क्या खोया क्या पाया जग में(अटल जी की कविता)

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यधपि छला गया पग-पग में,
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें,
जन्म मरण का अविरत फेरा,
जीवन बंजारों का अविरत डेरा,
आज यहाँ कल वहाँ कूच है,
कौन जानता किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पखों को तौलें,
अपने ही मन से कुछ बोलें,
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3 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…
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बेनामी ने कहा…

भाई,
वाजपेयी जी ने कुछ खोया हो या न खोया हो, कुछ पाया हो या ना पाया हो मगर आगरा में मिलने के बहाने कारगिल करवा दिया, जार्ज से उस कारगिल के काफिन का घोटाला करवा दिया, हिन्दुस्तान के अब तक का सबसे घटिया वित् मंत्री यशवंत सिन्हा दिया और चापलूसी में महारथ जसवंत सिंह को विदेश मंत्री बनाया,
और क्या आशा रखते हैं.
जय जय भड़ास

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

मामू क्या कस कर ली है....बेचारे कवि की कल्ला गई होगी लेकिन राजनेता की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा बड़ी चर्बी है पट्ठों में.....

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