तमिल हिंदी के बीच सेतु है संस्कृत–डॉ. मधुसूदन

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

 

       तमिल हिंदी के बीच सेतु है संस्कृतडॉ. मधुसूदन

 

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(१) विषय प्रवेश।

सभी प्रबुद्ध टिप्पणीकार पाठकों की उत्साह-जनक टिप्पणियों के कारण ही, इस विषय को और आगे बढाने का विचार दृढ हुआ। पर यह मैं भी अनुभव करता रहता था, कि, अनेक भारतीय़, तमिल भाषा की ओर, कोई परदेशी भाषा की दृष्टि से, जैसे कि वह कोई हवाईयन भाषा ना हो, देखा करते हैं। इस लिए भी, इसी विषय पर और अधिक लिखकर कुछ मात्रा में भ्रम-निरास करने का प्रयास आवश्यक समझ कर, विषय को और आगे बढाने का विचार किया।

(२) हमारी फूट का कारण:

ऐसे भ्रम का कारण कुछ मात्रा में मिशनरी काल्डवेल महाशय का षड यन्त्रकारी काम भी है। उन के विषय में कुछ जानकारी "मानसिक जातियाँ" नामक मेरे द्वारा लिखे गए तीन लेखों में प्रस्तुत की जा चुकी है। इसी लेख के अंत में, संदर्भित लेख की कडी दी है। इसी विषय पर, विद्वान डॉ. एच. बालसुब्रह्मण्यम जो, सुप्रसिद्ध तमिल-हिन्दी अनुवादक और लेखक हैं, उनका भी मत इसी सच्चाई की पुष्टि करता है।

(३)शब्दों की सादृश्यता

सूचि के, शब्दों की सादृश्यता परखते परखते, एक पहेली सुलझाने जैसा, रंजक अनुभव भी, माँ वीणा वादिनी की कृपासे, अनुभव कर रहा हूँ। आप को भी ऐसा ही रंजक अनुभव हो।

हिन्दी और तमिल के बीच एक सेतु है , "संस्कृत के शब्द ", जो राष्ट्रीय एकता में, रामसेतु ही सिद्ध होंगे, ऐसा विश्वास हो रहा है। वैसे, जोडने वाले शब्द जो संस्कृत कहे जा रहें हैं, वे तमिल (द्रविड) मूल के भी हो सकते हैं। पर, इस आलेख में, हमें उस की ,समान कडी का शोध ही, लक्ष्य है।

(४) तमिल के, संस्कृत शब्द

तमिल के संस्कृत मूलक शब्द परखने में कुछ कठिन लगते हैं। कारण है, उन शब्दों का तद्‌भव, या बदला हुआ रूप। और दूसरा कारण है, तमिल भाषियों का (ऍक्सेन्ट) स्वराघात।

सरल शुद्ध संस्कृत का शब्द "संन्यास" —>सन्नियासमं बन जाता है। सत्याग्रह —–> सत्तियागिरहम्, और समुद्र —–> समुद्दिरम्, हो जाते हैं, और यह भ्रांत मान्यता कि तमिल भाषा अलग ही है, तो समझने का प्रयास भी नहीं होता। कठिनाई दोनों ओर है। सोचने पर, आप को ऐसे और कारण भी, निश्चित दृष्टिगोचर होते चलेंगे।

वैसे हमारी उत्तरी भाषाओं में भी स्नान का नहाना, क्षत्रिय का खत्री, आचार्य का आयरियाणं, ऐसे ऐसे परिवर्तन हो चुके हैं। क्या नहाना सुनने पर अहिंदी भाषी भांप सकता है, कि नहाना स्नान का प्राकृत रूप होगा ? या आयरियाणं सुनकर अनुमान कर लेगा, कि उस शब्द का मूल शुद्ध आचार्य है? लगता नहीं है। एक और कारण है, तमिल लिपि की उच्चारण विशेषता, जो अगले परिच्छेद में स्पष्ट की जाएगी।

(५)तमिल लिपि की उच्चारण विशेषता

तमिल लिपि की उच्चारण विशेषता , उस लिपि में कम वर्ण होने के कारण है।

तेलुगु, कन्नड, और मल्ल्याळम की ऐसी समस्या नहीं है, वे लिपियाँ देवनागरी की प्रतिकृतियाँ ही मानी जाएगी। ऐसी समस्या और किसी भी भाषा की नहीं है। माना जाता है, कि मल्ल्याळम, तेलुगु, और कन्नड तीनों में संस्कृत शब्द ७० से ८० % है।केवल तमिल में यह प्रतिशत ४० से ५० % तक माना जाता है।शब्द कोश के कुछ प्रतिनिधिक पॄष्ठोंपर छपे हुए, शब्दों की गिनती कर, भाषा वैज्ञानिक ऐसा सांख्यिकी निष्कर्ष निकालते हैं।

इस भूमिका से सज्ज होकर, आप निम्न सूचि का, एक चित्त होकर, अवलोकन करें।

आप को अनुभव करने में कठिन नहीं होगा, कि तमिल में भी काफी संस्कृत मूल के शब्द है।

(६) स से प्रारंभ होने वाले शब्द

स से प्रारंभ होने वाले शब्दों की ही सूचि लेते हैं। निम्न सारणी में बाईं ओर हिन्दी/संस्कृत शब्द देकर —> की दाहिनी ओर तमिल शब्द, और कोष्ठक में (पर्याय वाची हिन्दी/संस्कृत) शब्द दिये हैं।

शब्द सूचि में, जो शब्द संस्कृतजन्य , प्रतीत हुआ, उसी का चयन किया गया है। ४० से ५० % का अनुमान भाषा वैज्ञानिकों का है। मैं मेरी अपनी जानकारी के लिए, कुछ ठोस प्रमाण चाहता था, जो मिला, उसी को आप के समक्ष रख रहा हूँ। तत्सम और तद्‌भव दोनों प्रकारके शब्द लिए हैं।

(७) हिंदी/संस्कृत ——>तमिल (हिंदी/संस्कृत)


संकट —> संकड़म्,

संगीत —–> संगीदम्,

संग्राम (युद्ध,) —> युद्दम्,

संचार — –> संचरित्तल

संतति —-> संतति, कुऴन्दै (कुल में जन्में )

संताप — > मनक्कष्टम्,(मन-कष्ट), वेदनै (वेदना)

संतुष्टि —–>तिरुप्ति (तृप्ति)

संतोष —–>तिरुप्ति( तृप्ति)

संदर्भ —–> सन्दर्बम,

संदेश —->समाचरं (समाचार)

संन्यास —>सन्नियासमं; सन्यासम्।

संन्यासी —-> सन्नियासि।

संप्रदाय —–> परम्परै (परम्परा ), सम्प्रदायम्,

संबंध —–> संबंदम्,

संरक्षक —–>पोषकर,

संरक्षण —-> पोषणै, संरक्षणै; संरक्षणै

संवारना —–> अलंगरिक्क;

संवेदना —–> अनुताबम्; (अनुताप)

संशय —-> संदेहम्,

संस्कार —–> शुद्दिकरित्तल्;(शुद्धिकर)

संस्था —–> स्तापनम्,(स्थापनं)।

संस्थापक —–> स्तापकर; (स्थापकर)

आरंबिप्पवर् (आरंभ प्रवर?)

सख्त (कठोर) —>कडिनमान (कठिनमान?)

सच्चा –> योग्गियमान;(योग्य) असलान (असल)

सज़ा —–> दंडनै

सजाना —->अलंगरिक्क

सजावट —–> अलंगारम्

सतर्क — —> जाग्गिरदैयान (जागृतिवान)

सतर्कता — >जाक्किरदै (जागृति? )

सत्कार —–> उपचारम्; (औपचारिक व्यवहार)

सत्ता —-> आदिगारम्, (अधिकारं)

सत्तू —–> सत्तु मावु

सत्याग्रह —–> सत्तियागिरहम्,

सत्संग –>भजनै गोष्ठि, (भजन गोष्ठी ) कताकालक्षेपम्,(कथा काल क्षेपं)

सदुपयोग —–> नल्ल(अच्छा) उपयोगम्

सफ़र —>यात्तिरै,(यात्रा) पिरयाणम् (प्रयाणं)

सभा –(परिषद्, समिति )—>सबै,

सभ्य —–> नागरीगमान,(नागरिकमान)

सभ्यता —->(सिविलिज़ेशन) —> नागरीगम्.

समता — (सादृश्य, बराबरी, संतुलन )—> समत्तुवम्,(समत्वं)

समय —–> समयम्, तरुणम्

समर —–> युद्दम,

समर्थ —–> समर्तियमुळ्ळ (सामर्थ्य मूलक)

संमातर (समानांतर) —–> समानान्तरमान

समाचार —–> समाचारम्

समाज — –> समूगम् (समूहं) ,समाजम्;

समाधान —–> समाधानं,

समालोकच —–> विमरिशकर्

समिति —-> कुळु; (कुल),कमिट्टि (कमेटी)

समुदाय –> समूगम्, (समूह) समुदायम्

समुद्र —–> समुद्दिरम्,

समूह –> कूट (ढेर)

सम्मान —–> मरियादै (मर्यादा)

सम्मेलन —–> सम्मेळनम्,

सम्राट —–> चक्करवर्त्ति (चक्रवर्ती)

सरकार —–> सर्क्कार्,

सरल — —> सुलबमान, (सुलभमान)

सरोकार —–> संबन्दम् (संबन्धम)

सर्जन — —> शिरुष्टि (सृष्टि), आक्कल (सर्जन की प्रतिभा)

सर्प — —> सर्पम्,

सर्वांगीण ——> पूरणमान

सहानुभूति —–> अनुताबम् (अनुताप)

सहृदयता —–> कनिन्दमनम्, करुणै (करूणा)

साजन — —>ऎजमान्; (यजमान)

सादर —–> मरियादैयुडन् (मर्यादा युक्त?)

सादा —-> सादा

साधना — —> उपासनै,

साधारण —–> सादारणमान;

साधु —–> सादु, महात्मा;

साध्य —–> साद्दियमान;

साफ़ —-> शुद्दमान;

साबुन –(सोप) —> सोप्पु

सामर्थ्य —–> सामर्त्तियम्

सामर्थ्यशाली —>सामर्तिय-शालियान (सामर्थ्य शाली)

सामाजिक समूगत्तिय (सामुहिक)

सामान्य सादारणमान;

साम्राज्य — >साम्राज्यम्

साम्राज्यवाद —–> एकादिपत्तियम् (एकाधिपत्यं)

सामूहिक —-> समूगत्तिय

सार — —> सारु; सारांशम्

सारांश — —> सारांशम्,

सार्थक —–> अर्त्तमुळ्ळ (अर्थ मूलक )

साहूकार —–> पेरिय वियापारी,(बडा व्यापारी) लेवादेविक्कारन् (लेन देन कार)

सिंगार (श्रृंगार) —–>अलंगारम्

सिंदूर —–> कुंगुमम् (कुम कुम )

सिंहनाद —–> शिंगत्तिन् गर्जनै; (सिंघ की गर्जना)

सिंहासन — >शिंगासनम्;

सितारा —–> नक्षत्तिरम्,

सिद्धान्त –(थीअरी) —> तत्तुवम् (तत्वं)

सीधा = कपडमट॒ट॒; (कपटहीन )सुलबमान (सुलभमान)

मट्ट का अर्थ हीन होता है।

सुख —-> सुगम्, सौकरियम् (सौकर्य)

सुझाव —>योशनै, शूचने;

सुधा —–>अमिर्दम्, (अमृतम्‌) अमुदम्

सुधीर —–> दैरियशालि (धैर्यशाली)

सुर —–> स्वरम्;

सुराही —–> कूजा

सुविधा —–> सुलबम्; (सुलभम्‌)

सूत्र —–> सूत्तिरम्;

सूराख —–> दुवारम्,( द्वारं)

सूर्य —–> सूरियन् (सूर्यन)

सेठ — —> दनवान्, (धनवान)

सेना —–> सेनै,

सेनापति —–> सेनापति,

सैनिक —–> सेनै संबन्दमान;(सेना से संबधित) शिप्पाय (सिपाही?)

स्तंभ —–> तूण्,(स्थूणा) कंबम्; (खंबा)

स्तब्ध –> बिरमित्त (विरमित-रूका हुआ)

स्तुति —–>तोत्तिरम्,(स्तोत्रं)

स्तोत्र –>तोत्तिरम

स्थायी –>शासुवदमान्,(शाश्वतमान)

स्थिर — >स्तिरमान,

स्मृति —> ञापग शक्ति, स्मृति

स्रष्टा —–> शिरुष्टिकर्ता, (सृष्टिकर्ता) बिरम्म देवर् (ब्रह्म देव)

संक्रान्ति —> संकिरान्ति, परुवकालम्, (पर्वकालम), दक्षिणायन/उत्तरायण/आरंबम् (आरंभं)।स्वतंत्रता —–> सुदन्दिरम्।

स्वभाव — —> सुबावम्।

स्वर्ग — >सोर्ग लोगम्।

स्वस्थ — —> आरोग्गियमान,

स्वाद — —> रुचि

स्वादिष्ट — >रुचिकरमान,

स्वामित्व —>आदिक्कम् (आधिक्यम्‌, प्रभुता, आधिपत्य सभी के लिए प्रयुक्त)

स्वामी –>ऎजमान, (यजमान)

स्वास्थ्य —-> आरोग्गियम्,(आरोग्यम्‌



 

मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

 

From: mdapte@gmail.com;

Not only Tamil-Hindi or even amongst Bhaarateey Languages; but even between Bhaarateey and European languages (through Latin) Sanskrit is the basic root. Since Latin had no subsequent contact with Sanskrit, it has only around 20% Sanskrit words as I have read somewhere. Now subsequently, all European languages have still less Sanskrit words. However we still can understand basic Sanskrit roots of many European language words. In conjugation oe words (especially verbs), Sanskrit is nearer to German than any other European language.

Now in Bhaarateey Sarkaar's policy, Sanskrit is dead language and hence out of Education as well as use, how can other languages thrive without the nutritious support from Sanskrit?

Sanskrit has to be a compulsory language (subject) all over.

-----Mukund Apte

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