लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे तानाशाही की बनियागिरी यानि पंखों वाली भड़ास

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

जब अचानक सदस्यता को बिना किसी सूचना या आरोप के एक कम्युनिटी ब्लाग से समाप्त कर दिया जाता है तो इस बहाने एक सच्चाई और स्पष्ट बात सामने आ जाती है कि जब एक लोकतांत्रिक सोच पर वणिक सोच का संक्रमण हो जाता है तो लालाजी के तोलूराम ऐसी ही हरकत करने लगते हैं। सौ से भी अधिक पंखों(Fans) वाली भड़ास से जब हम भड़ासियों की सदस्यता को अचानक समाप्त कर दिया जाता है तो पता चल जाता है कि हमारा भाई क्षत्रिय से बनिया बन गया है लेकिन साथ ही बौखला गया है जो इस तरह की हरकते करने लगा है। पहले जब पंखों(Fans) वाली भड़ास से किसी की सदस्यता समाप्त करी जाती थी तो चूंकि यह एक संसार का सबसे बड़ा कम्युनिटी हिंदी ब्लाग है उस सदस्य के बारे में चर्चा होती थी आरोप होता था उसे सफ़ाई का मौका दिया जाता था लेकिन जब से हमारे भाई(शुरूआत से ही एहसास था हमें कि ये प्रधान संरक्षक,प्रवक्ता,आयोजक वगैरह सब ढकोसला है लेकिन हम सब इसे बस खिलवाड़ समझ कर खेलते रहे कि हमारा भाई चिल्लू-पिल्लू छाप खेल खेल रहा है मुंह में लालीपाप की जगह लकड़ी का चट्टू देकर) ने हम लोगों की भड़ास से सदस्यता समाप्त कर दी है लेकिन हमें तो पता था कि लालाजी जैसी सोच विकसित होने पर ऐसा होना ही है तो हम भड़ासियों ने अपना एक और उगालदान बना लिया। जिसे उगलना है आए उगले जिसे सहलाने का खेल खेलना है वो जाकर पंखों की हवा खाए। ये मात्र बौखलाहट नहीं बल्कि वणिक सोच है जो कि भड़ास दर्शन के हमेशा प्रतिकूल रही है। हम नहीं बदलेंगे और बुरे ठहराए जाने पर भी अपने आप को अच्छा साबित करने का जतन नहीं करेंगे। हम बुरे हैं तुम्हें तुम्हारी अच्छाई का मुखौटा मुबारक हो....
मोहम्मद उमर रफ़ाई
मुनव्वर सुल्ताना
मनीषा नारायण
अगला नंबर किसका है प्रतीक्षा करो भड़ासियों
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

पंखो वाली भड़ास से लालाजी द्वारा बेदखल कर दिये गए मेरे आदरणीय जनों निजी चेहरे और पब्लिक फ़ेस में यही अंतर होता है,खाने के दांत अलग....दिखाने के अलग...और खून चूसने में प्रयोग करे जाने वाले अलग....
मोहम्मद उमर रफ़ाई
मुनव्वर सुल्ताना
मनीषा नारायण
आप सब कोई डेन्टिस्ट तो हैं नहीं कि दांतों में अंतर समझ पाते इस लिये हंसी में जो दांत दिखे उन्हें देख कर अंदाज भी न लगा पाए कि ये दांत ड्रेकुला के हो सकते हैं....ही ही ही...हा हा हा...हू हू हू...
जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

आप तीनों दिग्गजों को हार्दिक बधाई हो,प्रमाणित हो गया कि आप लोग भड़ासी के अलावा और कुछ नहीं हो सकते इसलिये आपके साथ यही होना चाहिये था,अब यहां जो करना है करिये बनियागिरी के सिवाय.....
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

आपा बधाई,
पंखे की ठंडक सी आपलोग अलग हो गयी, हमारी ऊर्जा तो आप और दीदी हैं, चचा हैं, अगर आप लोग ठंडे पड़ जाते तो हमारी ऊर्जा का क्या होता, चलिए नए सिरे से भड़ास की ऊर्जा का सदुपयोग करते हैं, वैसे भी मुर्दों में ऊर्जा नही होती सो बेहतर मृत से दूरी बना ली जाय.
जय जय भड़ास

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