मुंबई के "हमसफ़र" ट्रस्ट के लोग होमोसेक्सुल प्रदर्शनकारियों के लिये बांग्लादेशियों की सहायता ले रहे हैं
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
आज मैंने एक अंग्रेजी समाचार पत्र में पढ़ा और चित्र भी देखा कि अशोक राव कवि और उनके गुर्गे जो कि मुंबई में "हमसफ़र" नाम का एक एन.जी.ओ. चलाते हैं जो कि भारत में पूरी ताकत और धन बल से इस बात के लिये प्रयास कर रहा है कि हमारे देश में भी समलैंगिकता को कानूनन मान्य कर दिया जाए। इन लोगों ने अब एक दुष्टता करना शुरू कर दिया है कि जो बांग्लादेशी पुरुष स्त्रियों के कपड़े पहन कर लाली-पाउडर लगा कर हिजड़े बन कर भीख मांगते और लोगों को तंग करते हैं ये हमसफ़र ट्रस्ट वाले अब उनकी सहायता लेने लगे हैं। कुछ समय पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें कि मैंने लैंगिक विकलांगों पर पुलिसिया अत्याचार की बात बताई थी कि किस तरह हम सब को निर्वस्त्र करके परेड कराई गयी थी ये देखने के लिये कि हम सचमुच लैंगिक विकलांग हैं या नहीं क्योंकि अखबारों की सुर्खियों में आया था कि हिजड़े द्वारा लोकल ट्रेन में महिला से बलात्कार का प्रयास करा गया, धन्य हैं ऐसे पत्रकार और उनकी पत्रकारिता और उनसे भी ज्यादा महान हैं मुंबई पुलिस। अब आप देखिये कि हमसफ़र ट्रस्ट ने सीधे इन बहुरूपियों को पोस्टर पकड़ा कर एक प्रदर्शन करा दिया और मीडिया के लोग भी मसाले की तलाश में पहुंच गये फोटो खींच कर स्टोरी कवर करने। जब कि सच तो ये है कि समलैंगिकता एक निहायत ही निजी सत्य है जिसे कोई सामने लाने में एक अपराध बोध से ग्रस्त रहता है लेकिन चूंकि अशोकराव कवि को तो नेता बनना है इसलिये जब मुंबई से ऐसा कोई सामने नहीं आता तो अब इसने बांग्लादेशी बहुरूपियों की मदद लेनी शुरू कर दी है। उन कमीनों ने अपने हाथ में पोस्टर ले रखे थे जिस पर अंग्रेजी में लिखा था कि मैं खाना बनाना चाहता हूं, मैं साड़ी पहनना चाहता हूं लेकिन मैं एक लड़का हूं, मैं वैसे रहना चाहता हूं जैसा मैं हूं।
अरे कमीने इंसान सीधे क्यों नहीं लिखता कि तेरी इच्छा क्या है अगर कोई पुरुष या स्त्री खाना बनाना चाहता है या साड़ी या पतलून पहनना चाहता है तो इस बात पर तो कानूनी रोक नहीं है तो व्यर्थ के प्रदर्शन की क्या आवश्यकता है, अरे षंढ! सीधे लिख पोस्टर में कि तू खुद अपनी गलीज़ इच्छाओं की पूर्ति के लिये इतने नाटक रचा रहा है। तुझे जो करना है या करवाना है कर लेकिन कानूनी मान्यता की आड़ में क्यों भारतीयता की मिट्टी पलीद करना चाहता है। आश्चर्य है कि कोई भी धार्मिक संगठन न हिंदू न मुसलमान इन हरामियों को क्यों नहीं रोकता? क्या इनसे डरते हैं या फिर कोई अलग बात है??? ऐसे हजारों सवाल दिमाग में आ जाते हैं जब भी कोई रंगा पुता बांग्लादेशी बहुरूपिया सामने आकर भाग जाता है।
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
अशोकराव और कर भी क्या सकता है बेचारा इतने साल से प्रयास कर रहा है जो भी मंत्री-संत्री मदद करने की बात करता है पहले "ट्रायल" लेता है और पसंद न आने पर मुकर जाता है इसलिये अब बांग्लादेशियों से सहायता ले रहा है शायद भारतीय नेताओं को ये पसंद आ जाएं और कानून बन जाए कमीनेपन का कि....
थू है इन नीच लोगों पर जो खुद को बड़ा निरीह बताते हैं और उन हरामियों पर भी थू है जो इनकी वकालत में खड़े हो जाते हैं।
जय जय भड़ास
good blog
keep writing
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