मंद-मंद मुस्काए मंदी, दुनिया अंधी हो गई.......
बुधवार, 21 जनवरी 2009
ना ना ना ना...मंदी और मुस्कराहट का कोई जोड़ नही है। अब आप ही बताइए की मंदी की मार से बेहाल भला किस मुह से मुस्कुराएगा, अरे भैय्या वो तो रोयेगा। लेकिन एक बात जान लीजिये कोई ना कोई तो है जो इस भीषद मंदी में भी मुस्कुराये बिना नही रह सकता। अब आप सोच रहे होंगे की मंदी में मुस्कुराने वाला भला कौन? तो इसका सीधा सा उत्तर है की वह मंदी ही है जो इस अंधी दुनिया की करतूतों पर चुपचाप मुस्कुरा रहा है और जो कुछ माल मिल रहा है उसे दबा रहा है। अभी कल की ही बात है अमेरिकी प्रेजिडेंट का सपथ ग्रहण हो रहा था, निवर्तमान प्रेजिडेंट के साथ वर्त्तमान प्रेजिडेंट के चेहरे पर मंदी हौले-हौले अपना असर दिखा रही थी। उधर दूसरी तरफ़ ये अंधी दुनिया दंत निकल हसी से मंदी को मात देने की कोशिश कर रही थी। बराक ओबामा जी ने कहा की मंदी से निबटाना एक चुनौती है और हम इससे जल्दी ही निजात पा लेंगे। लेकिन मंदी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी उसने भी दो तुक जबाब दे दिया की अगले चार साल तक मैं ओबामा जैसे इतिहास पुरूष के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलूंगी, आख़िर मुझे भी तो बदलाव का क्रेडिट मिलना चाहिए की नही। मंदी ने अपना बयां जारी रक्खा, उसने कहा की- मैं न होती तो विध्वंस हो चुका होता, भारत और पाकिस्तान के बिच ज़ंग छिड़ चुकी । किसी ने पूछ लिया वो कैसे? मंदी ने कहा- bhaisaheb मंदी का असर है। लाखों लोगों के बिच मंदी ने ऐलान कर दिया है की वो किसी को नही छोड़ने वाली है।
3 टिप्पणियाँ:
मन्दी बन्दी कुच् नही है ये पुन्जीबाद का आम आदमी के खून पीने का तरीक है ...
मनोज भाई,कड़क लेखन है...
मंदा है और गंदा है ये....
कुछ लोगों का धंधा है ये....
जय जय भड़ास
बहुत खूब,
मंदी का जोरदार वर्णन भाई, बधाई लीजिये.
जय जय भड़ास
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