पुरस्कारों का ज़खीरा, सोयी मीडिया सोया सरकार.

रविवार, 2 नवंबर 2008


क्या कभी इतने शील्ड एक साथ देखे हैं?

मैडल ही मैडल, पदक ही पदक, शील्ड ही शील्डये नजारा और कहीं नही विलासपुर में सर्दियों में आयोजित होने वाली ग्रामीण सांस्कृतिक महोत्सव का हैअपने आप में अनूठा ये ग्रामीण सांस्कृतिक पर्व पुरे देश के लिए प्रेरणा हैमगर नही है ये प्रेरणा क्यौंकी दुनिया से अनजान जो है, जब मैं बिलासपुर पहुँचा तो इस पर्व में सम्मिलित होने का मौका मिला और देख कर हैरान रह गया की हमारी सांस्कृतिक धनाड्यता और नजरों में नही, ना ही मीडिया की नजर और ना ही स्थानीय सरकार कीसैकडो गावं यहाँ सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हैं, और प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कार के हक़दार होते हैं, संग ही मेला के बहाने तमाम गाव आपस में मिलते हैं और अपनी संस्कृति के साथ समस्याओं पर चर्चा कर उसका निदान भी निकालते हैं
क्या इस संस्कृति को पुरे देश में प्रसारित नही होना चाहिए ? मगर जब स्थानीय सरकार ही उदासीन हो, मीडिया के मुलाजिम लाला जी के लिए पत्रकारिता कर रहे हों वहां हमारी सभ्यता की विशेषताओं को किसने देखा है, स्थानीय सरकार की अपनी ढोल है जो उसकी पोल भी खोलती है और मीडिया का राज ठाकरे से लेकर क्रिकेटर पर चर्चा के अतिरिक्त समय कहाँ जो हमारे जड़ में जाए
ब्लॉग समुगाय के लिए सिर्फ़ जानकारी भर क्यूंकि ब्लोगिंग भी पन्ने पर उड़लती चंद बूंद स्याही से ज्यादा जो नही दीख रही

1 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाईसाहब,ये स्याही की चंद बूंदे अगर तेज़ाबी हों तो इंकलाब ला सकती हैं लेकिन जिस भड़ास की आग को उस पर लगे पंखों ने ठंडा कर दिया हो तो वहां बस या तो ब्लागिंग या तो लालाजी के पिट्ठू करेंगे या खुद लाला टाइप के लोग....
जय जय भड़ास

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