आख़िर ये लोक संघर्ष क्या है !
बुधवार, 10 जून 2009
इधर कुछ व्यक्तिगत व्यस्तता के चलते मैं भड़ास से थोड़ा दूर रहा हूँ..कुछ लिखने के लिए समय नही मिल पा रहा था। हाँ दोस्त के लैपटॉप से पढने का क्रम नही टूटा पिछले कई दिनों से मैं जब भी यहाँ आता हूँ। तो लोक संघर्ष ही छाया रहता हैं कभी कवितायेँ और कभी लेख। सुमन जी सैकड़ों पोस्टें शायद अब तक आ चुकी हैं..लेकिन मैं ये समझाने में असमर्थ रहा हूँ की आखिर ये लोक संघर्ष चीज़ क्या है? क्योंकि ये सब्द ही अपने आप में इतना भारीभरकम हैं की इसका वजन सह पाना कमजोरों के वश की बात नही है..कृपया मुझे इन लोक संघर्ष के लोक के लिए संघर्ष की कुछ सत्य गतिविधियों से अवगत कराने की कृपा करें ..क्या ये वाकई में लोक यानि जन यानि आम आदमी के किसी सामूहिक संघर्ष की मुहीम है या फिर शब्दों के चोंचले में छिपा व्यक्तिगत उपलब्धि का छलावा भर! मेरी बात को अन्यथा न लें , क्योंकि ये सिर्फ़ मेरी व्यक्तिगत जिज्ञासा भर है और कुछ नही..हा इस लोक संघर्ष की परिभाषा से मुझे अवगत कराने की चेष्टा जरुर करिए..हो सकता है की मानसिक छतिपूर्ति आपके उत्तर से हो जाए ..अंत में किसी भी ठेस लगने वाली बात के लिए छमा प्रार्थी हूँ॥ एक बच्चे की जिज्ञासा ग़लत भी हो सकती है ..लेकिन उसे समझकर उसका भ्रम दूर किया जा सकता है। इसी आशा के साथ इंतजार में आपका सहयोगी ......भड़ास दर्शन का आज्ञाकारी बालक
जय भड़ास जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
मनोज भाई!लोक संघर्ष सुमन जी और उनके मित्रों का एक प्रयास है जो कि जमीन से गहराई से जुड़ा जान पड़ता है,अपनी सोच के संचार के लिए संबद्ध किस्सा-कविता-नाटक आदि का सहारा लेना ही पड़ता है। मुझे तो ऐसा ही जान पड़ता है शेष सत्य क्या है और भ्रम क्या है ये कौन निर्धारित करे? न पचे तो उगल दीजिए और अच्छा लगे तो निगल लीजिए यही है भड़ास का दर्शन :)
मनोज भाई,जरा पिछली पोस्ट्स पर नजर मार लेंगे तो मजा आ जाएगा,पक्के भड़ासी हैं ये लोग ऐसा लगा है अब तक मुनेन्द्र भाई ने सच कहा है
जय जय भड़ास
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