जिंदगी
रविवार, 26 अप्रैल 2009
मेरी आकांछा .
ज़िन्दगी से जंग जारी हैबिना किसी शिकवा व शिकायत के
जियें जा रहा हूँ
इस उम्मीद से
की कुछ पद चिह्न छोड़ सकूं
पद चिह्न ज़िन्दगी के साथ संघर्ष का
पद चिह्न आज की हकीकत का
जो कल लोगो को कहानियाँ सुनाये
जो आज बीत रही है
जिससे लोगो की चेतना में बदलाव आए
यह कोई संघर्ष गाथा नही होगी
यह कहानी होगी
एक आम आदमी की ज़िन्दगी की
जिसे उसने जिया ज़द्दोज़हद में ।
प्रशांत भगत
2 टिप्पणियाँ:
प्रशांत भाई जिंदगी में सघर्ष के दौरान टपका पसीना और उससे बने गीले से पदचिन्ह ही आने वाली पीढ़ियों को बताते हैं कि बिना राह भटके कैसे आगे बढ़ सकते हैं
जय जय भड़ास
yup.
Jai Jai Bhadash
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