लाला जी की दरियादिली या घरियाली आँसू. (अतीत के पन्ने से.....)

रविवार, 3 मई 2009

वैश्विक आर्थिक मंदी का असर सब जगह, सारे धंधे गाहे बगाहे प्रभावित। खबरिया चैनल हो या अखबार स्टॉक मार्केट ही स्टॉक मार्केट। मंदी का असर बाजार पर, मंदी का असर लाला जी पर, मंदी का असर ख़बर के व्यवसाय पर और मंदी से हिलती डुलती सरदार की सरकार।



इसी बीच भारत की दो बड़ी विमान सेवा कम्पनी के परस्पर व्यापारिक सहयोग का एलान और तुंरत फुरत में जेट के हजारों लोगों को कम्पनी से बाहर का रास्ता मानो खबरिया चैनल, अखबार से लेकर राज्नेतों तक के हाथ में झुनझुना आ गया हो और बैठ कर सभी इसे बजा कर राग और सुर का मिलान कर रहे हों।









दो लाला ने डूबते धंधे को बचाने के लिए मिलाया हाथ, गाज गिराई कर्मचारियों पर।



कर्मचारियों का सड़क पर उतर कर पत्रकारों, और नेताओं के साथ जुगलबंदी बना कर एसा राग आलापा गया की बाजार के बड़े उस्तादों में से एक और जेट कम्पनी के मालिक नरेश गोयल को कुर्ता पायजामा में लोगों के सामने आकर निकाले गए सभी लोगों को वापस लेने का एलान करना पड़ा।




घडियाली आँसू और लाला जी साथ साथ उपस्थित हुए मीडिया के समक्ष।

जरा तर्क सुनिए लाला जी काकि ये अपने जेट परिवार के लोगों के आंखों में आँसू देख कर सभी को वापस ले रहे हैं, लाला जी के बयान की हद देखिये कहते हैं की मनेजमेंट ने जो फैसला किया उसकी जानकारी उन्हें नही थी, सी एम् दी को नही थी, जब जानकारी मिली तो सभी को वापस ले रहा हूँ क्यौंकी मैं अपने परिवार के किसी की आँखों में आंसू नही देख सकता, अपने बच्चों को भूका नही देख सकता।



लाला जी का दिलासा, रोनी सूरत पर लौटी मुस्कान, मगर ये मुस्कान कब तक ?



मंदी के इस दौर में जिस तरह से सारा बाजार नुकसान में जा रहा है, उड्डयन भी इसऐ इतर नही था, हजारो करोड़ के नुक्सान में चल रहे ये दो बड़ी कंपनियों ने अपने नुकसान से ही उबड़ने के लिए हाथ भी मिलाये थे, मगर जिस आनन् फानन में लोगों को बहार का रास्ता दिखा कर वापस लिया गया नि:संदेह इसमें दवाब की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही, और ये दवाब गोयल जी के चेहरे पर साफ़ देखा जा सकता था जब वो पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे।


बहरहाल इस कदम से जेट कर्मचारियों के चेहरे पर क्षणिक मुस्कुराहट लौट आयी है, मगर मंदी का ये दौर और बाजार के पक्के धुरंधर गोयल जी से कब तक सामंजश्य रखता है, धंधा कर रहे गोयल जी मानवीय संवेदना को कब तक झेलते हैं चलिए इसका इन्तेजार करते हैं।


1 टिप्पणियाँ:

दीनबन्धु ने कहा…

भाईसाहब पुराने पन्नों में आग और अधिक भड़क चुकी है और ये लपटें अधिक फैलेंगी ही बुझने वाली आग तो ये है नहीं
जय जय भड़ास

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