सूचना महानिदेशालय देहरादून में ऐतिहासिक अखबारों की गैलरी

सोमवार, 12 मार्च 2018



आभार सूचना एवं लोक संपर्क विभाग
सूचना महानिदेशालय देहरादून में ऐतिहासिक अखबारों की गैलरी
मैं सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग का आभारी हूं कि उन्होंने सूचना महानिदेशालय के भूतल पर स्थापित ऐतिहासिक अखबारों की बीथिका (आर्काइव गैलरी) में सहयोग के लिये साभार मेरे नाम का भी उल्लेख किया है। एक पत्रकार और लेखक के लिये इससे बड़ी खुशी का विषय कुछ और नहीं हो सकता कि लोग उसके लिखे हुये को पढ़ें और सरकार या सम्बन्धित संस्था उस लेखन को गंभीरता से लेकर उस पर कार्यवाही करे। मेरे लिये सन्तोष ही नहीं बल्कि हर्ष का विषय भी है कि मेरी एक पुस्तक ‘‘स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता’’ को राज्य सरकार और खास कर सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग ने गंभीरता से लिया है। उसी पुस्तक से प्रेरित हो कर पूर्व सरकार ने ऐतिहासिक पत्रों के संपादकों के वंशजों को देहरादून बुला कर सम्मनित किया था। सरकार ने सूचना विभाग में ऐतिहासिक अखबारों की गैलरी बनाने का निर्देश भी विभाग को दिया था। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी के मौखिक अनुरोध और सूचना विभाग के लिखित अनुरोध पर मैंने अपनी पुस्तक के लिये विभिन्न श्रोतों से जुटाई गयी शोध सामग्री सहर्ष सहयोग स्वरूप गैलरी के प्रयोजन हेतु सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग को दे दी थी। उस पुस्तक को लिखने का मेरा मंतव्य पत्रकारिता, स्वाधीनता आन्दोलन तथा इतिहास की उन भूली-बिसरी और जहां तहां बिखरी कड़ियों को जुटा कर  भविष्य के लिये सुरक्षित रखने के लिये उनका दस्तावेजीकरण करना था। मेरा यह भी मंतव्य था कि स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान इस पहाड़ी भूभाग में रहने वाले पत्रकारों ने जो असाधारण योगदान दिया था वह आज और कल की पीढ़ी के लिये प्रेरणा का श्रोत बने। केवल डिग्रियों के लिये शोध करने का रिवाज आज चरम पर है। ऐसा शोध और अध्ययन केवल आल्मारियों में बंद कर दीमों की खुराक तैयार करने के लिये होता है। लेकिन मैंने अब तक जो आधा दर्जन शोधग्रन्थ लिखे हैं वे मेरे अपने लिये नहीं बल्कि समाज और भावी पीढ़ी के लिये हैं। मेरी इस पुस्तक ‘‘स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता’’ का दूसरा संस्करण भारत सरकार केनेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडियाने सहर्ष प्रकाशित करने के स्वीकृति दी है। कुछ ही महीनों में यह दूसरा शोधग्रन्थ लोकार्पित हो जायेगा। उसमें भी आपको मेरी कड़ी मेहनत नजर आयेगी। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग और पत्रकारों का चोली दामन का जैसा साथ है। करीबी ऐसी कि साथ-साथ रहते-रहते कभी- कभी टकराव भी हो जाता है। फिर भी ये दोनों एक दूसरे के पूरक बने रहते हैं। मेरा भी कभी-कभी सूचना के मित्रों और शुभ चिन्तकों से झगड़ा हो जाता है मगर वह झगड़ा बहुत क्षणिक होता है। कटुता बेहद अस्थाई होती है।

-जयसिंह रावत

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