इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर सेंसर, चिल्ल पों की होड़ में वेब और ब्लॉग के नुमाईंदे भी।
शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
सरकार के हर निर्णय और मजबूरी पर सरकार की खिंचाई करने वाली मीडिया, आम जन के सरकार से सरोकार का माध्यम मीडिया, लोकतंत्र की अहम् कड़ी मीडिया मगर क्या आज के बाजारवाद की भीड़ में आम जन की आवाज है हमारी मीडिया ?
बीते दिनों हमारे देश पर ढेरक आतंकी हमले हुए, कहीं बम के धमाके तो कहीं पाँच सितारा में लोगों को बंधक, हमारे सुरक्षा जवानों ने जांबाजी का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान को जोखिम में डाल हमें सुरक्षित भी रखा। अमेरिका का चुनाव या बुश पर जुतेबाजी, विदेशी किशोरी पर्यटक का बलात्कार और ह्त्या या देशी बलात्कार, राजनैतिक उठा पटक या सत्यम का लुढ़कना, राज ठाकरे से लेकर बाबा राम रहीम तक ख़बरों के जंजाल में फंसे आम लोगों को मीडिया ने क्या दिया और आम लोगों से मीडिया ने क्या लिया एक यक्ष प्रश्न है।
बाजारवाद की भीड़ में खोता सिमटता और आम लोगों की भावना के साथ साथ राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता मीडिया का संदिग्ध चरित्र अन्तोगत्वा केंद्रीय सरकार के साथ आम जन के लिए भी असहनीय हो गया तभी तो चुनाव सन्निकट होने के बावजूद सरकार ने राष्ट्रहित में टी वी समाचार पर नकेल डालने के लिए सेंसर लगाने का मन बना लिया।
सरकार का मीडिया पर नकेल डालने की मंशा और पत्रकारिता को बाजारवाद पर बली चढाने वालों में खलबली ये एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया थी, व्यवसायी अपने व्यवसाय को लेकर चिल्ल पों करेंगे ही मगर अगर बात राष्ट्रहित की हो तो किसकी सुने और किसकी माने। आज जब आम जन टी वी पत्रकारिता या यूँ कहें की पत्रकारिता में विश्वास तो दूर ख़बर के मुकाबले मनोरंजन को तवज्जो दे रहा है तब भी अपने को लोकतंत्र का चौथा पाया की दुहाई देकर ये मीडिया के व्यवसायी आम जनों की भावना और राष्ट्रीयता का व्यवसाय कर बाजारवाद की चिता पर भारतीयता और आम जनों के नाम पर भावनाओं को ससम्मान बली देने पर आमादा है।
बड़े बड़े मीडिया व्यवसायी के नुमाइंदे अपने अपने लाला जी के लिए पत्रकारिता की हाय तौबा कर रहे हैं, सरकार की निरंकुशता की दुहाई दे रहे हैं मगर क्या ये हकीकत है ? कहने की जरुरत नही की टी आर पी के चक्कर में पड़े तमाम मीडिया चैनल खबरों के नाम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ पत्रकारिता को वेश्यालय और पत्रकार को दलाल बना दिया है जिसे आम आदमी घृणित नजरिये से देखता है।
स्टार न्यूज़ को ख़बर की चिंता है या स्टार न्यूज़ की, पत्रकारिता का गला घोटने वाला न्यूज़ २४ इसे मीडिया का गला घोंटने की कोशिश मानते हैं, लोगों के बिस्तर तक घुसने वाला जी न्यूज़ इसे प्रेस की आजादी पर हमला मानते हैं, भावना का बलात्कार करने में पहले रहने वाले आईबीएन 7 को सरकार के जल्दी की चिंता है, इंडिया टीवी की माने तो पकिस्तान की मीडिया हमसे बेहतर है ( बेहतर हो आप पकिस्तान ही चले जाएँ हमारे देश को आप जैसे पत्रकार चाहिए भी नही ), एक रिपोर्टर से मीडिया व्यवसायी बनी बैग चैनल की मालकीन को चौथा खम्भा धराशायी होता नजर आता है मगर अपने व्यवसायी होने तक की दास्ताँ नही, ई टी वी को ये सरकार की राजनीति नजर आती है, जबकी पत्रकार और पत्रकारिता नामक व्यवसाय में ई टी वी के सबसे बड़े बलात्कारी होने की बात मीडिया के कई नई पौध कह चुके हैं, स्टार न्यूज़ को ही ये सरकार का तलवार से मक्खी उडाना लगता है क्यूँकी स्टार के दर्शक में आम जन के बजाय अब मक्खी ही तो रह गए हैं। स्टार इंडिया अपनी बात को अखबार के माध्यम से कह कर द्रवित हैं की आम जन सरकार की बात माने या टी चैनल की, अगर सब में सरकार है तो हमारे मीडिया व्यवसाय का क्या होगा ? वस्तुतः ये अपने धंधे की चिंता से लोगों को दीगर करा रहे हैं। और सरकार के सेंसर सेमीडिया नही अपितु मीडिया के व्यवसायी चिंतित हैं क्यूँकी उन्हें डर है की वो देश हित देखें या मीडिया हित, अगर देश हित देखा तो मीडिया के धंधे का क्या होगा ?
धंधा ये एक एसा शब्द है जो अमूमन सुनने में अच्छा नही लगे मगर सब इसी का तो खेल है अब देखिये बंदिश की बात टी वी मीडिया पर, इसकी कोई ख़बर ना ही टी वी चैनल और ना ही अखबारों में मगर वेब के बनिये इस मुद्दे को भुनाने में सबसे आगे, आगे वो जिनका किसी मीडिया से कोई सरोकार ना हो तो भी अपने धंधे के लिए पत्रकार के पैरोकार, पत्रकारिता के पैरोकार, लोकतंत्र के पैरोकार या फ़िर इन सभी की आत्मा को बेच कर के मूल्यों का बलात्कार ? भड़ास फॉर मीडिया और विस्फोट के साथ हमारी आजादी को बेईमानी बताने वाले तीसरे स्वतन्त्रता संग्राम ( यहाँ स्वयँ हित कहना बेहतर होगा) के लोग बेगाने की शादी में अब्दुल्लाह दीवाना की तर्ज पर अपनी पहचान के लिए इनके ताल पर थिड़कते नजर आए।
चौंकने वाली बात तो तब आए जब मैंने कई मीडिया जन से बात की जो ना ही मीडिया के दलाल हैं और ना ही मीडिया को बेचने वाले दलाल के गुलाम बल्की ये तो वो पौध है जो पत्रकारिता पढ़कर आम जन के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर पत्रकारिता के महासमर में कूदे मगर यहाँ आने पर उनके विचारों को ये बड़े मठाधीश ने बाजार के विपरीत कह कर ठुकरा दिया और पकड़ा दिया इनके हाथों में अपने मन से माइक और कैमरे का झुनझुना। तकरीबन सौ से ऊपर के नए पोध जो टी वी मीडिया के साथ अखबार और जन संपर्क संस्था से जुड़े हुए हैं का एक मत से कहना की सरकार का कदम ठीक है और ऐसा होना ही चाहिए, मीडिया के इन पैरोकार पर प्रश्न चिन्ह लगा जाता है जो मीडिया के बहाने देश के साथ साथ आम जन और यहाँ तक की अपने पत्रकारों का भी गला बाजार में जाकर घोंट देते हैं।
आज जब हमारे देश को एकता की जरुरत है, सद्भावना की और सौहार्द की जरुरत है और संग ही जरुरत है हमारे सरकार को मजबूत होने की जो वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति और पहचान बिना शर्मिन्दा हुए करा सके तो हर आम भारतीय की, भारत के हर नागरिक का दायित्व की हमारे सरकार को मजबूत बनाए और राष्ट्रहित में निर्णय लेने में जन का सहयोग।
भारतीय बने, भारत की सरकार को मजबूत करें और कोई भी लड़ाई हो के लिए एकीकृत होकर तिरंगे का आवाहन कर लडें।
जय हिंद
वंदे मातरम्
बीते दिनों हमारे देश पर ढेरक आतंकी हमले हुए, कहीं बम के धमाके तो कहीं पाँच सितारा में लोगों को बंधक, हमारे सुरक्षा जवानों ने जांबाजी का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान को जोखिम में डाल हमें सुरक्षित भी रखा। अमेरिका का चुनाव या बुश पर जुतेबाजी, विदेशी किशोरी पर्यटक का बलात्कार और ह्त्या या देशी बलात्कार, राजनैतिक उठा पटक या सत्यम का लुढ़कना, राज ठाकरे से लेकर बाबा राम रहीम तक ख़बरों के जंजाल में फंसे आम लोगों को मीडिया ने क्या दिया और आम लोगों से मीडिया ने क्या लिया एक यक्ष प्रश्न है।
बाजारवाद की भीड़ में खोता सिमटता और आम लोगों की भावना के साथ साथ राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता मीडिया का संदिग्ध चरित्र अन्तोगत्वा केंद्रीय सरकार के साथ आम जन के लिए भी असहनीय हो गया तभी तो चुनाव सन्निकट होने के बावजूद सरकार ने राष्ट्रहित में टी वी समाचार पर नकेल डालने के लिए सेंसर लगाने का मन बना लिया।
सरकार का मीडिया पर नकेल डालने की मंशा और पत्रकारिता को बाजारवाद पर बली चढाने वालों में खलबली ये एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया थी, व्यवसायी अपने व्यवसाय को लेकर चिल्ल पों करेंगे ही मगर अगर बात राष्ट्रहित की हो तो किसकी सुने और किसकी माने। आज जब आम जन टी वी पत्रकारिता या यूँ कहें की पत्रकारिता में विश्वास तो दूर ख़बर के मुकाबले मनोरंजन को तवज्जो दे रहा है तब भी अपने को लोकतंत्र का चौथा पाया की दुहाई देकर ये मीडिया के व्यवसायी आम जनों की भावना और राष्ट्रीयता का व्यवसाय कर बाजारवाद की चिता पर भारतीयता और आम जनों के नाम पर भावनाओं को ससम्मान बली देने पर आमादा है।
बड़े बड़े मीडिया व्यवसायी के नुमाइंदे अपने अपने लाला जी के लिए पत्रकारिता की हाय तौबा कर रहे हैं, सरकार की निरंकुशता की दुहाई दे रहे हैं मगर क्या ये हकीकत है ? कहने की जरुरत नही की टी आर पी के चक्कर में पड़े तमाम मीडिया चैनल खबरों के नाम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ पत्रकारिता को वेश्यालय और पत्रकार को दलाल बना दिया है जिसे आम आदमी घृणित नजरिये से देखता है।
स्टार न्यूज़ को ख़बर की चिंता है या स्टार न्यूज़ की, पत्रकारिता का गला घोटने वाला न्यूज़ २४ इसे मीडिया का गला घोंटने की कोशिश मानते हैं, लोगों के बिस्तर तक घुसने वाला जी न्यूज़ इसे प्रेस की आजादी पर हमला मानते हैं, भावना का बलात्कार करने में पहले रहने वाले आईबीएन 7 को सरकार के जल्दी की चिंता है, इंडिया टीवी की माने तो पकिस्तान की मीडिया हमसे बेहतर है ( बेहतर हो आप पकिस्तान ही चले जाएँ हमारे देश को आप जैसे पत्रकार चाहिए भी नही ), एक रिपोर्टर से मीडिया व्यवसायी बनी बैग चैनल की मालकीन को चौथा खम्भा धराशायी होता नजर आता है मगर अपने व्यवसायी होने तक की दास्ताँ नही, ई टी वी को ये सरकार की राजनीति नजर आती है, जबकी पत्रकार और पत्रकारिता नामक व्यवसाय में ई टी वी के सबसे बड़े बलात्कारी होने की बात मीडिया के कई नई पौध कह चुके हैं, स्टार न्यूज़ को ही ये सरकार का तलवार से मक्खी उडाना लगता है क्यूँकी स्टार के दर्शक में आम जन के बजाय अब मक्खी ही तो रह गए हैं। स्टार इंडिया अपनी बात को अखबार के माध्यम से कह कर द्रवित हैं की आम जन सरकार की बात माने या टी चैनल की, अगर सब में सरकार है तो हमारे मीडिया व्यवसाय का क्या होगा ? वस्तुतः ये अपने धंधे की चिंता से लोगों को दीगर करा रहे हैं। और सरकार के सेंसर सेमीडिया नही अपितु मीडिया के व्यवसायी चिंतित हैं क्यूँकी उन्हें डर है की वो देश हित देखें या मीडिया हित, अगर देश हित देखा तो मीडिया के धंधे का क्या होगा ?
धंधा ये एक एसा शब्द है जो अमूमन सुनने में अच्छा नही लगे मगर सब इसी का तो खेल है अब देखिये बंदिश की बात टी वी मीडिया पर, इसकी कोई ख़बर ना ही टी वी चैनल और ना ही अखबारों में मगर वेब के बनिये इस मुद्दे को भुनाने में सबसे आगे, आगे वो जिनका किसी मीडिया से कोई सरोकार ना हो तो भी अपने धंधे के लिए पत्रकार के पैरोकार, पत्रकारिता के पैरोकार, लोकतंत्र के पैरोकार या फ़िर इन सभी की आत्मा को बेच कर के मूल्यों का बलात्कार ? भड़ास फॉर मीडिया और विस्फोट के साथ हमारी आजादी को बेईमानी बताने वाले तीसरे स्वतन्त्रता संग्राम ( यहाँ स्वयँ हित कहना बेहतर होगा) के लोग बेगाने की शादी में अब्दुल्लाह दीवाना की तर्ज पर अपनी पहचान के लिए इनके ताल पर थिड़कते नजर आए।
चौंकने वाली बात तो तब आए जब मैंने कई मीडिया जन से बात की जो ना ही मीडिया के दलाल हैं और ना ही मीडिया को बेचने वाले दलाल के गुलाम बल्की ये तो वो पौध है जो पत्रकारिता पढ़कर आम जन के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर पत्रकारिता के महासमर में कूदे मगर यहाँ आने पर उनके विचारों को ये बड़े मठाधीश ने बाजार के विपरीत कह कर ठुकरा दिया और पकड़ा दिया इनके हाथों में अपने मन से माइक और कैमरे का झुनझुना। तकरीबन सौ से ऊपर के नए पोध जो टी वी मीडिया के साथ अखबार और जन संपर्क संस्था से जुड़े हुए हैं का एक मत से कहना की सरकार का कदम ठीक है और ऐसा होना ही चाहिए, मीडिया के इन पैरोकार पर प्रश्न चिन्ह लगा जाता है जो मीडिया के बहाने देश के साथ साथ आम जन और यहाँ तक की अपने पत्रकारों का भी गला बाजार में जाकर घोंट देते हैं।
आज जब हमारे देश को एकता की जरुरत है, सद्भावना की और सौहार्द की जरुरत है और संग ही जरुरत है हमारे सरकार को मजबूत होने की जो वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति और पहचान बिना शर्मिन्दा हुए करा सके तो हर आम भारतीय की, भारत के हर नागरिक का दायित्व की हमारे सरकार को मजबूत बनाए और राष्ट्रहित में निर्णय लेने में जन का सहयोग।
भारतीय बने, भारत की सरकार को मजबूत करें और कोई भी लड़ाई हो के लिए एकीकृत होकर तिरंगे का आवाहन कर लडें।
आइये सरकार का साथ दें, अपने देश को मजबूत बनायें।
जय हिंद
वंदे मातरम्
2 टिप्पणियाँ:
एक ही थैली के चट्टॆ-बट्टे हैं सब....
मैं अपना निजी पक्ष पहले ही रख चुका हूं....
जिन तत्त्वों ने देश के लोकतंत्र को दीमक की तरह चाट लिया है वही अगर देश के हित की बात करते हैं तो लगता है कि सदी का सबसे बड़ा मजाक है...
जय जय भड़ास
रजनीश भाई याद है न जे.पी. का ब्लाग "बेहया" जो एक दिन मर गया....ऐसे ही हरेप्रकाश भाई का ब्लाग "तुम्हारा देश हमारा देश" मर गया... पता है क्यों? क्योंकि ये लोग बनिये किस्म के नहीं थे और न ही लड़ाके कि खुद को जिन्दा रख पाते इस आभासी संसार की मुखौटाछाप जीवन शैली में....
लाला घबराये नहीं है जानते हैं कि नेता लोग भी अपने फायदे के टोटके अपनाते हैं कुछ समय में जब लेना-देना तय हो जाता है तो सब शांत हो जाएगा
जय जय भड़ास
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