(India Water Forum) - एक अनमोल, बेमोल और असाधारण पुस्तक

शुक्रवार, 18 मई 2012


आज भी खरे हैं तालाब

(एक कालजयी पुस्तक)

एक अनमोल, बेमोल और असाधारण पुस्तक

Author: चिन्मय मिश्र

'आज भी खरे हैं तालाब' करीब दो दशक पूर्व पर्यावरण कक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित की गई ऐसी पुस्तक थी जिस पर कोई कॉपीराइट नहीं है। तब से अब तक इस पुस्तक के बत्तीस संस्करण आ चुके हैं और करीब दो लाख से अधिक प्रतियां पाठकों तक पहुंच चुकी हैं। हिन्दी के अलावा इसके पंजाबी, बांग्ला, मराठी, उर्दू एवं गुजराती भाषा में संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इतना ही नहीं इक्कीस आकाशवाणी केंद्रों ने इस पुस्तक को संपूर्णता में प्रसारित किया है और कुछ ने तो श्रोताओं की मांग पर दो-तीन बार पुनः प्रसारित किया है। गांधी शांति प्रतिष्ठान ने इस 'अनमोल' पुस्तक के नवीनतम संस्करण को 'बेमोल' वितरित करने का अनूठा निर्णय लिया है। यह विशेष संस्करण भी दो हजार प्रतियों का है। पुस्तक का शुरुआती वाक्य है 'अच्छे-अच्छे काम करते जाना।' अनुपम जी भी ढेरों अच्छे काम करते रहते हैं और सारा श्रेय दूसरों को सौंपकर हमेशा भार मुक्त बने रहते हैं, जिससे कि अगला अच्छा कार्य कर पाएं। पुस्तक की पंक्तियां हैं 'जहां सदियों से तालाब बनते रहे हैं, हजारों की संख्या में बने हैं - वहां तालाब बनाने का पूरा विवरण न होना शुरु में अटपटा लग सकता है, पर यही सबसे सहज स्थिति है। 'तालाब कैसे बनाएं' के बदले चारों तरफ 'तालाब ऐसे बनाएं' का चलन था।'

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आज भी खरे हैं तालाब


अपनी पुस्तक "आज भी खरे हैं तालाब" में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।
भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में एक "गाइड" का काम करता है। अनुपम जी ने पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों तक काम किया है और वर्तमान में वे गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के साथ कार्य कर रहे हैं। उनकी पुस्तकें, खासकर "आज भी खरे हैं तालाब" तथा "राजस्थान की रजत बूंदें" , पानी के विषय पर प्रकाशित पुस्तकों में मील के पत्थर के समान हैं, और आज भी इन पुस्तकों की विषयवस्तु से कई समाजसेवियों, वाटर हार्वेस्टिंग के इच्छुकों और जल तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा और सहायता मिलती है।


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आज भी खरे हैं तालाब (बंगाली)

अपनी पुस्तक "आज भी खरे हैं तालाब" में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।
भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में एक "गाइड" का काम करता है। अनुपम जी ने पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों तक काम किया है और वर्तमान में वे गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के साथ कार्य कर रहे हैं। उनकी पुस्तकें, खासकर "आज भी खरे हैं तालाब" तथा "राजस्थान की रजत बूंदें", पानी के विषय पर प्रकाशित पुस्तकों में मील के पत्थर के समान हैं, और आज भी इन पुस्तकों की विषयवस्तु से कई समाजसेवियों, वाटर हार्वेस्टिंग के इच्छुकों और जल तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा और सहायता मिलती है। 

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आज भी खरे हैं तालाब (मराठी)
अपनी पुस्तक "आज भी खरे हैं तालाब" में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।
भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में एक "गाइड" का काम करता है। अनुपम जी ने पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों तक काम किया है और वर्तमान में वे गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के साथ कार्य कर रहे हैं। उनकी पुस्तकें, खासकर "आज भी खरे हैं तालाब" तथा "राजस्थान की रजत बूंदें", पानी के विषय पर प्रकाशित पुस्तकों में मील के पत्थर के समान हैं, और आज भी इन पुस्तकों की विषयवस्तु से कई समाजसेवियों, वाटर हार्वेस्टिंग के इच्छुकों और जल तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा और सहायता मिलती है। 
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હજુ સુધી તળાવ છે

અનુપમ મિશ્ર

તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)તેમના પુસ્તક "તળાવ ઉપર હજુ પણ છે" ભારત તરફ, શ્રી અનુપમ જી તળાવો, પાણી - પાક સિસ્ટમો, પાણી - ઘણા ભવ્ય પરંપરા ની સમજણ વ્યવસ્થા તળાવો, અને પાણી, તત્વજ્ઞાન અને સંશોધન દસ્તાવેજીકૃત છે.

ભારત પરંપરાગત જળાશયોમાં, આજે ગામો અને નગરો હજારો જીવાદોરી સમાન છે. આ અનન્ય જીવંત ક્રિયા છે, જે સમગ્ર દેશમાં ફેલાય શેડો જેવા ગંભીર જળ કટોકટી સાથે વ્યવહાર કરવામાં આવે છે અને સમસ્યાને "માર્ગદર્શન" કામ કરે છે સમજો. અનન્ય વસવાટ કરો છો પર્યાવરણ અને પાણી - વર્ષ માટે વ્યવસ્થાપન ક્ષેત્રમાં કામ કર્યું છે અને હાલમાં ગાંધી પીસ ફાઉન્ડેશન, નવી દિલ્હી સાથે કામ કરે છે.

તેમના પુસ્તકો, ખાસ કરીને અને "સિલ્વરટચ રાજસ્થાનના ટીપાં" પ્રકાશિત લક્ષ્યો પાણી વિષય પર પુસ્તકો જ છે, અને આજે પણ આ પુસ્તકો Smajasavieon થીમ ઘણા "હજુ સુધી તળાવ છે", પાણી લણણી અને પાણી વિહોણું પ્રોત્સાહન અને મદદ લોકો ક્ષેત્રમાં ટેકનિકલ કામ કરે છે.


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آج آج بھی کھرے ہیں تالاب

مصنف - انوپم مشر
آج بھی کھرے ہیں تالابآج بھی کھرے ہیں تالاباپنی کتاب "آج بھی کھرے ہیں تالاب" میں جناب انوپم مشر صاحب نےپورے ہندوستان کے تالابوں، ماضی میںپانی محفوظ کرینےکےطریقوں،پانی کے بیہترانتظام،جھیلوں،تالابوں اورپانی کی کئی شاندار روایات کی سمجھ ، فلسفہ اور تحقیق کواس کتاب میں انتہاءی سلیقے اور آسان زبان میں تحقیق کے ساتھ درج کیا ہے۔
ہندوستان میں پانی کی حفاظت کے یہ روایتی طریقے،آج بھی ہزاروں گاؤں اور قصبوں کے لئے لایف لاین کے مساوی ہیں.انوپم جی کا یہ کام ، ملک بھر میں سیاہ سایہ کی طرح پھیل رہی پانی کی شدید قلت سے نمٹنے اور مسائل کو اچھی طرح سمجھنے میں ایک "گائیڈ" کا کام کرتا ہے.انوپم جی نے ماحولیات اورواٹر منیجمینٹ کے میدان میں برسوں تک کام کیا ہے، فی الحال وہ گاندھی امن فاؤنڈیشن ، نئی دہلی کے ساتھ کام کر رہے ہیں. ان کی کتابیں ، خاص طور پر "آج بھی کھرے ہیں تالاب" اور "راجستھان کی نقرئی بوندیں" ، پانی کے موضوع پر شائع کتابوں میں میل کے پتھر کی مانند ہیں ، آج بھی ان کتابوں کے مندرجات سماجی کارکُنوں، واٹر هاروےسٹنگ میں دلچسپی رکھنے والے اور پانی کے تکنیکی شعبے میں کام کرنے والے لوگوں کے لیے نہ صرف حوصلہ افزاءی اورترغیب دیتے ہیں بلکہ ان کے کاموں میں معاون بھی ثابت ہوتے ہیں ۔ 

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ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ

ਅਨੁਪਮ ਮਿਸ਼੍ਰ
आज भी खरे हैं तालाब (पंजाबी)ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ "ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ" ਵਿੱਚ ਸ਼੍ਰੀ ਅਨੁਪਮ ਜੀ ਨੇ ਸਮੁੱਚੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਤਾਲਾਬੋਂ , ਪਾਣੀ - ਇਕੱਤਰੀਕਰਨ ਪੱਧਤੀਯੋਂ , ਪਾਣੀ - ਪ੍ਰਬੰਧਨ , ਝੀਲਾਂ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਅਨੇਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੀ ਸੱਮਝ , ਦਰਸ਼ਨ ਅਤੇ ਜਾਂਚ ਨੂੰ ਲਿਪਿਬੱਧ ਕੀਤਾ ਹੈ ।
ਭਾਰਤ ਦੀ ਇਹ ਹਿਕਾਇਤੀ ਪਾਣੀ ਸੰਰਚਨਾਵਾਂ , ਅੱਜ ਵੀ ਹਜਾਰਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬੀਆਂ ਲਈ ਜੀਵਨਰੇਖਾ ਦੇ ਸਮਾਨ ਹਨ । ਅਨੁਪਮ ਜੀ ਦਾ ਇਹ ਕਾਰਜ , ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਾਲੀ ਛਾਇਆ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੈਲ ਰਹੇ ਭੀਸ਼ਨ ਜਲਸੰਕਟ ਵਲੋਂ ਨਿੱਬੜਨ ਅਤੇ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੱਮਝਣ ਵਿੱਚ ਇੱਕ "ਗਾਇਡ" ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਅਨੁਪਮ ਜੀ ਨੇ ਪਰਿਆਵਰਣ ਅਤੇ ਪਾਣੀ - ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਸਾਲਾਂ ਤੱਕ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਵਿੱਚ ਉਹ ਗਾਂਧੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਠਾਨ , ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਨਾਲ ਕਾਰਜ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਿਤਾਬਾਂ , ਖਾਸਕਰ "ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ" ਅਤੇ "ਰਾਜਸਥਾਨ ਦੀ ਰਜਤ ਬੂੰਦਾਂ" , ਪਾਣੀ ਦੇ ਵਿਸ਼ਾ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਕਿਤਾਬਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਲ ਦੇ ਪੱਥਰ ਦੇ ਸਮਾਨ ਹੈ , ਅਤੇ ਅੱਜ ਵੀ ਇਸ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਵਿਸ਼ਇਵਸਤੁ ਵਲੋਂ ਕਈ ਸਮਾਜਸੇਵੀਆਂ , ਵਾਟਰ ਹਾਰਵੇਸਟਿੰਗ ਦੇ ਇੱਛੁਕੋਂ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਤਕਨੀਕੀ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕਾਰਜ ਕਰ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਅਤੇ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । 

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