काले धन पर सफेद पर्दा--Dr.Ved Pratap Vaidik

मंगलवार, 29 मई 2012


काले धन पर सफेद पर्दा

 हमारी सरकार की साख इतनी गिर गई है कि उसने काले धन पर जो श्वेत-पत्र् जारी किया है, उसे कोई कोरा कागज कह रहा है तो कोई खाली पत्र और कोई सफेद पर्दा! सरकार की साख पर तो उसी समय मोटा प्रश्न चिन्ह लग गया था जब सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी मंशा पर उंगली उठा दी थी| अदालत का कहना था कि विदेशों में छिपे काले धन को वापस लाने की इच्छा इस सरकार में नहीं है| सरकार में यदि ज़रा-सी भी इच्छा-शक्ति होती तो वह इस श्वेत-पत्र का भरपूर इस्तेमाल करती और अदालत का संदेह दूर कर देती| 
इस श्वेत-पत्र में सरकार ने यह नहीं बताया कि विदेशों में छिपा हुआ भारतीय काला धन कुल कितना है| उसने सिर्फ स्विस बैंकों का एक आंकड़ा दिया है| वह भी ऐसा कि जिससे सरकार की मिट्टी पलीद होती है| 2006 में वहां 23,373 करोड़ रू. जमा था| 2010 में वे घटकर 9295 करोड़ रह गए| याने 14 हजार करोड़ रू. गायब हो गए| वे कहां गए? या तो उन्हें दुनिया के अन्य अधिक सुरक्षित बैंकों में सरका दिया गया है या फिर विदेशी विनिवेश का चोला पहनाकर उन्हें फिर से भारत में खपा दिया गया है| इस धूर्त्तता के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या भारत सरकार नहीं? सरकार ने यह पता क्यों नहीं किया कि यह रूपया किनका था और स्विस बैंकों से वह कहां गया? इस रूपए को सरकार ने 2006 में ही क्यों नहीं धर दबोचा| यह तो दो साल पुराना आंकड़ा है| इन दो वर्षों में बाबा रामदेव ने काला धन के विरूद्घ इतना प्रचंड आंदोलन छेड़ा है कि यदि सरकार 2012 का आंकड़ा खोजवाए तो शायद उसे पता चलेगा कि लगभग सारा काला धन ही गायब हो गया है| 
इस श्वेत-पत्र् में सरकार ने उन तरकीबों का जि़क्र किया है, जिनका इस्तेमाल करके लोग अपने काले धन को पहले विदेश भेजते हैं और फिर उसे भारत बुलवा लेते हैं| इस अपराध के हर दांव-पेंच को सरकार जानती है लेकिन सब कुछ जानते हुए भी वह कुछ नहीं करती| अब तक उसने मोरिशस और सिंगापुर के रास्ते भारत आनेवाले काले धन पर रोक क्यों नहीं लगाई? रोक लगाने का इंतजाम क्या वह तब करेगी, जब स्विस बैंकों में से ही नहीं, दुनिया के दूसरे बैंकों से भी सारा काला धन गायब हो जाएगा? ये ही वे प्रश्न हैं, जो सरकार और काले धनवालों के बीच मिली भगत का संदेह उत्पन्न करते हैं| 
यदि इस श्वेत पत्र् में सरकार यह बताती कि भारत और विदेशों में कुल काला धन कितना हो सकता है और उसे पकड़ने के लिए वह क्या-क्या कदम उठानेवाली है तो श्वेत-पत्र की कुछ प्रामणिकता बन जाती लेकिन सरकारी अनुमान तो गैर-सरकारी अनुमानों से भी ज्यादा गया बीता है| यदि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पारदर्शिता संगठनों के अनुसंधानों को ही आधार बना लिया जाता तो अधिक प्रामाणिक आंकड़ा उभर सकता था| उसके साथ-साथ यदि विदेशी बैंकों के भारतीय खातेदारों के नाम भी प्रकट कर दिए जाते, खासतौर से उनके, जिन पर मुकदमे चल रहे हैं तो सरकार की साख बढ़ जाती लेकिन श्वेत-पत्र इस अदा से पेश किया गया है, मानो सरकार ने कालेधन पर एक सफेद पर्दा डाल दिया है| इस श्वेत-पत्र पर प्रतिपक्षी दल भाजपा ने गहरा आक्षेप किया है, हालांकि उसके आग्रह पर ही इसे जारी किया गया है| इस श्वेत-पत्र् के कारण अब बाबा रामदेव के आंदोलन को नई प्राण-वायु प्राप्त होगी| 
इस श्वेत-पत्र में काले धन को रोकने और पकड़ने के कई उपाय सुझाए गए हैं| जैसे संपत्ति के क्रय-विक्रय पर तत्काल कर लगाया जाए, बड़े लेन-देन चेक और क्रेडिट-डेबिट कार्डों से किए जाए, तथा पेन नंबर बताना अनिवार्य हो, कर छूट दी जाए, वित्तीय अपराधों के लिए द्रुत न्यायालय बनें, दोषियों को कठोर सज़ा दी जाए, लोकपाल और लोकायुक्त नियुक्त किए जाएं लेकिन क्या इन पवित्र् इरादों से काला धन खत्म हो जाएगा या पकड़ा जाएगा? ये सब सुझाव तो विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री या सुविज्ञ पत्र्कार भी दे सकते हैं लेकिन सरकार का काम सुझाव देना नहीं, उन्हें लागू करना है| कितनी विडंबना है कि इधर श्वेत-पत्र में लोकपाल और लोकायुक्त की बात कही गई और उसके कुछ घंटे बाद ही लोकपाल के मामले को प्रवर समिति की दरी के नीचे सरका दिया गया| अगले तीन महिने के लिए टाल दिया गया| 
काले धन के मामले में इस सरकारी टाल-मटोल का मूल कारण क्या है? वह कौनसा रहस्य है, जिसके कारण इस मामले में सरकार बिल्कुल असहाय-निरूपाय मालूम पड़ती है? इसका रहस्य यही है कि काले धन के बिना इस देश में कोई भी पार्टी सरकार बना ही नहीं सकती| देश की दोनों प्रमुख पार्टियों ने अपना जो सालाना हिसाब प्रकट किया है, वह सैकड़ों करोड़ रू. का है| यह तो प्रकट हिसाब है और जो अप्रकट है याने जो बेहिसाब हिसाब है, वह तो हजारों करोड़ रू. का है| 500 से ज्यादा उम्मीदवारों को सिर्फ चुनाव लड़ाने पर कितने हजार करोड़ रू. खर्च होते होंगे? यह पैसा कैसा है? क्या यह काला धन नहीं है? जिस धन के बिना किसी राजनीतिक दल की दुकान एक दिन भी नहीं चल सकती, उसे यह सरकार भला खत्म कैसे कर सकती है? अपने पांव पर नेतागण कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे?
काला धन ही सारे भ्रष्टाचार का माध्यम है| अवैध दलाली, रिश्वत, ब्लेकमेल का पैसा, आतंकवादी धन, तस्करी का पैसा आखिर कैसे लिया-दिया जाता है? टैक्स-चोरी से भी काला-धन पैदा होता है लेकिन वह उतना काला नहीं होता, जितना कि ऊपर बताए तरीकों से होता है| आम लोगों में यह भावना भी घर कर गई है कि हम अपने खून-पसीने की कमाई टैक्स पर क्यों लुटाएं? हमारे टैक्स को तो नेता डकार जाते हैं| लाखों रू. रोज हर नेता के रख-रखाव, वेतन-भत्ते, सुरक्षा और यात्रओं पर खर्च होते हैं और 80 करोड़ लोग सिर्फ 35 रू. रोज पर गुजारा करते हैं| यह धारणा अभी व्यक्तिगत स्तर पर है| इसलिए लोग टेक्स-चोरी करते हैं लेकिन यही धारणा यदि सामूहिक स्तर पर फैल गई तो क्या होगा? यदि देश के लोगों ने सिविल नाफरमानी या सविनय अवज्ञा शुरू कर दी तो क्या होगा? यदि सारे देश के लोग कह दें कि ए सरकार, हम तुम्हें टैक्स नहीं देंगे| तुम पहले विदेशों में जमा काले धन को वापस लाओ और उससे अपना खर्च चलाओ तो यह सरकार क्या कर लेगी? एक अंतरराष्ट्रीय अनुमान के अनुसार विदेशों में जमा भारतीय काला धन इतना ज्यादा है कि भारत सरकार का दस साल का खर्च सिर्फ उसी से चल सकता है| इसके पहले कि देश में सिविल नाफरमानी या सविनय अवज्ञा का प्रचंड वातावरण तैयार हो जाए, सरकार से आशा की जाती है कि वह काले धन के मूल पर प्रहार करेगी| सिर्फ श्वेत-पत्र जारी नहीं करेगी|


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