Political Pests are Biting Rare Resources of Uttarakhand
बुधवार, 29 नवंबर 2017
उत्तराखण्ड के संसाधनों पर राजनीतिक दीमक
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
में दीवाली के
अवसर पर कार्यकर्ताओं
और नेताओं को
मलाईदार और हनकदार
ओहदों की पहली
खेप मिलने की
चर्चाएं शुरू हो
गयी हैं। प्रदेश
कर्ज के बोझ
तले डूबता जा
रहा हैं, संसाधन
सिकुड़ते जा रहे
हैैं और राजनीतिक
दीमक उन संसाधनों
को चाटने के
लिये उतावले हुये
जा रहे हैं।
इधर सरकार के
पास विकास के
नाम पर चार
आने भी नहीं
है। केन्द्र और
राज्य के करों
के अलावा करेत्तर
राजस्व से भी
सरकार और उसके
कर्मचारियों का खर्च
नहीं चल पा
रहा है और
इसके लिये भी
सरकार को कर्ज
लेना पड़ रहा
है।
अभी निगम कर्मियों
को भी सातवें
वेतन आयोग की
सिफारिशों के अनुरूप
वेतन वृद्धि देनी
है जिसकी मार
सरकार पर अरबों
रुपयों के रूप
में पड़ेगी। विकास
कार्य केवल घोषणाओं
तक सीमित हैं।
और सत्ताधारी दल
के लोग मलाईदार
ओहदों के लिये
लपलपा रहे हैं।
चूंकि मुख्यमंत्री सहित
तमाम बड़े नेताओं
के कृपापात्र बाहरी
लोग सलाहकार और
कोर्डिनेटर जैसे मलाईदार
पदों पर बैठ
चुके हैं इसलिये
अब पार्टी के
उन कार्यकर्ताओं और
नेताओं का पदों
के लिये ब्यग्र
होना और चुनावों
की मेहनत का
पारितोषिक पाने की
लालसा पालना स्वाभाविक
ही है जिनके
प्रयासों से पार्टी
सत्ता में पहुंची
है। देखा जाय
तो राजनीतिक दलों
के लेबल भले
ही अलग-अलग
हों मगर अन्दर
मैटीरियल एक ही
होता है। पिछला
अनुभव बताता है
कि राजनीतिक जीवों
को प्रदेश की
वित्तीय दुर्दशा की नहीं
बल्कि अपने ऐशो
आराम की चिन्ता
अधिक होती है।
ये राजनीतिक जीव
उत्तराखण्ड की आर्थिकी
और उसके संसाधनों
पर दीमक और
जोंक का काम
कर रहे हैं।
एक-एक दायित्वधारी
पर सरकार के
करोड़ों रुपये खर्च होते
हैं। प्रदेश की
पहली निर्वाचित सरकार
के मुख्यमंत्री नारायण
दत्त तिवारी ने
इस प्रदेश के
विकास की ठोस बुनियाद
तो अवश्य रखी
मगर उस बुनियाद
पर उन्होंने लालबत्तीधारी
दीमकों की बांदी
भी जरूर चिपका
दी। फिर भी
तिवारी के जमाने
में एक दायित्वधारी
को ढाइ हजार
रुपये मानदेय और
एक सीमित मात्रा
में गाड़ी का
पेट्रोल मिलता था। राज्य
के सबसे ईमान्दार
नेता के रूप
में प्रचारित भुवन
चन्द्र खण्डूड़ी ने वह
मानदेय 8 हजार और
10 हजार कर दिया।
यही नहीं उनकी
कारों के पेट्रोल
की सीमा भी
हटा दी। दुर्भाग्य
देखिये कि विधायकों
को लालबत्ती या
मंत्रियों के जैसे
ठाठ देने के
लिये लगभग सौ
मलाईदार पदों को
लाभ की श्रेणी
से हटा दिया
गया है। यह
संवैधानिक पाप केवल
कांग्रेस ही नहीं
बल्कि भाजपा भी
करती रही है।
शुक्र है कि
अदालत ने संसदीय
सचिव पद को
भी मंत्रिमण्डल का
हिस्सा मान लिया।
वरना अब तक
मंत्री पद के
दावेदार दर्जनभर विधायकों को
संसदीय सचिव पद
पर भी एडजस्ट
कर दिया गया
होता।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून
मोबाइल-9412324999
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