कलंकित चिकित्सक (अतीत के पन्ने से......)
शनिवार, 2 मई 2009
लखनऊ का संजय गाँधी चिकित्सालय, एक बीस वर्षीया युवती को ह्रदय रोग विभाग में भरती करना था, हस्पताल कहता है की पहले पैसे भरो तब भारती करेंगे। सरकारी मदद से उपलब्धता के आधार पर युवती को हस्पताल में भारती किया जाता है और उसके ह्रदय का इलाज भी। अब हस्पताल प्रशाशन उसे अस्पताल से छुट्टी नही दे रहा है क्यौंकी हस्पताल के अनुसार उसने बिल नही भरा है, और बिना बिल चुकाए अगर वोह हस्पताल से जाती है तो हम उसके ख़िलाफ़ मुकदमा करेंगे। ये कहानी नही हकीकत है उत्तर प्रदेश की राजधानी के सबसे बड़े चिकित्सालय की।
सलमा के ठीक हुए महीनों बीत चुके हैं, इस दौरान उसके भाई और अब्बा की भी मौत हो चुकी है मगर डॉक्टरों ने उसे अन्तिम संस्कार तक मेंजाने की इजाजत नही दी क्यौंकी उसने डॉक्टरों की फीस और अस्पताल का बिल नही भरा है ऐसा अस्पताल प्रशाशन का कहना है, सलमा की माने तो भरती होने से पहले अस्पताल ने सत्तर हजार रूपये की मांग की थी, पचास हजार रूपये मुख्यमन्त्री रहत कोष से और बीस हजार ख़ुद के इन्तजाम से सलमा के परिवार वालों ने हस्पताल में जमा कराया था जिसके बाद ही सलमा का इलाज किया जा सका।
परिवार में मौत और गरीबी का आलम ऊपर से ठीक हो चुकी सलमा के ऊपर सात महीने का हस्पताल का बिल जो की सिर्फ़ इसलिए क्यौंकी सलमा को अस्पताल प्रशाशन ने छूट्टी नही दी। आज सलमा अस्पताल के थोपे गए बिल को देने में असमर्थ है मगर डॉक्टरों की माने तो उसने कभी सलमा को जबरदस्ती नही रोका है, हाँ बिना बिल चुकाए जाने का मतलब है अस्पताल का सलमा के ऊपर कानुनी कार्रवाई।
भौतिकवादी होते युग में जहाँ आज भी डोक्टर को इश्वर का दर्जा प्राप्त है वहां संजय गांधी चिकित्सालय के डॉक्टरों का ये वर्ताव निसंदेह समाज के लिए चिंतनीय है, प्रश्न की बिभेद की राजनीति से मरने वाले हमारे भाई या भी पीसी की अंधी दौड़ में डॉक्टरों का गरीबों का शोषण, दोनों ही बड़ाबड़ी के गुनाहगार नही? राज ठाकरे हो या संजय गांधी अस्पताल के ये चिकित्षक दोनों में फर्क क्या है?
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मुझे नही बल्की सलमा को और उस जैसी हजारों गरीबी की मार से दबे लोगों को जो मानवता के पेशेवर होने का शिकार हो रहीं हैं।
साभार:- दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली।
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