जागो, देशवासियों, जागो!

बुधवार, 6 मई 2009

रूपेशजी, आज फिर कमेन्ट बॉक्स नही खुल रहा...!
आपकी टिप्पणी पढ़के मेरा हौसला बुलंद हुआ। इन मुद्दोंपे गहरायीसे चर्चा करके, एक ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिसे हम कार्यान्वित कर सकें। घिसेपिटे कानों के बारेमे जनजागृती बेहद ज़रूरी है।
लोगोंको न्यायव्यवस्था और पुलिस इनका कार्य क्षेत्र और उसकी विरोधाभासी कार्य जान लेना अत्यन्त आवश्यक है। वरना हम एक blame गेम जारी रखेंगे...कुछेक को लगेगा कहीँ पे पुलिस ज़िम्मेदार है, कुछेक को लगेगा, राजनेता...

जबकि, अब सारी ज़िम्मेदारी जनताकी है। पिछले २९ सालोंसे उच्च तम न्यायलय का अवमान होता रहा है..इतनाही , उस commissionke बाद और कई commissions बैठे ...जो सब कुडेमे पोहोंचाये गए....
पिछले बम धमकोंके बाद सरकारने पुलिस force का आधुनिकीकरण करनेके लिए भारी बजेट डिक्लेयर किया...पुलिस का बजेट देशके अन्य बजेट्स के बनिस्बत ५९ वे क्रमांक पे था...और असलियत मे आर्मीका कई गुना बढ़ा और पुलिस का कम हुआ...जबकि देशकी आज़ादी के बाद आर्मी के बनिस्बत पुलिस वालोंके शहीद होनेकी संख्या १० गुआसे अधिक है।
पुलिस कर्मचारीको दरमाह रु.४,०००/- तनख्वाह है। अन्य कोई सुविधा नही। महानगर पालिका के स्वीपर को रु.१२,०००/- तनख्वाह है...
याद आ रहा है, कवि प्रदीप का लिखा, और गाया,वो अजरामर गीत:" हम लाये हैं तूफानसे कश्ती निकालके, इस देशको रखना मेरे बच्चों संभाल के...भटका न दे कोई तुम्हें धोकेमे डालके"।
वैसे तो सम्पूर्ण गीत ,उसकी हरेक पंक्ती आजतक उतनीही मायने रखती है, बल्कि, कई गुना ज़्यादा रखती है....
" बारूदके एक ढेर पे बैठी है ये दुनियाँ, ऎटम बमोंके ज़ोरपे ऐठी है ये दुनियाँ...".....
हम हमारा तिरंगा अवमानित होनेसे नही बचायेंगे तो और कौन???

2 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

जागो रे...जागो रे...जागो रे....
जागो रे भइया भोर भई....
अरे यार कोई इतना कस कर झकझोर रहा है और फिर भी न उठे तो तुम सो नहीं रहे मुर्दा हो चुके हो तुमसे उठने की उम्मीद बेकार है तुम्हें तो दफ़ना देना ही बेहतर होगा।
शमा दी’ इस बात को साधारण तरीके से लेना खतरनाक होने की हद तक चला गया है।
जय जय भड़ास

Shama ने कहा…

Aapse pooree tarahse sehmat hoon...pata nahee is kumbhakarankee tarahse soye deshko kaun jagayega? Ye to karwatbhee nahee badal rahe??
Kya aaplog ek do dinki chhutee le mere yahan aa sakte hain?
Schoolke bachhonke liye ek kalpana mere manme hai.
Aako saare bhadasee bohot mante hain...hame ab is deshko aatank se bachana hai to war footing pe kuchh karna hoga...ek karwaan bane to baat bane..mujhe ab ye hamaree aazadeekee doosaree jang lagtee hai...angrezon ne banaye hue qaanoonnose aazaadee..!
"Aaiye haath uthayen hambhee, ham jinehen rasmo duaa yaad anhee, rasme muhobbatke siva koyi but koyi khuda yaad nahee..."!

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