गाँव और बरहम बाबा.
बुधवार, 1 अप्रैल 2009
गाँव गया तो जाते ही सबसे पहले अपने बरहम बाबा के शरण में पहुंचा। ये हर बार करता हूँ क्या करुँ बचपन की आदत रही है जब भी अकेला महसूस करता था अपने बरहम बाबा के साथ घंटो बतिया लेता था, सारे गिले शिकवे दूर और दिल को भी सुकून मिलता था। इस बार भी गया तो पहले जी भर कर बातें की, लड़ा और फ़िर बाबा से प्यार मोहब्बत भी फ़िर एक ख्याल की क्यों ना भड़ास परिवार के साथ लोगों को भी बाबा से मिलवा दूँ सो ले आया सभी लोगों के बीच अपने बाबा को।
चलिए मिलिए बरहम बाबा से संग हैं भोला बाबा भी और हजारो साल पुराना वो पीपल का पेड़ जो हमारे बाबा का घर है।
बाबा का घर ये वर्षो पुराना पीपल का पेड़ जिसकी छाँव में कभी हमने भी लड़कपन की ।
आप भी बाबा के साथ कुछ ग्रामीण नजारा लीजिये जहन हमारा भारत बसता है, शहर के कोलाहल सी दूर, ना भागम भाग ना ही जिन्दगी को पीछे छोरती ज़माने की ऊब।
जय बरहम बाबा की।
जय जय भड़ास।
जय बरहम बाबा की।
जय जय भड़ास।
4 टिप्पणियाँ:
bhut acchi abhivyakti apne anubhav ki
gargi
Darshan matra se shanti ka anubhav kara diya apne sir...dhanyabad
रजनीश भाई बस आंख बंद करके कल्पना ही कर सकता हूं आप ज्यादा ये सब दिखा दिखा कर रुला रहे हैं मन करता है कि मुंबई छोड़ कर भाग जाऊं...
जय जय भड़ास
mere gaanw me bhi brahm sthaan hai ...usaki yaad aa gayi . waha ham sab theater ka reharsel karate the .jindagi bhag doud me ab gaanw jana kam ho gaya ...us sthan ki yaad aapake lekh padhkar aayi
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