स्वागतम! आगतम् नूतन वर्ष

बुधवार, 31 दिसंबर 2008

स्वागतम नूतन साल तुम्हारा है,
झंकृत हृदय हमारा है। स्वागतम........
बीते पल जब तुम आए थे
ऐसा ही स्वागत पाए थे
होंठों से मुस्काए थे और
नज़रों से इतराए थे
तुम्हारा आगम कितना प्यारा है। स्वागतम....
ऐसे ही तुम आओ
अधरों पर हँसी खिलाओ
मन का गीत कोई गुनगुनाओ
नूतन सपना कोई सजाओ
ऐसा न्यारा ख्वाब तुम्हारा है। स्वागतम.....
मन की पीडा को हम भूलें
निर्झर लहरों में ही झूलें
उठ के असमान को छूलें
मरहम बन जायें सब शुलें
कैसा जीवन नृत्य तुम्हारा है॥
स्वागतम नूतन साल तुम्हारा है,
कैसा झंकृत ह्रदय हमारा है।
तुम्हारा आगम कितना प्यारा है,
ऐसा न्यारा ख्वाब तुम्हारा है।

3 टिप्पणियाँ:

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

बस यार बहुत हो गया अब मैं भी अगले साल से कविताएं पेलने की कोशिश करूंगी और कोई मुझे रोके नहीं......कविता की बात ही खास होती है जो बात दस पन्ने में लिखी जाए और फिर भी अनकही रह जाए वह चार लाइन की कविता में बयान हो जाती है.....

अजय मोहन ने कहा…

बढ़िया है भाई ऐसे ही गाते गुनगुनाते रहिये और भड़ास निकालते रहिये....
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

सुंदर भाई, जम कर पेला है.
लगे रहिये.
जय जय भड़ास

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