यहाँ हर साख पे उल्लू हैं

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

यहाँ हर साख पे उल्लू हैं,

ऐसा देश है मेरा ।

जहाँ लीडर कम नेता हैं ज्यादा,

ऐसा देश है मेरा ।

लोगों के मरने पर घडियाली आँसू बहाते हैं जहाँ फन्डू नेता,

ऐसा देश है मेरा ।

राज्य कम पार्टीयां हैं ज्यादा,

ऐसा देश है मेरा ।

शहीदों को कुता बनायें (कुता)नेता,

ऐसा देश है मेरा ।

मर के,पिट के भी,जूता खा के भीखुस रहते हैं लोग जहाँ,

ऐसा देश है मेरा ।

चारा खायें जहाँ के नेता ,ऐसा देश है मेरा ।

उनके ड्रेस बदल के आने से पहलेभाग जायें आतंकवादी ,

ऐसा देश है मेरा ।बडे़- बडे़ सहरों में ऐसा होता है,

शायद इसी लिये ऐसा देश है मेरा ।

4 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाईसाहब,हमें उल्लुओं को उड़ाने और भगाने का मंत्र सिखाइये ताकि इन्हें इनके कोटरों का रास्ता दिखा सकें।
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

भाई,किस्सागोई और कविताओं से यदि समाज को प्रगति की दिशा मिलती है तो बिलकुल सही है अन्यथा तो ये सब मात्र शब्दप्रपंच रहता है। हम भड़ासी मिल कर समाज को रचना्त्मक दिशा दें वो बात है आप की रचना में....
इसी तरह शानदार जानदार लेखन करते रहिये
जय जय भड़ास

मोहम्मद उमर रफ़ाई ने कहा…

सही है बच्चों कि दिशा और दशा आप सबको ही तय करनी होगी। लिखते रहो ताकि जहालत खत्म हो

बेनामी ने कहा…

भैये,
बहुत खूब व्याख्या की है, मगर अब समय आता जा रहा है और हम भडासियों का कर्तव्य भी की उल्लुओं को कोटर में भगा दो, जिसका हक जो मारे उसे लगाओ जूते चार.
बढिया भड़ास है.
जय जय भड़ास

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