गाँव की समस्या और नीतिश का विकाश ?

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

गाँव से आए हुए महीने दिन से ज्यादा होने को आए मगर आज भी जैसे लगता है की कल ही आया हूँ, यादों की वो बारात पीछा छोरने का नाम ही नही ले रही है। बहरहाल चलिए अब मुद्दे पर आ जाऊं।
गाँव में होली आने वाली थी सो चहुँ और बसंती माहोल था दोपहर का समय हुआ था जब मैं नहाने को अपने खरिहान में चापाकल (हाथ से चलाने वाला पानी का नल) पर गया था कि तभी दूर गरीब मछुआरे की बस्ती से शोर सुनाई दिया, आदतन जैसा था वैसा ही भागा तो देखा कि एक झोंपडे में आग लगी हुई है और लोग उसे बुझाने की कोशिश में लगे हुए हैं। मैं भी उस हुजूम में शामिल हो गया मगर आग बुझाने के लिए पानी या रेत या फ़िर कुछ और लाऊँ कहाँ से अपने भाई को कहा कि जल्दी से घर जा और फायर बिग्रेड को फोन कर...... कह तो दिया मगर फ़िर अपने आप पर ही शर्म आयी।

बहरहाल साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज पर लोगों ने आपसी सहयोग से आग पर काबू पाया अन्यथा उस झोपडे की बस्ती का समाप्त होना तय था। आग बुझने के बाद घर गया और मोबाइल से कुछ तस्वीरें ले आया जो ब्लॉग के माध्यम से लोगों से साझा करना था।


जली हुई झोंपडी बिखडा हुआ घर और पास में उपले का अम्बार यानी की आग का सारा उपयुक्त सामन।



जले हुए आशियाने से दूर रोता परिवार, नया झोंपडा कैसे बनाऊं ?



नए घर बनाने कि शिकन चेहरे पर और संग ही बिहार विकास कि झलक भी !!!

जले हुए घर से अपने सामानों को तलाशती पीडिता।


जाने का वो रास्ता जहाँ से मदद आनी थी।


आग बुझी और गाँव को मिली राहत मगर ना बुझा तो मेरे दिल का आग.......

क्या ये नीतिश का विकाशशील बिहार है?

मौलिक आवश्यकता से कोसो दूर ग्रामीण बिहार और नीतिश के बिहार के विकाश के दावे में क्या तालमेल है?

ना ही पानी ना ही फायर बिग्रेड यहाँ तक कि गरीब को खाने के लाले और ना ही कोई सरकारी मदद और विकाश की ढोल क्या बिहारियों के साथ मजाक नही है?

प्रश्न करता है अनकही लोगों से, सरकार से और बिहार के कर्ता धर्ता से कि बिना ग्रामीण विकाश के हमारे विकाशशील होने कि बात कोई कैसे कर सकता है। क्या सरकार वाकई में लोगों में पहुँच बना रही है?

भड़ास का यक्ष प्रश्न जारी है ?


3 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

रजनीश भाई ये हाल मात्र बिहार में ही नहीं बल्कि कमोबेश देश के हर हिस्से के ग्रामीण क्षेत्र का है मैं आपको इसके नमूने तो नवी मुंबई बसाने के लिये किसानों की खेती योग्य भूमि हड़प कर बिल्डिंगे तानने वाली सरकारों के राज्य में भी दिखा सकता हूं। यकीन मानिये मैं नवी मुंबई के अंतर्गत आने वाले गांवों की बात कर रहा हूं जैसे कि नावड़े, तलोजा, कोलवाड़ी, पड़्घा, वलवली, हरिग्राम, नेवाळी और न जाने कितने गांव अब भी विकास की गति में अब तक इस हाल में है कि पीने का पानी कोसों दूर से सिर पर ढोकर लाना पड़ता है और नाम है नवी मुंबई: इक्कीसवीं सदी का शहर.... साले नेता शंघाई बनाने चले थे कमीने( जाने दीजिये वरना अभी मुंह से गालियों की गंगा बांध तोड़ कर निकल पड़ेगी)
जय जय भड़ास

गुफरान सिद्दीकी ने कहा…

रजनीश भाई आपकी कलम हमेशा प्रभावित करती है वास्तविकता लिखने के साथ दिखाने में आप माहिर हो और भड़ास का मंच उन लोगों के मुह पर तमाचा है जो झूटी विकास की कहानी बनाते और दिखाते हैं..............

आपका हमवतन भाई ....गुफरान.....अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद.,

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

गुफ़रान भाई तमाचा नहीं जूता है वो भी कस कर मारा हुआ लेकिन ये गैंडे से भी ज्यादा मोटी चमड़ी के लोगों पर ये जूते भी बेअसर हैं कुछ अलग इंतजाम करना पड़ेगा
जय जय भड़ास

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