इरशाद अली: ब्लागिंग के खली(कित्ती भैंकर गलतफैमी)

रविवार, 17 मई 2009

इरशाद अली ब्लागर हैं,प्रकाशक हैं,यशवंत सिंह के चेले हैं ऐसा ये खुद गुरूजी लोग कह कर स्वीकार रहे हैं,ब्लागिंग पर किताब लिखी है और उसका विमोचन यशवंत सिंह से कराया है, इन्होंने कुछ दिन पहले मुझे एक मेल करा जैसे कि अक्सर हिंदी ब्लागर करते हैं कि जबरन अपने लिखे को पढ़वाने के लिये मेल करके लिंक भेजते हैं सो इन्होंने भी करा जबकि लिखते हैं कि टिप्पणियां या पाठक गुणवत्ता से मिलते हैं लेकिन खुद मेल भेज कर क्यों मुझे पढ़ाना चाहते थे ये इन्होंने साफ़ नहीं करा है। इन्होंने एक अत्यंत मौलिक और गुणवत्तायुक्त पोस्ट लिखी है जिसमें इन्होंने हिंदी ब्लागिंग के पच्चीस सबसे बड़े सच बताए हैं जिसमें कि पहला सच ये रहा जिस पर मनीषा दीदी ने टिप्पणी करी तो इरशाद बाबू बौखला कर उनके दिमाग की जांच की सलाह देने चले आए। लीजिये आप सबकी नजर है......
हिन्दी ब्लॉगिंग के अब तक से सबसे पक्के दोस्त। या कह लिजिये सबसे पक्की दोस्ती इन्ही की है। अविनाश (मौहल्ला) और यशवंत (भड़ास)
(ये रहा इरशाद बाबू का पहला सच, पता नहीं व्यंग की क्या परिभाषा होती है या समय और आदमी देख कर बदलती रहती है)
इरशाद बाबू बस एक बात कह कर आपको बता देती हूं कि आपमें सही (व्यंग) लिख पाने का साहस नहीं है वरना यशवंत सिंह के साथ भड़ास न जोड़ कर "भड़ास blog" जोड़ते जैसा कि आपने फ़ेहरिस्त में अपने गुरू को जोड़ रखा है जानते नहीं है या बताने का साहस नहीं है कि "भड़ास" रजनीश के.झा और डा.रूपेश श्रीवास्तव चलाते हैं और हिंदी ब्लागिंग के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जो हमने करा है लेकिन तुम न तो पहला सच लिख सकते हो न ही आखिरी... बस ई-मेल भेज कर लिंक भेज कर पढ़वाते रहो कि कितना बेहतरीन लेख है जिसपर आप टिप्पणी करेंगे जरूर....
सप्रेम
मनीषा नारायण
(ये रही मनीषा दीदी की टिप्पणी)
आमतौर पर मुझे टिप्पणी करने वालों को में जवाब नही देता लेकिन प्रिय मनीषा के भम्र को दूर करने के लिये मुझे यहां आना पड़ा। मनीषा तुम्हारे दिमाग में क्या भरा हुआ है इसकी जांच की जरूरत हैं। तुमको अच्छा और स्तरीय साहित्य पढ़ना चाहिये। आपने कहा कि मुझमें व्यंग लिखने का साहस नही है। शायद आपकी नजर में व्यंग लिखना दूसरों की इज्जत को तार-तार करना तो नही हैं। मुझे क्या अधिकार है कि मैं दूसरों की इमेज के साथ व्यंग के नाम पर कुछ भी बकना शुरू कर दूं। यहां जिनके बारे में भी मैंने लिखा है वो सब हमारे मित्र और परिचित है। इसलिये हल्की-फुल्की नौंक-झौंक की जा सकती है लेकिन बदतामिजी नही। आपकी दूसरी शिकायत मैंने यशवंत के नाम के साथ भड़ास ब्लाग क्यों नही लिखा। इसलिये कहता हूं कुछ पढ़-लिख लो फिर ब्लागिंग करो। वो एक आटोमेटिक लिंक टूल है जो खुद-ब-खुद बदलता रहता है। मेरे ब्लाग पर अगर सबसे ज्यादा कोई ब्लाग प्रमोट होता है तो वो भड़ास ही है। और आपको जानकारी होना बहुत ही जरूरी है कि यशवंत जी से मेरा सम्बंध कैसा है। इसके लिये आपको रिसर्च की आवश्यकता है। जिस समय मैंने ब्लागिंग पर भारत की पहली पुस्तक लिखी तब उसके विमोचन को यशवंत जी के द्वारा ही सम्पन किया गया था। मेरठ में इतना बड़ा ब्लागिंग सेमिनार अभी तक नही हुआ हैं। और डा. रूपेश जी से भी मेरे सम्बध मधूर है उनके एड्स पर किये गए शोध का मैं बड़ा प्रशंसक हूं। और आपने कहा कि ना मैं पहला सच लिख सकता हूं ना आखिरी। तो जरा मेरी पूरानी पोस्टे पढ़ लिजियेगा। जावेद अख्तर को खुली चूनौती, समीरलाल, आलोक पुराणिक वाले सभी लेख आप जरूर पढ़े जितना मैने इनको कहा है अभी किसी दूसरे ने वो पहलू नही छुए हैं। हां डा. रूपेश को मैंने जरूर ईमेल भेजा था। अब नही भेजूगा अगर आप इसका इतना बुरा मानते हैं। (अच्छी टिप्पणीयां या पाठक ईमलों से नही मिलते बल्कि गुणवत्तापूर्ण, मनोरजंक और नये लेखन की बदौलत मिलते है, आप अपने इस भम्र को भी निकाल दे।) बाकि ईश्वर आपका कल्याण करें। मेरी ऐसी अभिलाषा है।
स्नेहाकांक्षी
इरशाद
(और ये रही इरशाद बाबू का उत्तर मनीषा दीदी की टिप्पणी के बाद)
इरशाद जी,मेरे साथ आपको अपने संबंधों की मधुरता का आधार बताने के लिये बस क्या इतना कह देना काफ़ी है कि मनीषा के दिमाग़ की जांच कराई जाए या आप सचमुच मुझे जानते हैं?
इसलिये कहता हूं कुछ पढ़-लिख लो फिर ब्लागिंग करो। वो एक आटोमेटिक लिंक टूल है जो खुद-ब-खुद बदलता रहता है।क्या आपको लगता है कि अर्धसत्य ब्लाग जाहिल किस्म के लोग चला रहे हैं जरा स्पष्ट करिये कि क्या आपकी पोस्ट के पहले सच में भी ये लिंक किसी टूल की देन हैं या यशवंत के प्रति विशेष आदर??व्यंग क्या होता है क्या आप मनीषा की टिप्पणी में जान सके। क्या मेरे एड्स के शोध को पढ़ने के बाद उस पर एक शब्द भी लिखा या ये कह कर कन्नी काट लेना सही होगा कि वह मेरा क्षेत्र नहीं है....। भड़ास और भड़ासblog के बारे में लिख पाते तो शायद सचमुच मैं आपको साहसी मान पाता लेकिन चूंकि आपकी पुस्तक का विमोचन यशवंत सिंह जैसा मुखौटाधारी कर रहा है तो समझ आता है कि आप क्या हैं। विश्वास है कि मेरे प्रति आदर का दिखावा समाप्त हो गया होगा वरना मनीषा के लिखने पर छटपटा कर सफ़ाई देने न आ जाते सामान्यतः जैसे रहते हो वैसे ही बने रहते। यदि सचमुच आप स्वयं को स्नेहाकांक्षी लिख रहे हैं तो नए लेखन के लिये मनीषा और उन जैसे तमाम लोगो के नए लेखन को कभी प्रोत्साहित करने के लिए दो शब्द लिख देते। बदतमीजियां नहीं ये मनीषा का भोलापन है जो उन्होंने बात को इतने सपाट अंदाज में कह दिया।
(अंत में ये रही मेरी टिप्पणी जो मैंने इन साहब की उस पोस्ट पर अभी हाल ही करी है)
जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा ने कहा…

भाई!मेरे दिमाग में क्या भरा था और आपने क्या भरा है ये तो आप जानते हैं लेकिन इस ’लालाजी’ के दिमाग में क्या भरा है ये इसने बता दिया। अरे बालक, ब्लागिंग के बारे में तुम क्या लिखोगे रविशंकर श्रीवास्तव जिन्हें दुनिया रवि रतलामी के नाम से जानती है इतना लिख चुके हैं कि कुछ भी कहना बेकार है बस तुम प्रकाशन की दुकान पर तराजू लेकर बैठते हो तो "पहले" होने का भोंपू बजा रहे हो।
मुझे अच्छा और स्तरीय साहित्य पढ़ना चाहिये। ये सलाह दे रहे हो तो बता दूं कि मेरे धर्मपिता(शास्त्री जे.सी.फिलिप) और मेरे गुरू व धर्मभाई डा.रूपेश ने जो साहित्य पढ़ाया है वह तुम्हारे जैसों को पहचान पाने की नज़र दे रहा है। यशवंत से संबंधों की पिपिहरी फूंक कर हिंदी ब्लागिंग में बड़े बनने का प्रयास टिल्लूपन है तुम उसे जारी रखो वो तुम्हारी जय करे और तुम उसकी करो.....
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

दीदी,
सही पहचाना आपने, वस्तुतः ये यशवंत की तरह ही दलाली और सौदेबाजी की राह पर है, सलाह और मशविरा के बजाय इस स्वम्भू बुद्धिजीवी को अपने दूकान की चिंता है.
बढ़िया पढना और पढ़ कर उसे भूल जाना ये हमारे देश के बुद्धिजीवी वर्ग की पहली पहचान रही है.
हम छ्छोरे ही सही मगर जो पढ़ते हैं उस पर अमली जमा पहनाते हैं ना की फिजूल की मीटिंग सिटिंग चाय और काफी और समाज की चिंता के बाद दारू में लिप्त हो जाते हैं.

सही कहा आपने दीदी और डाक्टर साहब का सटीक जवाब.

जय जय भड़ास

अजय मोहन ने कहा…

ये बिल्ली का गू है
जय जय भड़ास

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