लोकसंघर्ष !: राजघाट के सपने कौडियों में बिकते है....
बुधवार, 3 जून 2009
तीरगी से डरते है।
यू दीये भी जलते है ।
साँप दोस्त बनकर ही
आस्ती में पलते है।
शेर जिंदगी के सब
आंसुओ से ढलते है।
राजघाट के सपने
कौडियों में बिकते है।
वाह क्या है फनकारी
आस्था को चलते है।
टूटना ही किस्मत है
जो कभी न झुकते है।
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही ''

1 टिप्पणियाँ:
सच लिखा भाई, वास्तव में राजघाट के सपने कौडी में ही बिकते हैं,
बधाई स्वीकारिये
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