ना भाजपा ना मुस्लिम लीग, सुबह का चढ़ा भूत शाम ढली तो ढला मगर अहले सुबह कब नदारद हो गया पता ही नहीं चला, जिक्र कुछ यूँ है........

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

bhogendra jha madhubani
साल 1995-1996 लोकसभा चुनाव सर पर था और मुझे भी पत्रकारिता की खामोश शुरुआत किये हुए चंद दिन, हप्ते महीने या साल हुए होंगे. स्नातक कर रहा था तो मूछें भी रोयें की शकल में ही थी. गली कुचे मोहल्ले खेल दूकान बाजार और भारत नेपाल सीमा लिखते लिखते आजिज़ आ गया तो सो चुनाव और चुनावी बुखार चढ़ना लाजिमी था.

अपने गुरुदेव से विमर्श और फिर जीवन में पहले राजनेता का चुनाव स्थानीय तत्कालीन सांसद का, जी हाँ "कामरेड भोगेन्द्र झा" !!!

बचपन से नाम सुनता आया था, मगर कभी मिला नहीं था कभी देखा भी नहीं था बस कहानियों और किस्सों में भोगेन्द्र झा बसे हुए थे, कहीं समर्थन कहीं विरोध. बस पहुँच गया मधुबनी जिले के भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी कार्यालय !!!

दुबला पतला सा मैं, मुछों की जगह रोयें पैर में हवाई चप्पल और पुरानी जींस के साथ ही सफ़ेद सा पुराना वाला हाफ शर्ट....... ना किसी ने रोका ना टोका और ना ही पूछा, शायद समझें होंगे कोई छात्र संगठन का सदस्य है grin emoticon

बरामदे पर एक चौकी जिस पर ना दरी ना कम्बल ना चादर, सिरहाने में एक मैला सा तकिया लगाए एक बुजुर्गवार नींद में थे शायद..... मैली सी धोती, मैला सा बनियान और नीचे हवाई चप्पल मैंने देखा रुका और फिर कुछ सोचते हुए पाँव पर हल्का सा स्पर्श करके उन्हें जगाने की कोशिश की.........

लगा ही नहीं कि वो सोये थे पल मैं उठ कर बैठ गए और पुछा (पूरा हमारा संवाद मैथिली हमारी स्थानीय भाषा में) कहिये मैंने बोला मुझे भोगेन्द्र बाबु से मिलना है (मिथिला और बंगाल की संस्कृति और परिपाटी बुजुर्गों या बड़े को जी नहीं लगाते बाबु ही कहते हैं) मुस्कुराते हुए कहा कहिये मैं फिर बोला मुझे भोगेन्द्र बाबु से मिलना है और वो बस कहते रहे लगभग चार या पांच बार फिर मैं ही खीझ कर बोला मुझे सांसद से मिलना है तो फिर मुस्कुराते हुए कहा मैं ही सांसद हूँ कहिये ..............................................

मैं सन्न और सन्नाटे में....... चंद पल कुछ समझ में नहीं आया...... ना ही सफ़ेद कुरता सफ़ेद धोती, ना ही दिखावा और आडम्बर, ना ही सांसद का गुरूर और ना ही पार्टी कार्यालय के बाहर एक भी गाडी यहाँ तक कि खुद सांसद की भी कोई गाडी नहीं...............

बातों का सिलसिला चला और मैं क्या पूछता मेरी ही तहकीकात कर डाली, एक सांसद जिसे अपने पुरे संसदीय क्षेत्र के हर गाँव हर पंचायत का नाम जुबानी याद था, एक सांसद जो हर गाँव हर पंचायत के लोगों को जुबानी नाम से जानता था और एक सांसद जिसके जमीन से जुड़े होने का सारा प्रमाण मेरे भेंट के पहले आधे घंटे में ही कामरेड ने दे दिया क्यूंकि वो आधा घंटा सवाल मेरा नहीं भोगेन्द्र बाबु का रहा, मेरा नाम परिचय के बाद मेरा पूरा खानदानी चिटठा मुझे ही सुना दिया grin emoticon

वैचारिक सरोकार आवाम से होने के लिए ये मेरा पहला और आखरी अनुभव साबित हुआ जो शायद ही कभी बदलेगा...........

बस राजनीतिक उठापटक के बीच लालू नितीश और भाजपा के समीकरण में आज पुराने दिन याद आ गए !!!

0 टिप्पणियाँ:

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP