हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
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हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
10 घंटे पहले
 
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© भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८
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2 टिप्पणियाँ:
दीदी जस्टिस आनंद सिंह को भला कोई क्यों पहचानेगा क्योंकि इन्होंने न तो कोई फ़िल्म करी है और न ही कोई टीवी सीरियल.... इन्होंने तो मात्र अपनी पूरी जिंदगी न्यायप्रणाली में सुधार लाने में लगा दी है और अभी भी एक आम आदमी के संवैधानिक अधिकारों के लिये एक गुमनाम लोकदेवता की तरह से संघर्ष कर रहे हैं और इनके विरोधियों का तो नाम लेते ही अच्छॆ-अच्छे सूरमा पत्रकारों की हवा तंग होती है....
जय जय भड़ास
दीदी,
जज साब को कोई पहचाने या ना पहचाने, अपुन लोग तो जान ही रिये हैं. न्याय की लदी में हमारा नेता आनंद सिंह ही है, हम सब तो न्याय के सिपाही हैं.
बाकी बचे दोजख के गलीज सिर्फ़ भांड कू ही पहचानने वाले हैं, टी वी, और अखबार में दिखाने वाले हैं.
पत्रकारिता को भांडकारिता जो बना रखा है सुसरों ने.
जय जय भड़ास
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