शायरी -ऐ- संतरा

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009


दूर से देखा तो संतरा था,

पास गया तो भी संतरा था,

छिल के देखा तो भी संतरा था,

खा के देखा तो भी संतरा था।

वाह! क्या संतरा था।

3 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अमित भाई बिना चित्र के भी यह बात उतनी ही ताकत से बयान हो रही है इसलिये बेकार ही हम क्यों नचनिया-गवैया का प्रचार करें अपने मंच पर? इनके लिये वैसे भी तमामोतमाम लोग लार टापकाए खड़े हैं अपना-अपना ब्लाग लिये....
जय जय भड़ास

dr amit jain ने कहा…

आप की इस बात का मै आगे ध्यान रखुगा जनाब

बेनामी ने कहा…

बढिया भैये,
संतरे का बढिया बखान,
हम भी संतरे के ही दीवाने हैं.
जय जय भड़ास

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