इससे विभिन्न देवोपासकों में सौहार्द उत्पन्न होता है और `विभिन्नता`में एकता की अनुभूति` के भारतीय परमादर्श की उपलब्धि होती है : |
धन्यवाद एवं हार्दिक शुभेच्छा,
राकेश चन्द्र
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