(फ)टीचर्स डे पर हार्दिक दुर्भावना सहित..... (अतीत के पन्ने से....)

सोमवार, 4 मई 2009

अंग्रेजी दासता का हमारी सभ्यता पर इतना प्रभाव पड़ा है कि हमने उन रिश्तों को और संबंधों को जो कि साल भर जीवंत रहते थे मात्र एक दिन में समेट दिये जैसे मदर्स डे, फैमिली डे, टीचर्स डे.......। अगर गुरू पूर्णिमा को ही विशेष उत्सव मना लें तो हमारी अंग्रेजियत लज्जित होती है इसलिये टीचर्स डे मनाना अनिवार्य हो जाता है क्योंकि अब टीचर और गुरू दो अलग-अलग धंधे माने जाते हैं। आजकल "सेक्स एजुकेशन" का चरचराटा है हर ओर तो मैं तो यही सोच कर उत्साहित हूं कि शायद इस पाठ्यक्रम के आ जाने से सड़क पर खड़ी वेश्याओं को भी रोजगार मिलेगा क्योंकि थ्योरी तो हम जैसे टीचर पढ़ा देंगे लेकिन प्रेक्टिकल्स के लिये तो वेश्याओं को ही लाना होगा वरना एक टीचर और प्रेक्टिकल करने वाले चालीस पचास स्टुडेंट्स...... या खुदा...सोचती हूं कि पुरुष टीचर्स की तो लाटरी निकल आयेगी लेकिन महिला टीचर्स का क्या होगा??? हमारी प्राचीन धरोहर हमसे सम्हालते नहीं बन रही है इस लिये आज की पीढ़ी को हम सचेष्ट कर रहे हैं कि बड़ा बोझा उठाने से अच्छा है कि एक एक दिन में सब रिश्तों को निपटा दिया जाए कौन साल भर की झंझट पाले। इस लिये मेरे प्यारे भारत वासियों(क्षमा करिए सौरी बोलती हूं इंडियन्स बोलना ठीक होगा) अगर आप भी इन्टरनेट पर "आई हेट माई टीचर" या "फ़क द टीचर" जैसी कम्युनिटीज़ के सदस्य हों तो अपने प्यारे टीचर को आज के दिन की शुभेच्छा देकर उसके अच्छे स्वास्थ्य, वेतन, दीर्घायु, सम्मान की कामना करिये।

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