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क्या है हमारी जिम्मेदारी?

सोमवार, 4 मई 2009

पता नही ,क्या वज़ह है, जो मै कमेन्ट बॉक्स नही खोल पा रही हूँ...
किसी सज्जन्ने मुझसे पूछा था,की, क्या पुलिस वालोंको मतदान का हक है? भारत में हरेक नागरिक वो है। सिर्फ़ पुलिस वाले कई बार चाह्केभी अपने अधिकारका इस्तेमाल नही कर पाते। मसलन, गर चुनाव क्व दौरान किसीकी ड्यूटी दक्षिण मुम्बई में लगी है, लेकिन उसका मतदाता के तौरपे नाम दर्ज है बोरोवली या कांदिवली में तो वो कहाँसे मतदान करेगा?
मै इस बातपेभी कई सालों से संघर्ष कर रही हूँ, कि, इसमे कोई तो पर्यायी व्यवस्था उपलब्ध होनी चाहिए। कई बार हालत ऐसे होते हैं, की, नाम दर्ज करनेकी प्रक्रियाभी पुलिसवाले नही कर पाते...कई बार , बस चुनावों के कुछ दिन पूर्व तबादला हो जाता है...घर परिवार दूसरे शेहेरमे होता है, अधिकारी/कर्मचारी नियुक्ती के स्थान पे चला आता है। पिछले लोकसभा चुनावों में e-वोटिंग का पर्याय होता तो शायद मै वोट दे पाती...इतनी सख्त बीमार थी...मैंने ambulance तक बुलाई, लेकिन सर नही उठा पायी...याद है मुझे कि, मै कितना रोई थी...
येभी हो चुका है,कि, हम अपना नाम दर्ज करनेकी प्रक्रिया एक शेहेरमे पूरी कर पाये और अन्य जगह तबादला हो गया....
इस बारभी, मैंने ये प्रक्रिया, २ साल पूर्व पुनेमे पूरी की...स्थानीय चुनावों में मतदानभी किया...लेकिन लोकसभाके चुनावों के दौरान पाया कि, मेरा नाम, मुम्बईके सचिवालय जिमखाना के बूथ में दर्ज है ! ये तो अच्छा हुआ,कि, मै उस समय मुम्बई में थी, और पता करनेकी ज़हमत मेरे बेटेने उठायी, वरना आप सोच सकते हैं,कि, मुझे कितना मानसिक कष्ट हुआ होता!! और येभी केवल एक एह्तियाटके तौरपे मैंने करवाया...वरना, मै पुणे पोहोंच गयी होती, तो कितनी निराश होती...जबकि, मै पुनेमे रहेने आतेही ये प्रक्रिया शुरू कर दी थी। और हैरानी की बात ये,कि, जब स्थानीय चुनाव के लिए मतदान करने गयी तो पता चला, मुझसे पहले,( कमसे १० साल),इस इलाकेमे स्थायिक हुए लोगोंने अपना नाम दर्ज करानेकीभी ज़हमत नही उठाई थी...! आधे किलोमीटर से भी कम दायरेमे कमसेकम २०,००० लोग ऐसे थे, जिन्हों ने अपना नाम मतदाताकी सूचीमे दर्ज करायाही नही था...! उस शाम मैंने देखा, हमारी सोसाइटी में शायद २/३ घरों में बिजली जल रही थी...लोग लंबा वीकएंड मनानेके लिए गए हुए थे...! आनेवाली नस्लपे ये क्या संस्कार हो रहे थे? और कुछ नही तो लोग इसमे जो चुनाव लड़ना चाह रहे हैं, उनके बारेमे औरों को बताएँ तो सही,कि, किसकी क्या पार्श्वभूमी है? एक नागरिक की हैसियतसे हमारी कोई जिम्मेदारी नही बनाती? हम सिर्फ़ राजनीती और नेताओं के नामसे गाली बक के परे हो जाना चाहते हैं?

इन चुनावोंके दौरान ऐसी आशा थी कि, शायद e-वोटिंग शुरू होगा..कमसे कम भगौड़े मतदान तो करेनेगे...लेकिन नही शुरू हुआ...इन सब बातों के लिए लिए जनजाग्रुतीकी निहायत आवश्यकता है। अपनी तौरसे मै करती रही हूँ...लेकिन पतीके सरकारी मेह्कमेमे रहते, कई बातें, या नुक्ताचीनी मै खुलके नही कर पाती थी...

आज एक मंच मिला है...चाहती हूँ,कि, ठंडे दिमागसे सोचा जाय...हम अपनी तौरसे, लेखंके ज़रिये, कुछ कर सकते हैं? या सिर्फ़ हाथपे हाथ धरे बैठे रहेंगे?
मै जानती हूँ,कि, गर सही दिशा दिखानेवाला हो,तो, हम इत्नेभी गैरजिम्मेदार साबित नही होंगे...

पूछे कि, आपके मनमे क्या, क्या सवाल उठते हैं...हमारेही ब्लॉग जगत में कई जानकार हैं,जो हमें जानकारी दे सकते हैं...मकसद सिर्फ़ एक है...हम हमारी जनताके लिए कुछ तो करें...ऐसी जनता जो, ग़लत जानकारियों के कारण नाहक पिस जाती है? या तमाशबीन बन जाना पसंद करती है? क्या आनेवाले दिनों में यही लोग आतंक का शिकार नही हो सकते? मर जायें तोभी ठीक है, अपाहिज हो जाए तो ? हमारी आँखों के आगे हमारे अपने मारे जाएँ और हम कुछ ना कर पायें तो? कितने लोगोंको पता है,कि, पिछले आतंकी हमलेमे जो बच्चे अनाथ हो गए, उनका क्या हाल है?वो किस सदमेका शिकार हैं?
मै यहाँ केवल बेहेसके खातिर नही लिख रही हूँ...नाही मुझे किसी एक व्यक्तीसे कहना है,कि, वो गैरज़िम्मेदार है...बड़े स्नेह्से आपलोगों से मनकी बात कह रही हूँ...आपके सुझाव चाहती हूँ...एकसे बढ़के अनेक की ताक़त हमेशा ज्यादा होती है...हैना?
सस्नेह
शमा

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