तुम्हारी चाहतो ने मुझे चैन से न रहने दिया

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

तुम्हारी चाहतो ने मुझे चैन से न रहने दिया
खौफे रुसवाई ने कुछ भी...कहने नही दिया.

बेदर्द दुनिया में किस तरह से गुजारा करते है
तेरी जुदाई का दर्द दुनिया ने सहने नही दिया.

कोई मूरत गुजरती नही है दिल बहुत उदास है
कही भी हर पल मेरी जिन्दगी ठहरती नही है.

रोता है मेरा ये दिल जब मै दिल से हँसता हूँ
जालिम बेदर्द दुनिया मेरा दर्द जानती नही है.

अपने अरमानो की ख़ाक मै उडाता चला गया
अपने ख्वाबो की चिता मै जलाता चला गया.

जिन्दगी भर का बन न जाए दिले नाशूर कही
हर हसरत को मै अपने दिलो में दफना रहा हूँ.

4 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

पंडित जी महाराज,स्वागत है। ई का लिक्खे पड़े हैं आप :)
हर हसरत को मै अपने दिलो में दफना रहा हूँ
अरे भाई भड़ासी तो गड़े मुर्दे उखाड़ते फिरते हैं और आप भड़ासी होकर भी अपनी हसरतों को दफन कर रहे हैं। ऐसा मत करो प्रा’जी इन्ने दुक्खी ना हो :)
फिर हसरतों को जगाओ मेरे भाई और........
जय जय भड़ास

मोहम्मद उमर रफ़ाई ने कहा…

मिश्रा जी,बड़े ही टैक्नीशियन किस्म के शायर हैं आप तो..... साइकल में चैन,घड़ी में चैन,पतलून में चैन लेकिन अगर दिल में चैन न हो तो देखिये कैसी शायरी फूट पड़ती है :)
सुंदर लिखा है जारी रहिये

श्रेया रूपेश ने कहा…

लिखिये ताकि अगर हममें से किसी का दिल लीवर किडनी फेफड़ा कुछ टूट जाए तो हमारे काम आ सके इस तरह की के काव्य मरहम :)
बहुत अच्छा है सर जी।

बेनामी ने कहा…

महेंद्र भाई,
ज़माने का दर्द समेत लिया आपने, और ज़माने को बेदर्द बना दिया. बहुत खूब.
जरा सा भडासाना हो जाए :-)
जय जय भड़ास

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