भड़ास पिता के गुजरे साल हो गए मगर लगता है जैसे हमारे डाक्टर साहब कभी भी प्रकट हो जायेंगे !!
सोमवार, 27 मई 2013
बीते साल आठ मई की काली रात जब डॉ रुपेश श्रीवास्तव को हृदयाघात हुआ था, सबके सुख से अधिक दुःख में एक सेनापति की तरह खड़ा रहने वाला हमारा लड़ाका हमारा गुरु हमारा अग्रज जैसे अपनी लड़ाई में अकेला सा रह गया था और जो कभी लड़ाई से हारा नहीं वो अपने जीवन की लड़ाई लड़ते लड़ते खुद से हार गया।
बीते आठ मई को हमारे भड़ास पिता की वर्षी थी, शायद जीवित समाज में यही नाम है. एक साल हो गए मगर डाक्टर साहब के जाने का आघात आज भी ताजा ताजा है। गुरु के पुण्यतिथि को बस शांति और सुकून से गुरुवार को याद किया और एकांत में अपने आप के साथ गल्बहलिया मानों डाक्टर साहब के साथ ही हूँ।
एक ना मिटने वाला सम्बन्ध जो रुपेश भाई के रहने या ना रहने, मेरे रहने या ना रहने से न बन्ने वाला था न टूटने वाला, एक अमिट सम्बन्ध जो धरोहर के रूप में सदा मेरे साथ रहेगा।
भड़ास पिता डॉ रुपेश श्रीवास्तव को कोटि कोटि श्रधांजलि !!!
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