आयुर्वेद के क्षेत्र में गधे पंजीरी खा रहे हैं...
मंगलवार, 30 दिसंबर 2008
आज अभी हाल ही में मैंने जैसे ही घर में प्रवेश करा तो पाया कि भाई किसी से फोन पर बात कर रहे हैं और उनकी आंखों से आंसुओं की धार बह रही है। मैंने भाई के लिये चाय बनायी और वार्तालाप समाप्त होने पर जानना चाहा कि क्या बात है तब उन्होंने बताया कि वे अपने गुरू प्रातःस्मरणीय डा.देशबंधु बाजपेयी से बात कर रहे थे और उस तात्कालिक दुःख का कारण था कि डा.बाजपेयी ने चर्चा के दौरान ये बताया कि उन्हें अपनी बेटी के विवाह के लिये बैंक से कर्ज लेना पड़ा जिसे अब वे धीरे-धीरे चुका रहे हैं। डा.बाजपेयी वो व्यक्ति हैं जिन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में एक ऐसा अविष्कार करा है जिसे इलैक्ट्रो त्रिदोषग्राम(E.T.G.) कहते हैं। इसका उपयोग करने से शरीर के कफ़-पित्त-वात की स्थिति के साथ ही सप्त धातुओं के स्थिति का पेपर एविडेन्स मिल जाता है जैसे कि ई.सी.जी. में होता है लेकिन यह अविष्कार लालफ़ीताशाही का शिकार होकर सरकारी नीतियों की गलियों में भटक रहा है और सच्चे आयुर्वेद के चिकित्सक इसके इस्तेमाल से वंचित हैं। आयुर्वेद की संस्था "आयुश" के लोगों ने डा.बाजपेयी को एक प्रमाणपत्र दिया है जो कि ये दर्शाता है कि आयुश के लोग दिमागी दिवालिये हो चुके हैं उल्लू के पट्ठे सूरज को दिया दिखा कर उसकी रोशनी में इजाफ़ा कर रहे हैं। जबकि सच तो ये है कि अगर ये लोग चाहें तो एक साथ किसी भी सरकार पर दबाव बना सकते हैं लेकिन शायद ये खुद नहीं चाहते कि डा.बाजपेयी का अविष्कार प्रकाश में आये वरना देश ही नहीं पूरी दुनिया में उन्हें चिकित्सक पूजने लगेंगे और इन चिरकुट राजनीति करने वाले छ्द्मचिकित्सकों को कौन पूछेगा। डा.बाजपेयी इस उम्र में भीड़ भरी बसों में धक्के खाते फिर रहे हैं और ये आयुर्वेद की किताबों में रेंगने वाले कीड़े खुद को जानकार बताते मजे कर रहे हैं। डा.बाजपेयी इनके किसी भी सम्मान से बहुत आगे जा चुके संत हैं। इन बुद्धुओं के साथ बैठना डा.बाजपेयी की करुणा है वरना क्या वे इनसे प्रमाणपत्र मांगने जाते हैं कि मुझे संम्मानित करो। लेकिन ये तो समय का प्रभाव है कि डा.बाजपेयी को ये लोग सम्मानित करें जैसे कि नीर-क्षीर विवेकी हंस को बगुले अपनी सभा में पंखों की सफेदी के लिये प्रमाणपत्र दें....गधे पंजीरी खा रहे हैं भाई।
जय जय भड़ास
5 टिप्पणियाँ:
गधों का पंजीरी खाना इस देश की नियति है और विद्वानों को घास तक नसीब नहीं है ये दुर्भाग्य है इस देश का वरना दादागुरू की ऐसी हालत न हो~ लानत है ऐसी व्यवस्थाओं पर और थू है हजार बार ऐसे कमीनों पर जो इस अव्यवस्था के लिये जिम्मेदार हैं। सावधान हो जाओ कमीनों वरना भड़ासियों के थूक के दरिया में तुम सब बह जाओगे तुम्हारा कोई बाप तुम सबको बचाने न आयेगा। ये स्वास्थ्य मंत्री क्या अफ़ीम खाता है या ये भी बस समलैंगिकों के अधिकार तक ही मंत्रालय को सीमित रखना चाहता है? सब भड़ासी इसकी वेबसाइट पर जाकर इसके मुंह पर थूक कर आएंगे अगर यही हाल रहा तो...चेतावनी है इस ढोर को...
जय जय भड़ास
didi, mujhe aisa lagta hai ki aab sabko jagna hoga aur apki awaz ko sunana hi padega..
कुछ साल पहले मेने एक स्टोरी की थी कोलकाता के एक यूनानी चिकित्सक पे, बेचारे को पद्मश्री मिला था, मगर उनकी मौत बेहद तंगी के हालत में हुई. दीदी सच मानो तो हम ही कायर हैं , सरकार निक्मी है कहना ही अब बेकार है, उनपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, एक ही रास्ता बचा है कि सड़क पर आकर इन लालफिताशाहियों के खिलाफ आवाज़ उठानी पड़ेगी, साथ ही अपनी परंपरागत चिकित्सा कि और लौटना होगा.
कुमार भाई शायद तब आप भड़ास के दर्शन से नहीं जुड़े थे लेकिन अब हमारे पास एकता की ताकत है हम किसी भी विद्वान को इस तरह से अपमानित नहीं होने देंगे, फरहीन बहन ने जो कहा है वही मार्ग अपनाना होगा अंततः, यदि जल्द ही उचित हल नहीं मिलता है। जल्द ही हमें यह अविष्कार सबके लाभ के लिये प्रकाश में आए ऐसा प्रयास करना होगा और इसके लिये जो भी करना पड़े हम सब एक जुट हो कर करेंगे मैं नववर्ष पर यह संकल्प लेता हूं।
जय जय भड़ास
"हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोटी खायेगा"
गुरुवार ये मुहावरा ग़लत नही, हमारे देश का ये ही तो दुर्भाग्य है की दलाल यहाँ ठेकेदार होते हैं, देश की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं, डा.बाजपेयी की महिमा को ये नपुंशक डाक्टर और दलाल की जमात अपने दूकान के कारण मान्यता देने में ऐसे ही रोड़े अटकायेगी. बाबा रामदेव सरीखे चूतिये आम लोगों की भावना को बेचने के तरीके जानते हैं मगर हित नही, स्वयं हित साधने में लगे हमारे ऐसे दल्ले के कारण ही हमारी संभावनाओं पर ये लोग टला लगा देते हैं मगर अब और नही, चेतावनी इनलोगों को की भड़ास आ रहा है लोगों को जगाने, चेतना और विश्वास के साथ हमारी अपनी संसाधन को बताने. लालाओं और दलालों हो जाओ खबरदार.
जय जय भड़ास
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