ऐसा क्यों..?

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

इस ब्लॉग पे होती देखी..."औरतों का लिबास बलात्कारके लिए कारण बनता है?"

गर मै कहूँ, की हमारी फिल्मों मे बेहूदगीसे पोशाख पहने नायिका या खल्नायिकाको देख कोई उत्तेजित होता है और बाहर निकल किसी गरिमा पूर्ण पोशाक पहने महिलापे बलात्कार करता है, तो उसका कौन ज़िम्मेदार है?

ये एक मानसिकता है...अत्यन्त विद्र्रूप मानसिकता...और इसका किसीभी हालत मे , काहींभी justification होनाही नही चाहिए....

क्यों औरतकोही हम ज़िम्मेदार ठहराएँ? मै अर्ध नग्नताके पक्षमे कतई नही हूँ....लेकिन moral policing करनेका अधिकारभी नही रखती....

हैरत की बात है...मै अपनेसे निगडित एक बयान दे रही हूँ...किसी काफ़ी मशहूर महिला ब्लॉगर ने मुझसे नाराजगी दिखायी...वजेह, मैंने अपने "धरोहर" इस ब्लॉग पे जहाँ मै, अपने बदहाल, आत्महत्या करते बुनकरों को बढावा देना चाह रही हूँ, अपनी कुछ तस्वीरें डाली...( ज़ेवर भी डिजाईन करती हूँ....)...
इस तरह का बढावा मै बरसों से देती चली आ रही हूँ...मेरे नैहर के परिवारसे कई महिलाएँ इन बुनकरों के लिए व्रतस्थ हैं...मै बड़ी दुकानों से अपने परिधान कभी नही लेती( "परिधान" भी मेरा एक ब्लॉग है).

इन व्यक्तीको ( जिनका मै आजभी आदर करती हूँ), ऐतराज़ है की, मैंने अपनी "इस तरह की पर्सनल, तस्वीरें डाल नीही नही चाहिए थीं..!"तो क्या अगर मै किसी मॉडल की डालती तो चलता? या कोई उस तस्वीरों को देखके बताये की, उसमे कुछभी असभ्य है? सिर्फ़ एक छोटी-सी कोशिश है,कि हर उम्रकी महिला, पारंपारिक, भारतीय वस्त्रों मे आकर्षक और गरिमामयी, दोनों दिख सकती है....बलिक, मैंने ऐसे वस्त्र या साडी चुनी, जो मेरी बेटीने अपने ब्याह के स्वागत समारोह मे पहनी थी...बेटी जो स्वयं, बुनकरों को बढावा देती है...और बेहद गरिमामय तरीकेसे अपना पहरावा रखती है...!

खैर, उस पोस्ट मेसे भी मैंने २ तस्वीरें निकाल देना चाही, लेकिन नही डिलीट कर पायी। चाहूँगी कि, मुझे बताया जाय, मै कहाँ ग़लत हूँ? मुझे ख़ुद को तो नही लग रहा...वैसेभी, ये पुरानी कहावत है, गधेपे बैठे तो क्यों, और उतरे तो क्यों?

3 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

शमा जी! सर्वप्रथम तो भड़ास परिवार में आपका तहेदिल से सभी भड़ासियों की तरफ से हार्दिक स्वागत.....
ये ही वह मंच है जहां अबौद्धिक हो कर हम लिख सकते हैं गधे पर अपनी खुशी से बैठ सकते हैं, उतर सकते हैं, गधे के साथ चल सकते हैं और अगर मन करे तो गधे को उसके भोलेपन पर चूम भी सकते हैं बिना इस बात की परवाह करे कि लोग क्या कहेंगे.....
यदि आप अपनी अभिव्यक्ति में बौद्धिक जुगाली करने वाले ब्लागरों की टीका-टिप्पणी करके कुछ काट-छांट करेंगी तो मन ही मन अधूरी अभिव्यक्ति की टीस भी आपको ही झेलनी होगी कोई न आयेगा उस टीस को बांटने.....
चलते रहिए
सादर
जय जय भड़ास

shama ने कहा…

Aapne theek kaha...mai sehmat hun...
Ehem mudda to maine balatkar ka uthaya tha( pehlehi utha hua padha tha...kal nazar nahee aayaa..)"kya ladkiyon kaa poshaakh is kruty ke liye zimmedar hai?)...ispe apna mat prarshit karneke liye maine ye post likhi...
Aaka tahe dilse dhanyawad!
Shama

mark rai ने कहा…

....गधेपे बैठे तो क्यों, और उतरे तो क्यों?....
kahi chain nahi kuchh bhi kare log chhodege nahi ....aapka swaagat hai ...

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