शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार
रविवार, 20 मई 2012
आँगन सूना घर हुआ, बच्चे घर से दूर।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।
जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।
ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।
कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।
जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।
जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।
ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।
कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।
जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।
1 टिप्पणियाँ:
शानदार प्रस्तुती यहा भी पधारे yunik27.blogspot.com
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