मेरा भाई जब भड़ासी था लेकिन अब तो वह खुद ही प्रोफ़ेशनल बन गया है

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

भाई ने अपनी तेज तर्रार धारदार लेखनी से कई लोगों के मठ धूलधूसरित कर दिये थे जब वह भड़ासी था, देखिये तो कितना साफ लेखन था बिलकुल दिल से निकला हुआ; दिमाग का तो जरा भी योगदान ही न था लेकिन अब वो खुद ही उनमें शामिल हो गया है कल तक जिनके विरोध में लिखा करता था पेश है शुद्ध भड़ास दिल से........
नेताओं का साफ साफ फंडा है, झूठ बोलेंगे, जीतेंगे, राज करेंगे और फिर जीतने के लिए क्राइम से लेकर समाज सेवा तक समब करेंगे। नौकरशाहों का भी साफ साफ फंडा है। नौकरी बचाने के लिए किसी करवट लोट जाएंगे। किसी के तलवे चाट लेंगे। नौकरी में बने रहेंगे और दीमक की तरह सिस्टम को चाटते रहेंगे। ऐसे ही ढेर सारे लोगों की जन्मकुंडली बनाई जा सकती हैं। लेकिन जब आप प्रोफेशनल लोगों और बुद्धिजीवियों की जन्मकुंडली बनाने पर आयेंगे तो आपकी कलम स्याही खुद ब खुद सुखा देगी, या कलम की निब टूट जायेगी या कलम चलने से इनकार कर देगी। मैं बताता हूं, इसकी वजह क्या है?दरअसल प्रोफेशनल और बुद्धिजीवी इस देश के सबसे बड़े हरामजादे लोग होते हैं। ये अपनी खोल में जीते हैं। अपनी खोल को बड़ा बनाने के लिए बौद्धिक चिंतन करते हैं। इस बौद्धिक चिंतन में ढेर सारे लोगों को मिशनरी की भांति फांसते हैं और फिर खुद नेता और झंडाबरदार बनकर अपने को एलआईजी से एमआईजी में और फिर एमआईजी से एचआईजी क्लास में ले आते हैं। आखिर में आता है इलीट क्लास, जहां पहुंचने के लिए इन प्रोफेशनलों और बुद्धिजीवियों में होड़ मची रहती हैं। ये अपनी करनी को देश और समाज से इस कदर जोड़े रहते हैं जैसे जोंक खुद को खून चूसने के लिए शरीर के मांस के साथ चिपकाये रहता है। अगर कोई इन्हें यहां से छुड़ाना चाहे तो ये मर जाते हैं, देश के लिए कुर्बानी का वास्ता देकर पर सच्चे अर्थों में ये दरअसल दूसरों को बरगलाये बिना और दूसरों पर निर्भर हुए बिना जी ही नहीं सकते इसलिए अकेले कर दिए जाने पर इनकी खुद ब खुद मौत हो जाती है। मेरी बातें अमूर्त लग सकती हैं पर अगर शुद्ध हिंदी में कहें तो इन भोसड़ीवालों के चलते अपने हिंदी समाज की ये दशा है कि जो हाशिए पर हैं, वे हाशिए पर ही बैठे रहने को अभिशप्त हैं, जो मुख्यधारा में हैं, वो मुख्यधारा के सहयोग से इतने आगे बढ़ जाते हैं कि बाकी समाज इनके लौंड़े पर आ जाता है। और इस काम में बड़ी व बखूबी भूमिका निभाते हैं बुद्धिजीवी व प्रोफेशनल। अगर ये बात भड़ासियों को समझ में नहीं आई तो फिर कभी विस्तार से समझाऊंगा लेकिन एक सलाह जरूर देना चाहूंगा कि प्रोफेशनल व बुद्धिजीवी लोगों से बच के रहना। ये बड़े नखरे करते हैं। ये काम आएंगे तो काम आने के नाम पर आपकी गांड़ मार लेंगे, ये कभी काम न आने की बात नहीं कर सकते क्योंकि ये इतने बड़े झूठे होते हैं कि किसी काम लायक न होने पर भी काम के होने का इतना बड़ा ढोंग रचते हैं कि आप हमेशा इनके चक्कर में पगलाये रहोगे। चलिए, फिर कभी विस्तार से बतियायेंगे। अगर आपका कोई तर्जुबा हो तो जरूर शेयर करिएगा।
जय भड़ास
जय जय भड़ास

5 टिप्पणियाँ:

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

वाह वाह कितना धारदार लेखन है लेकिन ये भी बड़ी प्रोफ़ेशनली लिखा हुआ था बस प्रतिद्वन्द्वी को परास्त करने के अस्त्र के तौर पर.... सुन्दर है तेज़ है धारदार है,अपने फ़ायदे के लिये अपनों भी काट देती है इस लेखन की तलवार
जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

मैं निजी तौर पर व्यवसायिकता के भाव की कद्र करता हूं। एक समय था जब यह सिद्धांत हुआ करता था "शुभ-लाभ" लेकिन अब यह हो गया है ’लाभ-लाभ और बस लाभ ही लाभ’..... बाजार के हिसाब से सांस लेना और जीवन जीना मजबूरी है इस बात से अपने आपको संतोष दे लेना मात्र आत्मबल की कमी है।
जय जय भड़ास

दीनबन्धु ने कहा…

बहुत खूब लिखा था यार ने लेकिन अगर समय के साथ बदल गया तो अफ़सोस नहीं करना चाहिये समय के साथ बहुत सारी चीजें और लोग बदल जाते हैं
जय जय भड़ास

मनोज द्विवेदी ने कहा…

koun profesional? main to profesional use hi manta hun jo dusre ke jeb se paisa khich sake...
baki to bus aise hi.........

बेनामी ने कहा…

आपा,
व्यवसायिकता में नेता और अफसर पर तीखी कटाक्ष है मगर पत्रकारिता को छोर दिया गया है, इस से बड़ा क्षद्म चरित्र क्या हो सकता है, लेखन में सत्य कहने की कोशिश जरुर की गयी थी मगर अपने आप को बच्चा कर, और ये ही क्षद्मता आपलोगों ने नही पहचानी होगी, मैं ये पढ़ नही पाया नही तो इस लेख के बराबर में पत्रकार और इसके मठाधीश को बिठा देता, हरामजादे की श्रेणी में आज के पत्रकार और पत्रकारिता सबसे पहले आते हैं, मगर सफेदपोश इसको कहाँ स्वीकार करते हैं, आखी व्यावसायिक पत्रकारिता जो ठहरी.
जय जय भड़ास

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