बर्बरियत की तारीख पर का जवाब

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

बर्बरियत की तारीख पर
सिर्फ़ उनका ही नहीं हमारा भी हक़ है
देश की वाट वही नहीं हम भी बजा सकते हैं
उनका कशाब है तो दाउद अफजल अपने ही हैं
मंदिर तोड़ने का गुनाह सिर्फ़ उन्होंने ही नहीं हमें भी हासिल है
हमने भी तोड़े हैं मंदिर जैनियों के,बौद्धों के
और खड़े कर दिए हैं अपने अल्ला रहमान
वो धर्म राज्य के कयाम के लिये जेहाद
सिर्फ़ उन्होंने ही नहीं हमने भी किये हैं
काफ़िरों की गर्दने काटने का सेहरा हमारे सिर भी बंधता है
हमारा ही थे वो पोशीदा मित्र जिसने गुजरात में ट्रेन में निरीह हिन्दुओं को जलाया
हजारों बेगुनाह बौद्धों के लहू से काली मिट्टी को कर दिया था नापाक
इक्तेदार के लिए अपनों का खून बहाना सिर्फ़ उनकी ही नहीं
हमारी भी खासियत है
हमारे अफजल गुरू आजम गढ़ वालों दाउद ने हजारों हिन्दुओं को मारा
तशद्दुद की म्याऊं बोलने से पहले उसने कितने चूहे हज़म किए
ये तारीख से पूछो
चार शादियों का ऐश सिर्फ़ उन्हीं को नसीब नहीं
हम अपने बहनों के साथ मनाते हैं रंग रलियां
दाउद इब्राहिम जितनी स्मगलिंग करने के बाद
मुल्क छोड़ने पर मजबूर हुआ
उससे कहीं बड़ा पाप अंतुले ने किया पर कुछ नहीं हुआ
उनके अगर थे समदान खान,पीरज़ादा
तो हमारे भी हैं अमर सिंह मनमोहन सिंह

सच है जितना फ़ख्र कर सकते हैं हम
उतना वह चाहे तो भले दुनिया भर में कर लें
यहां नहीं,यहां तो हम ही रहें ;
होंगे वे भी कभी अव्वल शहरी,इस मुल्क के तो आज दोयम हैं
लेकिन जो दोयम होता है ऐसा तो नहीं कि वह होता ही नहीं
वह भी होता है सो वह भी है
दोयम होने की तकलीफ़ उन्हे इसलिए झेलनी पड़ रही है
कि उन्होंने गद्दारी करी है
जिन्ना की सारी फौज़ जब उस तरफ दौड़ी
तब रह गए ये गद्दार इस ओर
इस तरफ मुल्क को तकसीम क्यों किया था
हमारे देशभक्त गांधी ने ,नेहरू ने,उनके जिन्ना ने
उन्होंने न गांधी को सुना न नेहरू को और न जिन्ना को सुना
गद्दारों ने इस तरह रहना चुना
उस गद्दारी की सजा वे झेल रहे हैं लातें खाकर जानें देकर
जाते नहीं उस तरफ कहते हैं कि इनकी चालीस पुश्तें दफन हैं
इस ज़मीन में,अब तो यही हमारी ज़मीन है
इतना मजा वहाँ कहाँ,भारत का खाओ व यहीं का बजाओ

5 टिप्पणियाँ:

रम्भा हसन ने कहा…

"जहां सुमति तहां सम्पत नाना....
रामचरित मानस की इस चौपाई का अर्थ सक्सेस मंत्रा से जब छठवीं क्लास में मास्टर जी ने पूछा तो उन्होंने तुरंत बताया कि मास्साब इसका अर्थ है कि जिधर जिधर सुमति नानी जाती हैं संपत नानाजी वहां पहुंच जाते हैं....
अब ये हजरत तो यही अर्थ समझ सकते हैं तो बर्बरियत की तारीख पर अपनी मोटी बुद्धि से जो समझ में आया लिख मारा और अब तक हम ये नही समझ पाए कि इन्हें राष्ट्र का मतलब समझ में क्या आया है। शायद राष्ट्र का मतलब इनका अपना निजी है ऐसा देश जिधर बस हिंदू रहेंगे और उस जगह ब्राह्मण मिल कर भंगियों चमारों का शोषण करेंगे लेकिन उनकी बहू-बेटियों पर बुरी नजर डालने से न चूकेंगे... है न यही आपका भारत???? या कुछ और अलग संकल्पना है भारत की आपकी नजर में? अरे मूर्ख जड़बुद्धि इंसान जब बाबर भारत में आया था तब तो सब तेरी ही तरह से थे कथित हिंदू.... तब क्यों देश एक हजार छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था जो हमेशा एक-दूसरे से लड़ते रहते थे? सारे हिंदू ही थे न तब तुम्हारे पूर्वज क्या कर रहे थे क्या बाबर से लड़ रहे थे या कुछ सौ साल बाद अंग्रेजों के साथ भारत में आए थे ये शोशेबाजी करने कि हम भारतीय हैं न तुम्हें इतिहास की अक्ल है न भूगोल जानते हो न ही समाज शास्त्र की तमीज़ है पता नहीं तुम किस गांव में रहते हो लेकिन जब से तुमने भड़ास ज्वाइन करा है तुम्हारे गांव में बिजली रहने लगी है वरना इससे पहले तो रोते ही रहते थे न....
अगली पोस्ट में अपना पता और जाति अवश्य लिखना अगर वाकई इतने बड़े राष्ट्रभक्त हो कि सोचते हो कि मुसलमानों को देश से हटा देने से सारा मुल्क सुखी हो जाएगा
जय जय भड़ास

गुफरान सिद्दीकी ने कहा…

अरे रम्भा जी ये क्या बोल दिया आपने इतिहास भूगोल समाज-शास्त्र ये क्या होता है प्रशांत भाई ने पहली बार शायद ये शब्द भड़ास पर आ कर सुना है और अब इनकी उम्र हो चुकी है तो ये वापस स्कूल जाने से रहे.खैर मेरे अजीज़ दोस्त को नेक सलाह देने के लिए आपका बहोत बहोत शुक्रिया.

आपका हमवतन भाई......गुफरान.......awadh pepuls forum(faizabad)

prashant ने कहा…

हम हिन्दू आपस में लड़ते है ये एक घर जैसा है जहाँ एक भाई दूसरे से लड़ता है आपकी तरह आतकवादी थोडे बन जाता है मेरा भारत ऐसा होगा जिस्में तुष्टीकरण नहीं होगा

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

प्रशांत भाई,अफ़सोस होता है कि आपका भाईचारा इतना संकीर्ण है,ये तुष्टीकरण का जो आप शब्द पकड़ कर बैठे हो उसके बारे में बताइये कि क्या पिछले साठ सालों में हर सरकार नें यही तरीका नहीं अपनाया है वोट के लिये... कभी मुस्लिम कभी दलित कभी महिला और न जाने क्या-क्या...
आतंकवाद क्या है जरा खुल कर बताइये.... जब सिस्टम आपकी किसी बात को किसी प्रकार से नहीं मानता तब मजबूर हो कर व्यक्ति ये मार्ग अपनाता है,हमारे भगत सिंह और आज़ाद को भी अंग्रेज इसी शब्द से पुकारते थे। क्या आप काश्मीर गये हैं, अरुणाचल गये हैं या अपने गांव से बाहर भी निकले हैं? जस्टिस आनंद सिंह का नाम सुना है इच्छा भी है इस नाम को जानने और इनके काम को जानने की या बस ऐसे ही प्रलापियों की तरह एक ही माला जपते रहेंगे? मेरी दादी का नाम रामबाई था और वे हिंदू राजपूत थी आप इस परिवर्तन के मूल कारणों को जानने का प्रयास करिये
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

शुक्रिया प्रशांत जी हमें हिंदुत्व सीखने का,
वैसे राम राम भजने वालों से मैं माँ सीता सम्बंधित कुछ प्रश्न करूँगा.
जवाब देन और अपने को हिंदू और मर्द साबित करें.
जय जय भड़ास

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