सलीम भाई, चलिये विमर्श आगे ले चलते हैं अच्छा विषय है....

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

सलीम भाई, आपकी बातों को पढ़ा निःसंदेह आपने जो भी लिखा है कम से कम उसमें आलोचना की भी गुंजाईश छोड़ी है वरना अगर आप भी लट्ठ लेकर खड़े हो जाते तो बात आगे ही न बढ़ पाएगी और विमर्श का मार्ग ही बंद हो जाएगा। आप और सभी भड़ासियों व भड़ास-प्रेमियों की सेवा में अपने विचार प्र्स्तुत कर रहा हूं आशा है कि विमर्श आगे बढ़ सकेगा।
1- अगर एक मर्द के पास एक से अधिक पत्नियाँ हों तो ऐसे विवाह से जन्मे बच्चे के माँ-बाप का पता आसानी से लग सकता है लेकिन वहीँ अगर एक औरत के पास एक से ज़्यादा पति हों तो केवल माँ का पता चलेगा न कि बाप का इस्लाम माँ-बाप की पहचान को बहुत ज़्यादा महत्त्व देता है मनोचिकित्सक कहते है कि ऐसे बच्चे मानसिक आघात और पागलपन के शिकार हो जाते है जो जो अपने माँ-बाप विशेष कर अपने बाप का नाम नहीं जानते अक्सर उनका बचपन ख़ुशी से खाली होता है इसी कारण तवायफों (वेश्याओं) के बच्चो का बचपन स्वस्थ नहीं होता यदि ऐसे विवाह से जन्मे बच्चे का किसी स्कूल में अड्मिशन कराया जाय और उसकी माँ से उस बच्चे के बाप का नाम पूछा जाय तो माँ को दो या उससे अधिक नाम बताने पड़ेंगे
भाई आप कौन सी सदी में रह रहे हैं आजकल आप डी.एन.ए. टैस्ट करा कर किसी के भी माता-पिता के बारे में जान सकते हैं क्या आप तकनीक की तरक्की को सिरे से खारिज कर देने के पक्ष में हैं? आजकल स्कूल में दाखिले के समय पिता के नाम की अनिवार्यता इसी लिये समाप्त कर दी है ताकि सभ्य समाज की से तिरस्कार करी गयी वेश्याओं के बच्चे भी स्कूल में सहज भाव से जा सकें शिक्षा का क्षेत्र तो कम से कम इन पोंगापंथी परंपराओं से मुक्त हो चला है। मैं निजी तौर पर तवायफ़ों के बच्चों को पढाने जाता हूं और सभी को प्रेरित करता हूं कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें ताकि जिल्लत से मुक्त होने में मदद मिले। शिक्षा ही हीनभावना और अपराधबोध से मुक्ति दिलाने में सहायक हो सकती है। मुझे एक भी ऐसा बच्चा पागल या मनोरोगी नहीं मिला , आपको किन मनोचिकित्सकों ने ये तथ्य दिया है मुझे अवश्य बताइये।
2- मर्दों में कुदरती तौर पर औरतों के मुकाबले बहुविवाह कि क्षमता ज़्यादा होती है
क्या ये तथ्य भी आपको किसी धार्मिक किताब में पढने को मिला है? मैंने तो आयुर्वेद(कामसूत्रम और कोकशास्त्र) में पढ़ा है कि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा कामक्षमता आठ गुना अधिक होती है। मैं एक चिकित्सक होने के नाते इस बात से साफ़ तौर पर असहमत हूं कि कुदरत ने कुछ ऐसा वरदान(?) पुरुषों को दिया है और सामाजिक अध्ययन के अनुसार कह सकता हूं कि ये एक निहायत ही भ्रामक तथ्य है। इस बात पर मैं किसी भी जानकार से शास्त्रार्थ करने को कभी भी तैयार हूं।
3- बायोलोजी के अनुसार एक से ज़्यादा बीवी रखने वाले पुरुष एक पति के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना आसान होता है जबकि उसी जगह पर अनेक शौहर रखने वाली औरत के लिए एक पत्नी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना संभव नहीं है विशेषकर मासिकधर्म के समय जबकि एक स्त्री तीव्र मानसिक और व्यावहारिक परिवर्तन से गुज़रती है
कर्तव्यों का निर्वाह करना बायोलाजी का क्षेत्र न हो कर अपितु समाज शास्त्र का विषय है। एक से अधिक पत्नी होना या पत्नी के विवाहेतर संबंध हमेशा से ही पारिवारिक कलह और हत्या जैसे आपराधिक घटनाओं के पीछे पाए जाते हैं।
4- एक से ज़्यादा पति वाली औरत के एक ही समय में कई ....... साझी होंगे जिसकी वजह से उनमे ...... सम्बन्धी रोगों में ग्रस्त होने की आशंका अधिक होंगी और यह रोग उसके पति को भी लग सकता है चाहे उसके सभी पति उस स्त्री के अन्य किसी स्त्री के साथ ....... सम्बन्ध से मुक्त हों यह स्थिति कई पत्नियाँ रखने वाले पुरुष के साथ घटित नहीं होती है
ये आपने किस साइंस की किताब में पढ़ लिया है भाईसाहब? क्या एड्स की बीमारी स्त्री या पुरुष देख कर फैली है? यदि एक पति सुजाक या सिफ़लिस जैसे यौनरोग से ग्रस्त है तो वह अपनी सभी पत्नियों को लगे हाथ एक साथ बीमार कर सकता है, एड्स का शिकार बना सकता है।
और भी बहुत से कारण है इंशा अल्लाह वक़्त मिला तो उन्हें भी छापूंगा जिससे ये आसानी से समझा जा सके कि क्यूँ इस्लाम औरत को एक से ज़्यादा शौहर (पति) रखने कि इजाज़त नहीं देता है? इसके अलावा अन्य बहुत से कारण हो सकते हैं तभी तो परमपिता परमेश्वर/अल्लाह ने स्त्रियों के लिए एक से ज़्यादा पति रखने को पूर्णतया वर्जित कर दिया
इस संबंध में तो बस मैं अपनी निजी सोच न कह कर मुनव्वर आपा की बात को शब्दशः दोहराना चाहता हूं कि चाहे इस्लाम हो, सनातन धर्म हो, यहूदी हों, पारसी हों अथवा संसार की कोई भी मजहबी सोच वह मात्र पुरुष प्रधान है यही वजह है कि ईश्वर, अल्ला या वह जो भी है कभी स्त्री के रूप में क्यों अवतरित नहीं होता? क्या वजह है कि एक लाख चौबीस हजार नबियों और भगवान विष्णु के सारे अवतार पुरुष रूप(मोहिनी रूप को छोड़ कर क्योंकि वह कुछ खास महत्त्वपूर्ण स्थान में हैं ही नहीं) में ही हैं???
जल्द ही आपकी सेवा में अगली पोस्ट मुनव्वर आपा की होगी जो मैं खुद पोस्ट करूंगा किंतु विचार उनके निजी हैं यह एक काफ़ी पुरानी पोस्ट होगी जो कि भड़ास(पंखों वाली) पर प्रकाशित हो चुकी है जब कि रक्षंदा अख्तर रिज़वी ने कुछ बातें उठायी थीं। इस पोस्ट का शीर्षक था
--नमाज के पाश्चर्स अच्छे फिजिकल एक्सर्साइजेस हैं ,क्या बस यही साइंस मान्य है????
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

मैं आपकी बहस का जवाब इंशा अल्लाह जल्द ही दूंगा, फिलहाल मेरा एक ही जवाब है अगर आपको waqai लगता है कि एक औरत के लिए बहु विवाह अच्छा है, ठीक है, सामाजिक और धार्मिक रूप से या आपके हिसाब से तो क्यूँ नहीं आप इसको (बहु-विवाह को) प्रोत्साहित करे, क्यूँ ना आप इसे अपने शहर में, मोहल्ले में, गली में (जहाँ आप रहते हैं) या फिर सबसे अच्छा अपने परिवार से ही......

मगर जनाब हमसे, या हमारे जैसे और भी है से यह ना हो सकेगा |

आपको आपकी राह और हमें हमारी|

Saleem Khan ने कहा…

डी.एन.ए. टेस्ट करने की प्रक्रिया भी बताते चलें, क्या यह इतना ही आसान है कि हर कोई इसका इस्तेमाल कर सके अपने पैदा हुए बच्चे के पिता की जाँच के लिए- क्या यह इतना ही आसान है | क्या यह कानूनन इतना आसान है, क्या यह सामाजिक रूप से इतना सहज कि बिना खास टेंशन से बच्चे के बाप नाम पता हो सके| ठीक है आपकी बात मान लेता हूँ.......... तो फिर हर एक बच्चा पैदा होगा और फिर उसके बाप का पता करने के लिए उस औरत के बच्चे के अलावा उसके सारे पतियों का भी टेस्ट होगा |

जनाब!! क्या यह इतना ही आसान है.......खास कर हमारे हिन्दोस्तान में??????????

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