गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012


वरिष्ठ भड़ासी "एक्स मैन" नहीं रहे
य नाम उन्हें महाराष्ट्र पुलिस ने दिया था। एक लम्बे आपराधिक कैरियर के बाद उन्होंने सामान्य जीवन अपनाया था। उन्होंने अपने कैरियर में(भाई अपराध भी तो हमारे देश में एक कैरियर की ही तरह स्वीकृत है यदि यकीन न हो तो अपने राजनेताओं को देख लीजिये) कार चोरियाँ, हत्या, लूट आदि पर अपने हाथ आजमाए थे लेकिन वे सिर्फ़ कारचोरी की विधा में खुद को अधिक सहज पा सके जिसे उन्होंने अपने पूरे कैरियर में अपनाए रखा था। भड़ास से उनका जुड़ना सभ्य समाज के मुखौटाधारी व्यवहार के चलते था। हम सब उन्हें चाचाजी कहा करते थे और जबसे उन्होंने टैक्सी चलाना शुरू करा था तो उनके मनोरंजक अनुभव हम सबके लिये खासी हँसी का विषय बने रहते थे। अच्छे खासे चाचाजी हँसते मुस्कराते चाची को अपने हाथ से चाय पिलाने के बाद अपने पड़ोस में रहने वाली बुजुर्ग दादी टाइप सब्जीवाली को चाय पिला कर आते वक्त सिर दर्द हो रहा है ऐसा कह कर सड़क पर ही बैठ गये। बच्चों ने चाची को दौड़ कर खबर दी जिसपर उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने का मन्सूबा करते करते चाचाजी चले गये। चाची ने हमें खबर दी और हमने उस वरिष्ठ भड़ासी को जिसने ऑफ़लाइन जीवन भर तमाम लोगों के मुखौटों को नोचा, ईश्वर से अशाँत रखने की प्रार्थना के साथ तुर्भे(वाशी) के कब्रिस्तान में दफ़ना दिया। कब्र में लिटाते वक्त भी चाचाजी के चेहरे की मुस्कराहट बरकरार थी जैसे कह रहे हों कि अब मैं देखता हूं उस दुनिया बनाने वाले को..... स्स्साआआल्ला.... पता नहीं क्या चाहता है?
जय जय भड़ास

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